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परियोजनाओं के उद्घाटन से जुड़ी रहती है इतिहास में अपना नाम सनद कराने की इच्छा।परियोजना का कुल खर्च भी आजकल बताया जा रहा है।यह नहीं बताया जाता कि यह पैसा अर्थव्यवस्था की आमदनी से आया अथवा विश्व बैंक जैसी संस्था का विदेशी कर्ज। 1959 में जब पहली बार विश्व बैंक से कर्ज लेने की चर्चा शुरू हुई थी तब भवानी बाबू ने लिखा-
पहले इतने बुरे नहीं थे तुम
याने इससे अधिक सही थे तुम

किन्तु सभी कुछ तुम्ही करोगे इस इच्छाने

अथवा और किसी इच्छाने , आसपास के लोगोंने

या रूस-चीन के चक्कर-टक्कर संयोगोंने

तुम्हें देश की प्रतिभाओंसे दूर कर दिया

तुम्हें बड़ी बातोंका ज्यादा मोह हो गया

छोटी बातों से सम्पर्क खो गया

धुनक-पींज कर , कात-बीन कर

अपनी चादर खुद न बनाई

बल्कि दूरसे कर्जे लेकर मंगाई

और नतीजा चचा-भतीजा दोनों के कल्पनातीत है

यह कर्जे की चादर जितनी ओढ़ो उतनी कड़ी शीत है ।
कर्ज लिया गया धन आजकल बड़ी बड़ी बहुदेशीय कंपनियों के पास पहुंच रहा है।यह कंपनियां परियोजना प्रस्ताव तैयार करने,संसाधन जुटाने के साम,दाम,दंड,भेद वाले तरीके सुझाने तक का काम करती हैं।पर्यावरण,संस्कृति,पुरातत्व पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए यदि कायदे-कानून बने हुए हैं तो उनकी टांग कैसे तोड़ी जाए?कौनसा मंत्रालय,विभाग या प्राधिकरण उसे तुड़वाएगा?इसमें कितना वक्त लगेगा?ऐसे प्रश्न कंपनियां सरकार से हल करवाने के लिए कहती है।
सुना जा रहा है कि प्रधानमंत्री स्टेशनों के विकास से जुड़ी कुछ बड़ी परियोजनाओं की घोषणा बहुत जल्द करेंगे।दुनिया की चार बड़ी कंपनियों में एक का फितूर है कि सड़क,रेल और नदी मार्ग का टर्मिनल या स्टेशन बने।बड़ी परियोजनाओं में उद्घाटन के कई मौके निकाले जाते हैं।जैसे दानवाकार अखाद्य कंपनी पेप्सीको का कोलकाता या हल्दिया से लादकर बनारस पहुंचे मालवाहक जहाज या कार्गो की आगवानी प्रधानमंत्री ने नवम्बर 2018 में की थी तथा ‘बनारस बंदरगाह’ का भी उद्घाटन तब कर दिया था।उस प्रथम कार्गो के बाद अब तक दूसरा कार्गो बनारस नहीं पहुंचा है।
गंगा और वरुणा के बीच बने इस प्रायद्वीपनुमा भूभाग का भौगोलिक, पुरातात्विक,सांस्कृतिक, राजनैतिक महत्व है।इसे मनोविनोद के लिए ख़बतुलहवासी द्वारा नष्ट करने की योजना एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने प्रस्तुत की है।सरकार के किस विभाग,प्राधिकरण को कौन सी बाधाएं दूर करनी होगी यह भी कंपनी ने बताया दिया है।उपाय धूर्तता,धोखाधड़ी वाले हों तब भी गुरेज नहीं है।नाजायज,आपराधिक उपाय अपनाने वालों से राजा खुश होगा,कम्पनियां तिकड़म और कौशल को समानार्थी मानती है।
राजघाट प्रायद्वीप को नष्ट करने के लिए-
1.गंगा से 200 मीटर की दूरी तक निर्माण पर रोक का अलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश परियोजना के आधे से अधिक क्षेत्र पर पाबंदी लगाता है।
2.विश्वविख्यात पुरातत्वविद प्रो ए के नारायण के मार्गदर्शन में हुई सफल पुरातात्विक खुदाई।खुदाई स्थल के संरक्षण के नियम परियोजना के लिए बाधा हैं।
3.शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित ऐतिहासिक सड़क किनारे बना रौजा लाल खान तथा उस परिसर के चार कोनों में गुम्बद वाली मीनारें।पुरानी इमारतों के संरक्षण वाले ब्यूरो से अनापत्ति लेनी होगी।
4.कछुआ सैंक्चुअरी से बाधा आती है।वन्यजीव संरक्षण बोर्ड से अनापत्ति।
सुनते है यह हटा ली गई है।

रौजा लाल खां
पुरातात्विक खुदाई,राजघाट

मेरा एक दोस्त है।पुलिस महकमे के सबसे बड़े ओहदे पर था, अवकाशप्राप्ति के समय।30 बरस से रखी अपनी goatee दाढ़ी हटाने के बाद मुझे चीन्हने में उस मित्र को भी दिक्कत हुई तब भरोसा हुआ कि थोबड़े में ‘कारगर’ तब्दीली हुई है।
मोदी-योगी की पुलिस की आंख में थोड़ी सी धूल झोंकने के लिए अब यह उपाय कारगर नहीं रह गया क्योंकि इस थोबड़े को सार्वजनिक कर दिया गया है।
यह पूरी तरह रूमानी ख्याल नहीं है।कुछ हफ्ते पहले पुलिस के क्षेत्राधिकारी मेरे फोन पर मेरी किसी से बातचीत को सुन रहे थे।मेरा परिचित एक व्यवसायी वहां मौजूद था।उसने मेरी आवाज पहचान कर उस पुलिस अधिकारी से पूछा,’आप अफ़लातूनजी की बातचीत क्यों सुन रहे हैं?’उस अधिकारी ने कबूला और बताया कि राज्य सरकार के गृह विभाग से एक सूची भेजी गई है जिसमें जो नाम और नम्बर हैं उनकी निगरानी (surveillance) की जानी है।यह पहली सरकार नहीं है जिसने हमारे जैसों को अपराधी माना है।हम भी तो ऐसी सरकारों को आपराधिक मानते हैं।काशी विश्वविद्यालय के छात्रसंघ बहाली के लिए चले आंदोलन के समय कांग्रेस की सरकार थी।सरकार द्वारा थोपे गए फर्जी मुकदमे गम्भीर आपराधिक धाराओं वाले थे।मुझ पर तीन हत्याओं के प्रयास,आगजनी, विस्फोटक कानून और क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट आदि धाराएं प्रमुख थीं।एक-दो छात्र नेताओं पर कुछ अतिरिक्त मुकदमे भी थे।उनमें से एक सांसद,विधायक और सूबे में कैबिनेट मंत्री बने।सपा की सरकार के समय सभी मुकदमे वापस लिए गए।उस दौर में एक बार ऐसा भेश बदला कि मेरी बा भी आवाज सुनने के बाद ही चीन्ह पाई।बा पहचान नहीं पाई तो मुझे यकीन हो गया कि यह भेष असरकारक है।थाने से बिल्कुल करीब एक कैफे से गिरफ्तार हुआ।पुलिस वालों से कहा कि डोसा खा लेने दो।मुझे जेल से निकालने के लिए ढाई-ढाई हजार रुपयों के 6 जमानतदारों की जरूरत थी। जमानतदार के नाते मेरी बा ने कहा कि उसके पास ढाई हजार से अधिक मूल्य की किताबें हैं और स्वतंत्रता सेनानी पेंशन की किताब दिखाई।भारत रक्षा कानून के तहत 1942 में वह ढाई वर्ष कटक जेल में थी।
दूसरे जमानतदार मेरे जीजाजी डॉ सुरेन्द्र गाडेकर थे।उनसे जज ने पूछा,’आप क्या करते हैं?’
‘मैं परमाणु ऊर्जा का विरोध करता हूँ,’जवाब मिला।इन जानकारियों से जज साहब भड़के भी नहीं।
1942 में मेरी नानी भी कुछ समय भूमिगत थी।आजाद ,लोकतांत्रिक देश में भूमिगत होने के मौके नहीं आने चाहिए।
1974 में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के दौर में राजनारायण,जॉर्ज फ़र्नान्डिस और मेरे पिताजी को बिहार-निकाला दिया गया।पिताजी मूछ रख कर और शेरवानी-चूड़ीदार पहन कर बनारस से पटना गए।कदम कुंआ में महिला चरखा समिति में हुई बैठक में सर्वप्रथम जॉर्ज साहब ने उन्हें पहचाना।इन लोगों के प्रांत निकाले से अमित शाह के प्रांत निकाले की तुलना नहीं की जानी चाहिए।अमित शाह फर्जी मुठभेड़ में हत्या के आरोप में तड़ीपार किए गए थे।बहरहाल,पिताजी का कहना था कि गांधीजी के सत्याग्रह के मानदंड पर छुपना,भेश बदलना बिल्कुल वर्जित होता।जेपी आंदोलन को अहिंसक नहीं कहा गया,शांतिपूर्ण कहा गया।
मुझे 18 सितंबर को ओडिशा के बलांगीर जाना है।’विप्लव और जागृति’ नामक संगठन ने ‘मौजूदा लोकतंत्र और गांधीजी’ विषय पर भाषण देने के लिए बुलाया है।मेरे नेता किशन पटनायक ने बलांगीर से बी.ए. किया था।दिए गए विषय पर उथल-पुथल के सिलसिले में यह सब भी दिमाग से गुजरा।

उम्र के फर्क से लोहिया की दोस्तियां प्रभावित नहीं होती थीं।पार्टी के भीतर के मतभेदों को लेकर जेपी और लोहिया के बीच हुए पत्राचार एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुए थे।एक पत्र में ‘आप’ का इस्तेमाल होते ही टोका गया था।मुझे लगता है दोस्ती में उम्र का बाधक न बनना लोहिया के प्रेम प्रकोप से होता होगा।बनारस में जेपी की आम सभा में मैं मौजूद था जब उन्हें लोहिया के बीमार होने की खबर मिली थी।जेपी ने सभा में मौजूद लोगों को लोहिया की तबीयत की खबर दी,सभा समाप्ति की घोषणा की तथा दिल्ली जाने के लिए मुगलसराय से ट्रेन पकड़ने के लिए निकल पड़े।
नवकृष्ण चौधरी,मालती देवी और लोहिया का परस्पर संबंध भी बहुत दोस्ताना था।नवबाबू जेपी से मात्र साल भर बड़े थे।मालती देवी नवबाबू से लगभग साढ़े तीन साल कम थीं।लोहिया ने किसी भाषण में ‘पूर्व बंगालन की हंसी की खूबसूरती’ का जिक्र किया है।हांलाकि वे मानते थे कि दुनिया की हर औरत खूबसूरत होती है।यहां उनकी कॉमरेड मालती देवी पूर्व बंगालन थी और उनकी मुस्कान और हंसी बहुत प्यारी थी यह बता देना चाहिए।
कुछ समय तक लोहिया बनारस में एक पैसे वाले व्यक्ति को मेजबानी का मौका देते थे।पार्टी के साथियों ने प्रतिवाद किया उसके बाद गंगा पर बजड़े में टिकना पसंद करते थे। 1965 या 1966 की बात है।मालतीदेवी और नवबाबू बनारस में राजघाट स्थित साधना केंद्र में हमारे घर आए हुए थे।उन्हीं दिनों लोहिया भी बनारस आए हुए थे।मालतीदेवी और नवबाबू से मिलने वे आए हमारे घर से करीब 60 मीटर दूर परिसर के फाटक पर रुक गए।वहीं से जोर से पुकारा,’मैं उस सरकारी संत के परिसर में नहीं घुसूंगा तुम दोनों फाटक पर आओ।’ दोनों से गले मिले।बात बांग्ला में होती होगी या हिंदी में पता नहीं।
1965 से 1967 के बीच लोहिया और नवबाबू के बीच के राजनैतिक आदान प्रदान का हवाला सोशलिस्ट पार्टी उड़ीसा के तत्कालीनअध्यक्ष रबि राय ने जून 1967 के ‘जन’ में छपी रपट में दिया है।आजादी मिलने के बीस साल बाद 9 राज्यों में गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन चुके थे।उस रिपोर्ट के कुछ हिस्से सीधे उद्धरित कर रहा हूँ –
[ ” उड़ीसा में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई और वहाँ गैर कांग्रेसी मंत्री मंडल भी बना है।दूसरे आठ राज्यों में जहां गैर-कांग्रेसी मंत्रीमंडल बने,उड़ीसा उनसे पीछे नही रहा,कई बातों में तो आगे ही रहा।
27 फरवरी, 1966 को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में ‘कांग्रेस हटाओ देश बचाओ’ कार्यक्रम क्रियान्वित करने के लिए एक आम सभा हुई।इस सभा का महत्व इसलिए बढ़ गया क्योंकि उड़ीसा के भूत पूर्व मुख्य मंत्री नवकृष्ण चौधरी ने कांग्रेस को किस तरह हटाया जाए इस बारे में अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे।मैं भी उस सभा में उपस्थित था। असल में यह सभा नवकृष्ण चौधरी के कहने पर बुलाई गई थी।यह कहना ठीक होगा कि उस सभा में उड़ीसा में कांग्रेस हटाओ आंदोलन की नींव डाली गई।नबकृष्ण चौधरी के भाषण से यह भी पता चला कि वह भाषा, समानता, सादगी, बड़े लोगों की आय और खर्च पर पाबन्दी जैसी सोशलिस्ट पार्टी की नीतियों के प्रबल समर्थक हैं।पिछले साल जून में जब राममनोहर लोहिया उड़ीसा के अकाल पीड़ित क्षेत्रों का दौरा करने गए थे उस समय लोहिया की उपस्थिति में पत्रकार लोगों को भी नवकृष्ण चौधरी ने बाकायदा कहा था कि मैं बहुत से मामलों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नजदीक हूँ।
नवकृष्ण चौधरी विचार और व्यवहार में जनता के आदमी हैं। 1934 में वह कांग्रेस समाजवादी दल के मंत्री ही नहीं नेता भी थे,और उड़ीसा में किसान आंदोलन और पुराने रियासती राज्यों में प्रजा आंदोलन के प्रतिष्ठाता के रूप में उनकी ख्याति थी। 1950 से 1956 तक उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहकर उन्होंने कॉन्ग्रेस की सिद्धांतहीनता का अनुभव किया और उसके बाद मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस की साधारण सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। 1948 में समाजवादियों के कांग्रेस छोड़ने के वक्त अगर नवकृष्ण चौधरी कांग्रेस छोड़कर समाजवादियों के साथ रहते तो उड़ीसा के समाजवादी आंदोलन की शक्ल आज कुछ और ही होती।
नवबाबू के खुल्लमखुल्ला कांग्रेस के खिलाफ अभियान शुरू करने के बाद उड़ीसा के सब विरोधी राजनीतिक दलों में एक हलचल पैदा हो गई।हरेकृष्ण महताब और नवकृष्ण चौधरी विचार और सिद्धांत दोनों में बहुत पार्थक्य होते हुए भी नवकृष्ण चौधरी के कांग्रेस हटाओ नारा बुलंद करने के बाद हरे कृष्ण महताब ने अपने बहुत से अन्यायियों के साथ जन कॉन्ग्रेस का गठन किया।जन कॉन्ग्रेस के गठन के बाद उड़ीसा में कांग्रेस की हार की संभावना बढ़ती ही गयी।
चुनाव के पहले कांग्रेस की ओर से जब यह प्रचार किया गया कि विरोधी दलों के बीच तालमेल नही हो सकता तब नवकृष्ण चौधरी ने भरपूर कोशिश कर जन कॉन्ग्रेस और स्वतंत्र दल के बीच सीटों का बंटवारा किया,और इसका जनता पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा।
कांग्रेस को उड़ीसा में सिर्फ 30 सीटें मिलीं। 1930 के मध्य अवधि चुनाव में बीजू पटनायक के नेतृत्व में उसे 82 सीटें मिली थीं।उड़ीसा कांग्रेस के नेता बीजू पटनायक 20 हजार,गृहमंत्री नीलमणि राउत राय 22हजार और शिक्षा मंत्री सत्य प्रिय महन्ती 18 हजार वोटों से हारे।चुनाव नतीजा निकलते वक्त मालूम पड़ता था कि जनता ने सोच समझ कर वोट दिया जिसके चलते कांग्रेस हटाओ ने एक आन्दोलन का रूप ले लिया।
उड़ीसा में गैर कॉन्ग्रेसी सरकार बनाने के बाद ही 1 अप्रैल से जमीन से पूरा लगान खत्म करने का ऐलान किया गया।मंत्रीमंडल ने 21 सूत्री कार्यक्रम बनाया है जिसमे लगान माफी,भ्रष्टाचारी मंत्रियों के खिलाफ आयोग नियुक्ति, उड़िया भाषा का सार्वजनिक क्षेत्र में प्रचलन और लोकपाल की नियुक्ति की बाते हैं।एक मंत्री को छोड़कर सबने उड़िया में शपथ ली।
यह गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल क्रांतिकारी परिवर्तन का माध्यम नही बन सकता।अभी समय आया है कि जनता और राजनीतिक दल समय की चुनौती को स्वीकारें और एक ऐसा राजनीतिक दल बनाने की सोचें जो मन और पेट की भूख को मिटा सकता है।ऐसा दल ही आर्थिक क्रांति ला सकता है।उसीसे तथा देश मे दारिद्र्य को मिटाने का यही एक रास्ता है। -रबि राय]

प्रेस विज्ञप्ति
वाराणसी,25 जुलाई,2020।
अहोम के समाजवादी जन नेता अखिल गोगोई नागरिकता संशोधन खिलाफ सशक्त आंदोलन की रहनुमाई कर रहे थे।वे लोहिया प्रशंसक भी हैं।वरवर राव परिचय के मोहताज नहीं हैं।इन दोनों में समानता यह है कि भाजपाई तानाशाही में जेल काटते हुए उन्हें कोविड19 संक्रमण हुआ है।कहने को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि न्यायिक हिरासत में लोगों को न रखा जाए,मुक्त किया जाए।लेकिन छोड़े जा रहे हैं खांटी अपराधी।इन दोनों सहित तमाम राजनीतिक बंदियों की तत्काल रिहाई की मांग के प्रति अपने संकल्प को पुख्ता करने के लिए 12 घंटे का उपवास किया गया।इस समूह के अलावा कुछ लोग अपने घर में उपवास पर रहे।चित्र चौधरी राजेन्द्र के काशी वास का स्थान है।राजघाट गांधी विद्या संस्थान परिसर में डॉ मुनीज़ा खान भी उपवास में शरीक हैं और सुंदरपुर में अपनी तन्हाई (कंटेन्मेंमेंट जोन,रुद्रा टावर्स में) अफलातून भी।
उपवास करने वाले साथियों में – प्रीतम सिंह,रामभरोस यादव,रमेश कुमार सिंह,चंचल मुखर्जी,चौधरी राजेन्द्र,श्रवण सिंह यादव,कल्याण सिंह,सुरेश सिंह,रामदयाल वर्मा, संतोष सिद्धान्तकर,विक्की पटेल,डॉ मुनीज़ा खान तथा अफ़लातून प्रमुख थे।

‘ देवताओं की पुष्पवर्षा से जमीनी लड़ाइयां नहीं जीती जातीं । ‘ – चौधरी राजेन्द्र अक्सर कहते हैं।यह शब्दशः चरितार्थ होगा जब सर सुंदरलाल चिकित्सालय,काहिविवि पर आकाश से पुष्पवर्षा होगी।दरअसल कोरोना की लड़ाई में जूनियर डॉक्टर्स,प्रयोगशाला से जुड़े वैज्ञानिक,नर्स और वॉर्ड बॉय ही अभ्यर्थना,सम्मान के हकदार हैं।इस टीचिंग हॉस्पिटल के प्रोफेसरान लॉकडाउन के साथ ही OPD,OT बन्द कर चुके हैं।हर रोज़ OPD में पूर्वी उत्तर प्रदेश,बिहार के 5,000 मरीज इस इलाके के सबसे बड़े अस्पताल की सेवा से वंचित हैं।
इन वरिष्ठ चिकित्सकों की बेहयाई,बुजदिली तब और सिद्ध हुई जब वाराणसी के जिलाधिकारी ने 19 अप्रैल को OPD खोलने की अपील की तब इन लोगों के निहित स्वार्थ में 14 अप्रैल का एक परिपत्र 5 दिन बाद मीडिया को जारी किया जिसमें कहा गया था पूरा चिकित्सालय परिसर कोरोना संक्रमित है।फूल माला पहनने के लिए यह वरिष्ठ डॉक्टर ही अनाधिकार आगे आ जाएंगे।
कल जारी गृह मंत्रालय की विज्ञप्ति में भी OPDs खोलने का निर्देश है।गौरतलब है कि सर सुंदरलाल चिकित्सालय में भर्ती मरीज भी स्त्री रोग और नेफ्रोलॉजी जैसे अपवाद के विभागों में ही हैं।बाकी विभागों में, ICU से मरीज लॉकडाउन के समय ही विदा कर दिए गए थे।

लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द[1]

सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द[2]

ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक[3] उसका है असर,

रिफ़अत[4] में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द[5]

इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक[6] सरिश्त[7] ,

मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द

है राम के वजूद[8] पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,

अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द

एजाज़ [9] इस चिराग़े-हिदायत[10] , का है यही

रोशन तिराज़ सहर[11] ज़माने में शामे-हिन्द

तलवार का धनी था, शुजाअत[12] में फ़र्द[13] था,

पाकीज़गी[14] में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था

शब्दार्थ
  1. ऊपर जायें हिन्द का प्याला सत्य की मदिरा से छलक रहा है
  2. ऊपर जायें पूरब के महान चिंतक हिन्द के राम हैं
  3. ऊपर जायें महान चिंतन
  4. ऊपर जायें ऊँचाई
  5. ऊपर जायें हिन्दी का गौरव या ज्ञान
  6. ऊपर जायें देवता
  7. ऊपर जायें ऊँचे आसन पर
  8. ऊपर जायें अस्तित्व
  9. ऊपर जायें चमत्कार
  10. ऊपर जायें ज्ञान का दीपक
  11. ऊपर जायें भरपूर रोशनी वाला सवेरा
  12. ऊपर जायें वीरता
  13. ऊपर जायें एकमात्र
  14. ऊपर जायें पवित्रता

साथी भारत भूषण चौधरी की महत्वपूर्ण टिप्पणी

गणितज्ञ, वैज्ञानिक वशिष्ठ नारायण सिंह के मौत पर जो खबरें, संवेदना संदेश, अखबारों के सम्पादकीय आदि आ रहे हैं, सभी उन्हे समय पर आर्थिक सहायता मुहय्या नहीं करने को दोष दे रहे हैं। इस मौके पर चिन्हित करना चाहूंगा कि मानसिक बीमारियां अनुवांशिक (heridetary) होती हैं जिन्हें समय पर detect कर इलाज न किया जाय तो बाद की स्थिति में हम असहाय हो जाते हैं।
वशिष्ठ बाबू schizophrenia के मरीज थे, जिसका संज्ञान लेने में उनके परिवार के सदस्यों, मित्रों (जागरूकता के अभाव में) ने काफी देर कर दी। यदि उनका सही इलाज समय पर हो जाता तो नोबल पुरस्कार विजेता जॉन नैश (संदर्भ उनकी जीवनी पुस्तक A Beautiful Mind जिस पर होल्लिवूड में प्रसिद्ध फिल्म भी बन चुकी है) की तरह वशिष्ठ बाबू भी मानवता के लिये और ज्यादा योगदान करते।
वशिष्ठ भाई को सच्ची श्रद्धांजली देने के
लिये मानसिक रोगों के बारे में जागरूकता फैलाना, सभी नागरिक के मानसिक स्वास्थ के जांच की सुविधा उपलब्ध कराना और मानसिक रोगों के इलाज की सुविधा को हर व्यक्ति के लिये मुहय्या कराने की मुहिम से हम सब को जुड़ना होगा तभी हम ऐसे हजारों वशिष्ठ नारायण सिंह के प्रतिभा को आगे ला पायेंगे, उन्हे बचा कर रख पायेंगे।
Bharat Choudhary

राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता एक दूसरे को कमजोर करनेवाली होती है,क्योंकि राष्ट्रीयता के परिधान में ही साम्प्रदायिकता आकर्षक लगती है।न सिर्फ साम्प्रदायिकता की चुनौती को झेलने के लिए बल्कि अलगाववाद पर नियंत्रण पाने के लिए भी राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद के संबंध में एक दृढ़ और स्पष्ट अवधारणा को प्रचारित करना जरूरी हो गया है।नई आर्थिक नीतियों के कारण हमारी आजादी पर खतरे की आशंका व्यापक हो रही है।आर्थिक नीतियों के मामले में राष्ट्रवाद को परिभाषित करना ही होगा।यहां से शुरू करके राष्ट्र संबंधी पूर्णांग धारणा विकसित हो सकती है। – किशन पटनायक

भारतीय संस्कृति का स्थान भी साम्प्रदायिकता ले रही है,मानो पश्चिमी संस्कृति को मानने वाले ही साम्प्रदायिकता का विरोध कर रहे हैं।बात बिल्कुल ऐसी नहीं है क्योंकि पश्चिमी संस्कृति को मानने वाले राजनीतिक स्तर पर अब बड़ी संख्या में भाजपा के समर्थक बनते जा रहे हैं।इसलिए भारतीय संस्कृति का एक ग़ैरसाम्प्रदायिक आधुनिक रूप प्रचारित होना बहुत जरूरी है।आजादी के पहले रवींद्रनाथ ठाकुर इसके प्रभावी प्रतीक थे।आजादी के बाद पश्चिमीकृत संस्कृति के विकल्प में सिर्फ सती प्रथा और आसाराम स्थापित हो रहे हैं।
-किशन पटनायक

गैर भाजपाई दलों में सपा और बसपा का अकेला मोर्चा है जो संघ परिवार से भयभीत नहीं जान पड़ रहा है।इससे एक सबक लेना है-एक सीधा और गहरा सबक।संघ परिवार से मुकाबला करने के लिए जिस जनाधार की जरूरत है वह शूद्र-दलित समन्वय से बनता है ।जिस राजनैतिक दल का नेतृत्व मुख्य रूप से उच्च जातिवाला है,जिसके कार्यकर्ता भी सामान्यतया उच्च जाति से आते हैं,उसके पांव संघ परिवार से लड़ते वक्त लड़खड़ाते हैं।कई सामाजिक और ऐतिहासिक कारणों से उसके अंदर दुविधाएं और कमजोरियां पैदा होती हैं।
– किशन पटनायक

अंततोगत्वा संघ परिवार की धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक नीतियों का लक्ष्य समाज में ब्राह्मणवाद को पुनः स्थापित करना है।इसलिए ब्राह्मण-बनिया-राजपूत जातियों का एक स्वाभाविक आकर्षण इन नीतियों के प्रति होता है।यह सही है कि कई बार राजपूत और यादव,कायस्थ और कुर्मी समान रूप से मुसलमान विरोधी यानी साम्प्रदायिक दिखाई देते हैं।लेकिन गहराई में जाने पर पिछड़ों और दलितों का साम्प्रदायिक विद्वेष बहुत सतही मालूम होगा। ब्राह्मणवादी विचारों के हिसाब से ब्राह्मण ही पूरी तरह हिन्दू है या फिर द्विज जातियां।शूद्र जातियां अपेक्षाकृत कम हिन्दू हैं और दलितों का हिंदुत्व नगण्य है।अतः जिस दाल का नेतृत्व जितना द्विज प्रधान होगा,साम्प्रदायिकता के मुकाबले वह अपने को उतना दुविधाग्रस्त पाएगा।भाजपा से लड़ने में उसका आत्मविश्वास उतना कमजोर पाया जाएगा।उसका नेता प्रबल धर्मनिरपेक्षतावादी हो सकता है,लेकिन उसके अपने परिवार और स्वजनों के बीच उसकी बातें प्रभावी नहीं होंगी।
-किशन पटनायक
(धर्मनिरपेक्षता का घोषणापत्र 4)

अतिक्रमण को मुआवजा क्यों दिया मोदी जी ?

(वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ गोकर्ण काशी के नगीना हैं।सैंकडों वर्ष से महात्म्य के कारण देश के कई भागों के लोग काशी के विभिन्न मोहल्ले में बसे हैं।आम तौर पर देश के विभिन्न भागों के राजे,महाराजे,जमींदार,समृद्ध लोग ‘काशी – वास ‘ के लिए भवन निर्माण करते और अपने इलाके के ब्राह्मणों को रहने के लिए दे देते थे।काशी का कॉस्मोपोलिटन चरित्र इस वजह से रहा है।)

इन दिनों वर्चअल वल्र्ड में एक वीडियो वायरल हो रहा है। जाने कितने लाख लोगों ने उसे अब तक देख लिया है। वीडियो में बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर से जुड़ी चीजें शूट की गयी हैं। वीडियो में कुछ तमिल तीर्थयात्री दिखते हैं। वीडियो के साथ आॅडियो हिन्दी में है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों का नतीजा है कि अतिक्रमण से घिरे बाबा विश्वनाथ आज मुक्त हो कर सांस ले रहे हैं। खुद मोदी जी ने भी जब आठ मार्च को इस काॅरिडोर की आधारशिला रखी तब भी उन्होंने कहा कि चालीस हजार वर्गमीटर में बन रहे इस काॅरिडोर को जब हमनें खाली कराया तो यहां 44 ऐसे अति प्राचीन मंदिर मिले जिन्हें इलाके के लोगों ने अतिक्रमण कर अपने घरों में छिपा लिया था। उन मंदिरों और शिवालयों में लोगों ने टाॅयलेट बना लिया था।

मोदी जी, आपका बयान रिकाॅर्डेड है। अब आप यह कह नहीं सकते कि नहीं हमने तो ऐसा कहा ही नहीं था। क्योंकि आपके इस झूठ को पूरी दुनिया ने लाइव टेलिकास्ट में देखा। हमें नहीं मालूम कि आपको किसने यह सब पढ़ा दिया लेकिन हम बनारस के लोग उस दिन इस सचाई को जान कर हैरान थे कि दुनिया में ताकतवर माने जाने वाले हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री का सामान्य ज्ञान कितना कमजोर है। मोदी जी पिछले पांच सालों से आप इतिहास से भी पुराने इस बनारस के सांसद है। बीते आठ मार्च तक आपने अपने संसदीय क्षेत्र का 19 बार दौरा भी किया। तथाकथित रूप से आपने इस शहर को कई हजार करोड़ रूपए का तोहफा भी दे डाला पर हजरत अफसोस कि इस शहर को आप अब तक समझ नहीं सके। आप न तो इसके इतिहास से वाकिफ हुए और न आपने इसके भूगोल को जानने की कोशिश की। आपके लिए इतिहास मतलब केवल असी घाट और भूगोल मतलब शहर के बाहरी हिस्से मंडुआडीह स्थित डीजल रेल इंजन कारखाने से लंका के बीएचयू गेट तक का सड़क ही रहा। आपने इस चुनावी साल के जनवरी महीने में बनारस में प्रवासी भारतीय सम्मेलन पर अरबों रूपए खर्च कर वाहवाही बटोरी। इस आयोजन का मकसद आज तक कोई समझ नहीं सका। आपने प्रवासियों को बनारस के गली कूचे में तमाम सारी जानकारी दिलवायी लेकिन अफसोस कि इन बीते पांच सालों में आप खुद आज तक कभी किसी गली में गये ही नहीं। आपने जापान के पीएम शिंजो अबे से लेकर फ्रांस के राष्ट्रपति तक के साथ कई बार स्टीमर पर बैठकर गंगा यात्रा की लेकिन जनाब आपने कभी इन घाटों की उन सीढ़ियों पर अपने चरण नहीं धरे जिन पर लेट कर कबीर ने अपने गुरू से राम राम कहो का ज्ञान हासिल किया। आपने कभी तुलसी घाट के उस हुजरे को भी नहीं देखा जहां बाबा तुलसी दास ने रामचरित मानस लिखा। आपने रविदास मंदिर में मत्था टेक कर पंजाब के लिए अपना राजनीतिक मंतव्य साधने का प्रयास जरूर किया लेकिन मोदी जी आपने कभी उस सारनाथ को जानना नहीं चाहा जहां तथागत बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। सारनाथ में आपकी दिलचस्पी शायद इसलिए नहीं थी क्योंकि आपके सलाहकारों ने आपको शायद ये समझा दिया था कि बुद्ध को मानने वाले तो किसी और पार्टी के वोट बैंक हैं। हां याद आया आप इस पूरे टेन्योर में एक बार कालभैरव गये थे। वो भी इसलिए कि जब आपने देखा कि हर बार आपके बनारस आगमन पर बिन मौसम बरसात हो जाती है और कुछ न कुछ हादसा हो जाता है। तो ऐसे में आपको मशवरा देने वाला बुद्धिमान गिरोह बनारसियों के दबाव में आ गया और आपकी वहां हाजिरी लगवा दी गयी।

मोदी जी, बनारस का इतिहास बहुत पुराना है। यहां के प्राग ऐतिहासिक मंदिरों का अपना वजूद है। यहां के मोहल्लों का भी अपना एक तिलिस्म है। गुस्ताखी माफ सर, काशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के नाम पर आपने एक पूरे इलाके की जिस तरह से कुर्बानी ली है, इसके लिए इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा। ज्ञानवापी से लेकर सरस्वती फाटक तक और फिर लाहौरी टोला से लेकर ललिता घाट तक के लोगों को आपने अपने इगो के लिए जबरन पैसे देकर जिस तरह उजाड़ा है उसे पुश्तों तक दर्द के साथ याद रखा जाएगा। साहब, ये लोग अतिक्रमणकारी नहीं थे। ये तो वो लोग थे जो पार्टीशन के वक्त पाकिस्तान से उजड़ कर यहां आये थे। ये वो लोग थे जिन्हें उस जमाने में रिफ्यूजी कहा गया। लाहौर में अपना सब कुछ गंवा कर लौटे इन लोगों को जहां जगह मिली बनारस ने अपने साथ रचा बसा लिया। इसलिए इस मोहल्ले का नाम लाहौरी टोला रखा गया। आपकी जानकारी के लिए साहेब, ये सब के सब हिन्दू थे, जिनकी खैरख्वाही का आप दम भरते हैं। अफसोस की हिन्दूत्व की आपकी झंडाबरदारी सच नहीं है। आपने उन्हें उजाड़ा है। आपको पता है, खत्री पंजाबी बिरादरी से लेकर राजस्थानी गौड़ सारस्वत ब्राह्मण बिरादरी तक के ये लोग उजाड़े जाने के बावजूद हर रोज इस इलाके में आते हैं और यहां के मिट्टी की सोंधी खूशबू अपने फेफड़ों में भर कर जाते है। जानते हैं क्यों ? क्योंकि आपके बहुत ज्यादा मुआवजा देने के बावजूद अपनी जड़ो से दोबारा बेदखल किये जाने का दर्द उन्हें रातों में सोने नहीं देता।

मुआवजे की बात के साथ एक बात याद आयी। मोदी जी, आपने कहा कि 44 मंदिरों पर अवैध कब्जा था। लोगों ने उसे घेर कर घर बनवा लिया था। जनाब यह पूरी तरह से फरेब है। झूठ है। बेइमानी है। आपको शायद नहीं मालूम होगा कि हूण, तुगलक और मुगलों ने देश के तमाम मंदिरों के साथ बनारस के मंदिरों पर भी हमले किये। उन्हें ढ़हाया। उसे नष्ट किया और लूटा। उस जमाने में मोहल्ले के लोगों ने इन प्राचीन मंदिरों को आक्रमणकारियों से छिपाने के लिए उसके इर्द गिर्द दीवार खड़े किये। उस जमाने जान हथेली पर रख कर वहां पूजा पाठ का क्रम बनाये रखा। ऐसे में क्या उन्हें अतिक्रमणकारी कहना चाहिए। आप बेशक होंगे प्रधानमंत्री लेकिन किसी को बेइमान कहने का हक तो आपको संविधान भी नहीं देता जनाब। चलिए मान लेते हैं कि 40 हजार वर्ग मीटर में आने वाले 280 मकान अतिक्रमण ही थे तो साहेब, आपने या आपकी सूबाई सरकार ने संविधान की किस धारा के तहत इन अतिक्रमणकारियों को करोड़ो का मुआवजा दे दिया ? इन्हें तो कायदे से जेल में डाला जाना चाहिए था फिर आपने कैसे यह सब होने दिया ? आपको शायद पता होगा कि पांच सौ फीट के एक मकान का मुआवजा एक करोड़ रूपए दिया गया, जबकि उसकी कीमत महज कुछ लाख ही थी। कुछ रसूख वालों को तो आपके चहेते योगी आदित्यनाथ की सरकार ने नौ करोड़ का मुआवजा दिया। सर, ऐसा क्यों ? योगी जी की सरकार में इसी क्षेत्र से आने वाले एक नये मंत्री से लेकर कभी शिवसेना के नाम पर राजनीति करने वाले इस इलाके के एक छोटभैया नेता तक ने घर उजाड़े जाने के इस धंधे में अरबों रूपए कूट डाले।

सर, आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आपको कुछ पता ही नहीं रहा। आपको इस बात का भी पता है कि इन रिफ्यूजीस के घर उजाड़ने में किसने कितनी दलाली ली। सुन कर शर्म आती है कि आपकी सरकार ने बनारस के लोगों को सिर्फ दलाली के टुकड़े फेंके और औरंगजेब सरीखे इन आततायियों ने अपनों का सिर कलम कर दिया। बाकी धंधे का असली माल तो गुजरात से आये धंधेबाजों ने आपस में बांट लिया। काॅरिडोर कैसे बनेगा और उसमें कहां क्या बनेगा ये सब तो गुजरात के हाथ लगा है। इसके पीछे दलालों की दलील है कि हमारे यहां ईमान नहीं है। साहेब, ये कह कर तो आपने पूरे बनारस को बेइमान घोषित कर दिया। सब रिकाॅर्डेड है साहेब कि पिछले पांच सालों में बनारस में जो कुछ भी तथाकथित विकास हुआ उसमें बनारस के हाथ कुछ नहीं लगा। एक भी ठेका बनारस वालों को नहीं दिया गया। सबके सब गुजरात वालों को। वो गुजराती ठेकेदार अपने साथ मजूदर भी लेकर आये। क्या हम बनारसी मजदूरी के लायक भी नहीं हैं ? मोदी जी, क्या हम इतने खराब हैं कि आप हमें मजदूरी के लायक भी न समझें ? सर, ये कुछ चंद सवालात बनारस वालों का इगो नहीं है, ये ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनके जवाब आपके पास तो क्या संघ के पुरोधाओं के पास भी नहीं हैं। आपकी सूबाई सरकार ने काॅरिडोर के नाम पर दर्जनों मंदिर तोड़े हैं। इन मंदिरों से उखाड़ कर फेंके गये देवी देवताओं के सैकड़ों विग्रह और शिवलिंग अक्सर ही किसी काॅलोनी के खाली पड़े प्लाॅट में कूड़े के बीच पड़े मिलते हैं। साहेब, ये विग्रह नहीं उन देवताओं की रूहें हैं जिनकी प्राण प्रतिष्ठा कर कई पुश्तों ने इन्हें पूजा था। ये रूहें आज लाहौरी टोला के लोगों को सोने नहीं दे रही हैं लेकिन यकीन मान लीजिए जनाब की चुनाव बाद आप और आपकी पार्टी भी चैन से सो नहीं पाएगी। क्योंकि हिन्दूत्व के नाम पर आपने पाप किया है।

1989 में जब मंडल सिफारिशों को केंद्र की नौकरियों में लागू किया गया था तब विश्वविद्यालयों में गैर आरक्षित छात्रों का विशाल बहुमत था।अनुसूचित जाति/जनजाति का दाखिले में आरक्षण था।अन्य पिछड़े वर्गों के लिए दाखिले में आरक्षण न था।समाजवादी युवजन सभा दाखिले के मामले में ‘खुला दाखिला,सस्ती शिक्षा-लोकतंत्र की सही परीक्षा’ मानती थी। ‘खुला दाखिला’ का मतलब था जिसने भी पिछली कक्षा पास की हो और आगे पढ़ना चाहता हो उसे दाखिला मिले।यह सिद्धांत लागू हो तो दाखिले में आरक्षण का सवाल बेमानी हो जाता। 1977 में काशी विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष चंचल कुमार ने ‘खुला दाखिला’ करवाया था।यह अपवाद था।शिक्षा व्यवस्था की छलनियाँ लगातार छंटनी करती जाती है।सीट घटाना,फीस बढ़ाना,प्रवेश परीक्षा करना छंटनी के प्रिय औजार होते हैं।इस पूरी प्रक्रिया से निकली मलाई व्यवस्था को चलाती है,यथास्थिति तीजै रखती है ।
बहरहाल,1989 में विश्वविद्यालय मंडल विरोध का केंद्र बने और कुछ युवकों ने आत्मदाह द्वारा आत्महत्या की कोशिश की। इसी समूह ने मेरे जैसे आरक्षण समर्थक को जलाने की योजना बनाई थी।समाजवादी साथी और जिगरी दोस्त महताब आलम की मुस्तैदी से आग लगाने जैसा कुछ न हो सका।कुछ गुंडों ने मुझ पर हमला जरूर किया था।आरक्षण समर्थन की पहल परिसर के छात्रावासों के बाहर लॉजों,देहातों, कचहरी और पटेल धर्मशाला जैसे केंद्रों से होती थी।समता संगठन के साथी सुनील ने मंडल रपट का गहराई से अध्ययन किया था।वे हमारी गोष्ठियों में देश समाज के लिए आरक्षण का महत्व समझाते थे।मंडल आयोग में पिछड़ेपन के आकलन के लिए किन कारकों को गणना में लेकर इंडेक्स बनाया गया था,सुनील बताते थे।सामाजिक यथास्थिति को धक्का लगा था। CII,ASSOCHAM और FICCI जैसे पूंजीपतियों के संगठन ने मंडल का विरोध किया।मधु लिमये,किशन पटनायक, राजकिशोर,मस्तराम कपूर और सुनील जैसों के अग्रलेख सामाजिक न्याय को ताकत और दिशा देते थे।
1977 में प्रशासनिक सेवाओं में भारतीय भाषाओं के माध्यम की इजाजत से भी इस प्रकार का सकारात्मक तब्दीली आई थी।एक मौन क्रांति हुई जब अर्जुन सिंह ने गैर आरक्षित सीटों को बढ़ाते हुए दाखिले में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण देना शुरू किया।इसके पहले तक अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र शिक्षा केंद्रों में अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों से अधिक संगठित थे।
मुझे 76-77 के दौर में हर साल नतीजे घोषित करते वक़्त लोक सेवा आयोग द्वारा यह प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया जाता था कि आरक्षित वर्ग के कितने परीक्षार्थी सामान्य सीटों पर चुने गए।यह आंकड़ा आरक्षण नीति की सफलता का द्योतक है। 8 लाख की आमदनी वाले सवर्णों को ‘आरक्षण’ देकर न सिर्फ गरीब सवर्णों के साथ अन्याय हुआ अपितु आरक्षित वर्गों के उन मेधावी बच्चों के साथ भी अन्याय हुआ है जो गैर आरक्षित सीटों पर खुली स्पर्धा में चुने जाते।मैंने ‘ ‘ का इस्तेमाल इसलिए किया कि आरक्षण ‘गरीबी हटाओ’ या ‘रोजगार दो’ का कार्यक्रम नहीं होता,एकाधिकार हटाने और नुमाइंदगी का औजार है।किशन पटनायक कहते थे साध्य नहीं साधन है आरक्षण,साध्य है समतामूलक समाज।
5 मार्च के भारत बंद का केंद्र विश्विद्यालय बने इसकी बहुत तसल्ली है।विश्विद्यालयों की छात्र- आबादी का स्वरूप बदल चुका है।ज्यादा चर्चा नहीं हो रही इसलिए यह भी दर्ज कर रहा हूँ कि जातिवार जनगणना और सार्वजनिक क्षेत्रों की सुरक्षा भी इस ‘भारत बंद’ के मुद्दे थे।भूलो मत! भूलो मत!