युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी के जिस कार्यक्रम को अधिक सफलता मिली है , वह है बहिष्कार । सीजर ने देखा कि केवल हड़ताल से काम बनता नहीं और एक मजदूर की जगह लेने के लिये अन्य मजदूर तैयार हैं , तो उसने दूसरा उपाय बहिष्कार का सोचा । अमरीका के बड़े – बड़े शहरों में जाकर उसने लोगों को यह समझाया कि केलिफोर्निया के उन उत्पादकों के अंगूर मत खरीदिए , जो अत्याचारी हैं और मजदूरों पर अन्याय कर रहे हैं । ये अंगूर एक खास प्रकार के होते हैं । इसलिए ग्राहकों के लिए पहचानना आसान होता है । बहिष्कार का यह कार्यक्रम काफी सफलता पा रहा है । इस समय अमरीका के कुछ प्रमुख शहरों में तथा इंग्लैण्ड , केनेडा , आयर्लैंड आदि कुछ देशों में भी केलिफोर्निया के उन अंगूरों की दूकानें बन्द हैं । इसके कारण सारे आन्दोलन को काफी प्रसिद्धि भी मिली है ।
भूपतियों के क्रोध का सीजर को कई बार शिकार बनना पड़ा है । उसकी सभाओं में उस पर अंडे फेंके गये हैं । लेकिन फिर भी उसके व्याख्यान जारी रखने पर उसी श्रोता – मंडली ने उसका उत्साह से अभिनन्दन किया है । आंदोलन को बदनाम करने के लिये कुछ हिंसक उपद्रवियों को उसमें घुसाने की चेष्टा भी की गयी है । लेकिन त्याग और तपस्या पर अधिष्ठित इस आंदोलन में ऐसे तत्व अधिक दिनों तक टिक नहीं पाये हैं ।
१९६६ में सीजर और उसके साथियों ने अपने स्थान डेलेनी से केलिफोर्निया की राजधानी सेक्रामेन्टो तक की ३०० मील की पद-यात्रा की । इस पद-यात्रा को बहुत अच्छी प्रसिद्धि मिली । पद-यात्रा का उद्देश्य था राजधानी में गवर्नर से भेंट करना। लेकिन पूरी यात्रा समाप्त करके जब पचास पद-यात्री सेक्रामेन्टो पहुंचे , तब बारिश में भीगते हुए उनके साथ और कई जाने – माने लोग और हजारों नागरिक शामिल हो गये थे । गवर्नर साहब ने इन लोगों से भेंट करने की अपेक्षा शनि और रविवार की छुट्टी मनाने के लिए चला जाना अधिक पसंद किया । लेकिन उसी समय अंगूर-उत्पादकों की एक बड़ी कम्पनी श्चेन्लीवालों ने मजदूरों के साथ एक कान्ट्रैक्ट पर दस्तख़त किये , जिसके अनुसार मजदूरों को प्रति घण्टे पौने दो डालर मजदूरी देने का तय हुआ । यह मजदूरों के लिए आज तक हुई सबसे बड़ी जीत थी ।
सीजर की एक पद्धति ने उसे न चाहते हुए भी काफी प्रसिद्धि दी है । वह है अनशन । उसने आज तक अनेक बार अनशन किये हैं । सीजर को गांधी का चेला करार देनेवाला भी शायद यही सबसे बड़ा तत्व होगा ।
अनशन के बारे में सीजर कहता है :
” मैंने अपने काम का आरम्भ ही अनशन से किया था । किसी पर दबाव डालने या अन्याय का प्रतिकार करने के लिए नहीं । मैंने तो सिर्फ़ इतना ही सोचा था कि एक बड़ी जिम्मेवारी का काम ले रहा हूँ । गरीब लोगों की सेवा करनी है । सेवा करने के लिए कष्ट उठाने की जो तैयारी होनी चाहिए , वह मुझमें है या नहीं , इसीकी परीक्षा करने के लिए वे अनशन थे । “
लेकिन हर वक्त इसी उद्देश्य से उपवास नहीं हो सकते थे । बीच में एक बार उसने उपवास इसलिए किए थे कि उसे लग रहा था कि उसके साथियों में अहिंसा पर निष्ठा कम हो रही है । चुपचाप उपवास शुरु कर दिये । पहले तीन – चार दिन तक तो उसकी पत्नी और आठ बच्चों को भी पता नहीं चला कि सीजर खा नहीं रहा है । लेकिन फिर उसने अपनी शैय्या युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी के दफ्तर में लगा ली । सिरहाने गाँधी की एक तसवीर टँगी हुई है । बगल में जोन बाएज़ के भजनों के रेकार्ड पड़े हैं । कमरे के बाहर स्पैनिश क्रांतिकारी एमिलियानो ज़पाटा का एक पोस्टर लिखा था : ‘ विवा ला रेवोल्यूशियो’ जिसका अर्थ होता है – इन्कलाब जिन्दाबाद । दूसरी ओर मार्टिन लूथर किंग की तसवीर । “उपवास का सबसे बड़ा असर मुझ ही पर हुआ ” सीजर ने कहा । गाँधी के बारे में मैंने काफी पढ़ा था । लेकिन उसमें से बहुत सारी बातें मैं इस उपवास के समय ही समझ पाया । मैं पहले तो इस समाचार को गुप्त रखना चाहता था , लेकिन फिर तरह तरह की अफवाहें चलने लग गयीं । इसलिए सत्य को प्रकट करना पड़ा कि मैं उपवास कर रहा हूँ । लेकिन मैंने साथ ही यह भी कहा कि मैं इसे अखबार में नहीं देना चाहता हूँ , न हमारी तसवीरें ली जानी चाहिए । बिछौने में पड़े – पड़े मैंने संगठन का इतना काम किया , जितना पहले कभी नहीं किया था । उपवास के समाचार सुनकर लोग आने लगे । दसेक हजार लोग आये होंगे । खेत – मजदूर आये । चिकानो तो आये ही , लेकिन नीग्रो भी आये , मेक्सिकन आये , फिलिपीन भी आये । मुझे यह पता नहीं था कि इस उपवास का असर फिलिपीन लोगों पर किस प्रकार का होगा । लेकिन उन लोगों की धार्मिक परम्परा में उपवास का स्थान है । कुछ फिलिपीन लोगों ने आकर घर के दरवाजे , खिड़कियों रँग दिया , कुछ ने और तरह से सजाना शुरु किया । ये लोग कोई कलाकार नहीं थे । लेकिन सारी चीज ही सौन्दर्यमय थी । लोगों ने आकर तसवीरें दीं । सुन्दर सुन्दर तसवीरें । अक्सर ये तसवीरें धार्मिक थीं । अधार्मिक तसवीरें थीं तो वह जान केनेडी की । और लोगों ने इस उपवास के समय मार्टिन लूथर किंग और गांधी के बारे में इतना जाना , जितना सालभर के भाषणों से नहीं जान पाये । और एक बहुत खूबसूरत चीज हुई । मेक्सिको के केथोलिक लोग वहाँ के प्रोटेस्टेन्ट लोगों से बहुत अलग – अलग रहते थे । उनके बारे में कुछ जानते तक नहीं थे । हम लोग रोज प्रार्थना करते थे । एक दिन एक प्रोटेस्टेन्ट पादरी आया , जो श्चेन्ली में काम करता है । मैंने उसे प्रार्थना सभा में बोलने के लिए निमंत्रण दिया । पहले तो वह मान ही नहीं रहा था , पर मैंने कहा कि प्रायश्चित का यह अच्छा तरीका होगा । उसने कहा कि मैं यहाँ बोलने की कोशिश करूँगा तो लोग मुझे उठाकर फेंक देंगे । मैंने उनसे कहा कि यदि लोग आपको निकाल देंगे तो मैं भी आपके साथ निकल आऊँगा । उन्होंने कबूल कर लिया । भाषण से पहले उनका पूरा परिचय दिया गया , ताकि किसीके मन में यह भ्रम न रहे कि यह केथोलिक है । उनका भाषण अद्भुत हुआ । मैथ्यू के आधार पर उन्होंने अहिंसा की बात की । लोगों ने भी बहुत ध्यान से और उदारता से उनको सुना । और फिर तो हमारे पादरी ने जाकर उनके गिरजे में भाषण किया । “
शियुलकिल नदी के किनारे कई घण्टों तक बातें हुई । इन बातों में सीजर की जिज्ञासा ने मुझे श्रोता न रखकर वक्ता बना दिया था । मेरे पिताजी का गांधी से मिलन , प्यारेलाल और पिताजी का सम्बन्ध , राम – नाम पर गांधीजी की आस्था , प्राकृतिक चिकित्सा पर श्रद्धा , विनोबा का व्यक्तित्व , भूदान और ग्रामदान की तफसील , शांति – सेना के बारे में , सब कुछ उसने पूछ डाला । उठने से पहले मैंने सीजर से दो प्रश्न किये । पहला प्रश्न था : ” अहिंसा की प्रेरणा आपको कहाँ से हुई ? ” उसने कहा : ” मेरी माँ से । बचपन ही से वह हम बच्चों को यही कहती रहती थी कि बड़ों से डरना नहीं चाहिए और झगड़ा हो तो उनको सामने मारना भी नहीं चाहिए । मैंने इस उद्देश्य को अपने खेलों में बड़ों के साथ झगड़ा होने पर आजमाकर देखा । मैं बड़ों से डरता नहीं था , लेकिन उनको मारता भी नहीं था । मैंने देखा कि इसका काफी असर होता है । शायद इसीसे अहिंसा के बारे में मेरी श्रद्धा के बीज डाले गये होंगे । “
दूसरा प्रश्न था : ” गांधी के बारे में आप कब और किस प्रकार आकर्षित हुए ? “
उसके जवाब में सीजर ने एक मजेदार किस्सा बताया : ” १९४२ में मैं १५ साल का था । एक सिनेमा की न्यूज रील में गांधी के आन्दोलन के बारे में कुछ चित्र दिखाये गये । मैंने देखा कि एक दुबला – पतला- सा आदमी इतनी बड़ी अंग्रेज सरकार का मुकाबला कर रहा है । मैं प्रभावित तो हुआ , लेकिन थियेटर से बाहर आने पर उस दुबले-पतले आदमी का नाम भूल गया । तो उसके बारे में अधिक जानकारी कैसे प्राप्त करता ? लेकिन मेरे मन में उस आदमी का चित्र बन गया । अकस्मात एक दिन अखबार में मैंने उसी आदमी की तसवीर देखी । मैंने लपककर अखबार उठा लिया और उस आदमी का नाम लिख लिया । फिर पुस्तकालय में जाकर उनके बारे में जो कुछ भी मिला , पढ़ लिया । “
इस लेख का अन्त हम सीजर शावेज के उस वचन से करेंगे , जो उसने अपने एक अनशन के बाद कहे थे : ” हम अगर सचमुच में ईमानदार हों , तो हमें कबूल करना होगा कि हमारे पास कोई चीज हो तो वह अपना जीवन ही है । इसलिए हम किस प्रकार के आदमी हैं , यह देखना होत तो यही देखना चाहिए कि हम अपने जीवन का किस प्रकार उपयोग करते हैं । मेरी यह पक्की श्रद्धा है कि हम जीवन को देकर ही जीवन को पा सकते हैं । मुझे विश्वास है कि सच्ची हिम्मत और असली मर्दानगी की बात तो दूसरों के लिए अपने जीवन को पूरी तरह अहिंसक ढंग से समर्पण करने में ही है । मर्द वह है , जो दूसरों के लिए कष्त सहन करता है । भगवान हमें मर्द बनाने में सहायता करें । “
बहुत ज़बरदस्त रही यह लेखमाला. शावेज़ का व्यक्तित्व विराट था और उनका दर्शन बहुत सीधा-स्पष्ट – सामान्य जनों की मुक्ति अन्तिम उद्देश्य उनके सामने हर समय रहता था.
पूरी लेखमाला का बाकायदा प्रिन्ट निकाल कर रख लिया है. आपका बहुत धन्यवाद इस अविस्मरणीय श्रृंखला के लिए.
रोचक और जानकारीपूर्ण लेख ! पढवाने के लिए धन्यवाद !
हम अगर सचमुच में ईमानदार हों, तो हमें कबूल करना होगा कि हमारे पास कोई चीज हो तो वह अपना जीवन ही है।
सचमुच में ईमानदारी सब से प्राथमिक और सबसे बड़ी चीज है। यही समझ लोगों को जोड़ती है और उन्हें बदलती हुई किसी भी रास्ते से मंजिल तक पहुँचा सकती है।
आलेख ने बहुत कुछ सिखाया। समाज परिवर्तन के लिए हमेशा नए रूप चुनता है। सीजर शावेज ने भी परिवर्तन का एक नया रूप चुना और सफलता पाई।
धन्यवाद! शावेज़ को सच्ची श्रद्धांजली के तौर पर अमेरिका के मजदूर संगठन सरकार से एम्पलाई फ्री चॉयस एक्ट पास करने की मांग भी कर रहे हैं. शावेज़ पर पुस्तक लिख चुके रैंडी शा का यह आलेख देखें.
http://www.huffingtonpost.com/randy-shaw/yes-obama-can-honor-cesar_b_180596.html
आभार एक बेहतरीन आलेख प्रस्तुत करनेके लिये –
[…] शावेज से मुलाकात’ : नारायण देसाई सीजर शावेज के आन्दोलन में बॉयकॉट और अन… […]