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Posts Tagged ‘इस्लाम’

सारांश यह है कि इस्लाम का यह सच्चा स्वरूप है । इसे ठीक – ठीक पहचानना चाहिए और उसका सार ग्रहण कर लेना चाहिए । इन्हीं सब के आधार पर इस्लाम टिका हुआ है ,किसी जोर जबरदस्ती के आधार पर नहीं ।  कुरान में साफ़ तौर पर कहा गया है , ला इकराह फ़िद्दीन ’ – धर्म की बाबत कत्तई जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती । इस बात का कथित मुसलमानों द्वारा कई बार भंग हुआ है , परंतु यह मूलत: इस्लाम के विरुद्ध है । इस्लाम तो यह ही कहता है कि धर्म- प्रचार में जबरदस्ती हो ही नहीं सकती । बस , आप धर्म के विचार लोगों के समक्ष रख दीजिए ।

बरसों पहले इस्लाम के एक अध्येता मोहम्मद अली ने मुम्बई में कहा था कि कुरान के उपदेशों की बाबत हिंदुओं या ईसाइयों के मन में उपजी विपरीत भावनाओं के लिए ऐसे थोड़े से मुसलमानों की जिम्मेदारी  है, जिन्होंने कुरान के उपदेश के विरुद्ध आचरण किया ।

अलबत्ता , यह पाया जाता है कि कि मुसलमानों ने अपनी संस्कृति के विकास के लिए दो मार्ग अपनाये – एक हिंसा का तथा दूसरा प्रेम का । दोनों मार्ग दो धाराओं की तरह एक साथ चले । हिंसा के साथ हम गजनी , औरंगजेब का नाम ले सकते हैं , तो दूसरी तरफ़ प्रेम मार्ग के साथ अक़बर और फ़कीरों के नाम ले सकते हैं । इसलिए यह मान्यता रूढ़ हो गई है कि मुसलमानों ने तलवार के बल पर धर्म – प्रचार किया , यह संपूर्ण सत्य नहीं है, बल्कि अत्यल्प सत्य है , केवल तलवार के बल पर दुनिया में कुछ संभव नहीं है।

एक बात समझने लायक है । तलवार के बल पर सब कुछ संभव है यह मानना वैसा ही है मानो रेत की बुनियाद पर बड़ा मकान खड़ा कर लेना । यह असंभव है । हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन्हीं बीजों में से अंकुर फूटता है , जिनमें सत्व होता है । हम जब कचरे को धूल के ढेर में डालते हैं तब उसके साथ एकाध जौ का दाना भी चला जाता है । कचरा तो फिर कचरा है , वह सड़ जाता है। परन्तु वह दाना है जिसमें से अंकुर फूटता है। हमारे ध्यान में यह बात नहीं आती । यदि दाना सजीव न हुआ तो अंकुर नहीं फूटता । यह बात संस्कृतियों पर भी लागू होती है । किसी आंतरिक सत्व के बिना संस्कृतियां प्रस्फुटित नहीं होतीं ।

कई बार पश्चिम की संस्कृति की बाबत भी हम कह देते कि वह पशुबल के आधार पर विजयी हुई है। यह बिलकुल स्थूल दृष्टि है । उन्हें जो सफलता मिली है वह उनकी उद्यमशीलता,सहकार्य की वृत्ति ,कष्ट तथा संकट सहन कर लेने की हिम्मत , एक-एक विषय के पीछे पागल बन पूरी जिन्दगी उसके लिए न्योछावर कर देने की तैयारी आदि गुणों के कारण मिली है । हमें झट तलवार या पशुबल दीखता है,परंतु तलवार लंगड़ी होती है, बुनियाद में तो गुणों की राशि ही होती है ।

फकीर आम जनता में हिल-मिल गए

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस्लाम का प्रचार तलवार के जोर पर नहीं हुआ है । मुसलमानों में सैंकड़ों संत हो गए , औलिया हो गए , फकीर हो गए । इस वजह से ही इस धर्म का ज्ञान दुनिया भर में फैला । जैसे बुद्ध के अनुयाई दुनिया के चारों ओर गए , वैसे ही इस्लाम के संत और फकीर भी गए । इस्लाम का प्रचार मुसलमान राजाओं ने नहीं , फकीरों ने किया । उस वक्त हिन्दुस्तान की आम जनता पर फकीरों का कितना अधिक प्रभाव था,उसका अनुमान आप छत्रपति शिवाजी के इस कथन से लगा सकते हैं,जिसमें उन्होंने कहा कि हिन्दु धर्म की रक्षा के लिए मैंने फकीरी अपनाई है । यानि ’फकीरी’ शब्द सामान्य बोलचाल की भाषा में दाखिल हो गया था । जनता के दिल में फकीरी के लिए इतना आदर था । फकीर आम जनता में हिल-मिल गए थे । हिंदु अपनी संतान का नाम भी इस्लामी संतों के नाम पर रखते थे ! अरे,शिवाजी के पिता का नाम शाहजी था, जो एक मुसलमान संत का नाम है !

इसलिए हमें इस्लाम के विषय में अपनी कई गैर-समझ और ग्रंथियों को दूर कर लेना चाहिए , तथा इस्लाम की असली पहचान हासिल करनी चाहिए व विकसित करनी चाहिए ।

(संकलित)

इस्लाम का पैगाम / ब्याजखोरी का तीव्र निषेध / विनोबा

इस्लाम का पैगाम / एकेश्वरवाद का बहुमूल्य संदेश और जकात/ विनोबा

इस्लाम की असली पहचान : मानव – मानव का नाता बराबरी का है / विनोबा

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इस्लाम ने ब्याजखोरी का भी तीव्र निषध किया है । सिर्फ़ चोरी न करना इतना ही नहीं , आपकी आजीविका भी शुद्ध होनी चाहिए । गलत रास्ते से की गई कमाई को शैतान की कमाई कहा गया है । इसीलिए ब्याज लेने की भी मनाही की गई है । कहा गया है कि सूद पर धन मत दो , दान में दो ।

मोहम्मद साहब को दर्शन हुआ कि ब्याज लेना आत्मा के विरुद्ध काम है । कुरान में यह वाक्य पाँच-सात बार आया है – ” आप अपनी दौलत बढ़ाने के लिए ब्याज क्यों लेते हैं ? संपत्ति ब्याज से नहीं दान से बढ़ती है । ” बारंबार लिखा है कि ब्याज लेना पाप है , हराम है । इस्लाम ने इसके ऊपर ऐसा प्रहार किया है , जैसा हम व्यभिचार या ख़ून की बाबत करते हैं । परंतु हम तो ब्याज को जायज आर्थिक व्यवहार मानते हैं ! वास्तव में देखिए तो ब्याजखोरी, रिश्वतखोरी वगैरह पाप है । ब्याज लेने का अर्थ है , लोगों की कठिनाई का फायदा उठाते हुए पैसे कमाना । इसकी गिनती हम लोग कत्तई पाप में नहीं करते ।

वास्तव में देखा जाए तो अपने पास आए पैसे को हमें तुरंत दूसरे की तरफ़ धकेल देना चाहिए । फ़ुटबॉल के खेल में अपने पास आई गेंद हम अपने ही पास रक्खे रहेंगे , तो खेल चलेगा कैसे ? गेंद को खुद के पास से दूसरे को फिर तीसरे को भेजते रहना पड़ता है , उसीसे खेल चलता है । पैसा और ज्ञान , इन्हें दूसरे को देते रहेंगे तब ही उनमें वृद्धि होगी ।

मेरा मानना है कि ब्याज पर जितना प्रहार इस्लाम ने किया है किसीने नहीं किया है । ब्याज पर इस्लाम ने यह जो आत्यंतिक निषेध किया है , उसको समाज को कभी न कभी स्वीकार करना ही पड़ेगा । वह दिन जल्दी आना चाहिए , हमें उस दिन को जल्दी लाना चाहिए । एक बार ब्याज का निषेध हो गया , तो संग्रह की मात्रा बहुत घट जाएगी । इस्लाम ने ब्याज न लेने का यह जो आदेश दिया है , उसका यदि अमल किया जाए तो पूँजीवाद का ख़ातमा ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगा । जिसे हम सच्चा अर्थशास्त्र कहते हैं उसके बहुत निकट का यह विचार है । मुझे लगता है कि साम्यवाद की जड़ का बीज मोहम्मद पैगम्बर के उपदेश में है । वे एक ऐसे महापुरुष हो गये जिन्होंने ब्याज का निषेध किया तथा समता का प्रचार किया । इस उसूल को उन्होंने न सिर्फ़ जोर देकर प्रतिपादित किया बल्कि उसकी बुनियाद पर संपूर्ण इस्लाम की रचना उन्होंने इस प्रकार की , जैसी और किसी ने नहीं की ।

वैसे तो ब्याज लेने की बात पर सभी धर्मों ने प्रहार किया है । हिंदु धर्म ने ब्याज को ’ कुसीद ’ नाम दिया है , यानि खराब हालत बनाने वाला, मनुष्य की अवनति करने वाला । उसके नाम मात्र में पाप भरा है । ब्याज न लेना यह चित्तशुद्धि का काम है , पापमोचन है । ब्याज लेना छोड़ना ही चाहिए । वैसे, ब्याज के विरुद्ध तो सभी धर्मों ने कहा है परन्तु इस्लाम जितनी स्पष्टता और प्रखरता से अन्य किसी ने भी नहीं कहा है ।

जारी

[ अगला : धर्म के मामले में कदापि जबरदस्ती नहीं की जा सकती ।

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इस्लाम का एकेश्वर का संदेश भी बहुमूल्य है । सूफ़ी संत और फ़कीर महाराष्ट्र में भी गाँव – गाँव घूमते हुए, ’ईश्वर एक है ’ कहते रहे । उसी दौर में महाराष्ट्र का एक व्यक्ति पैदल ही निकला और ठेठ पंजाब तक घूम आया । वह पंजाब में बीस साल रहा । वे थे , नामदेव । नामदेव ने भी कहा कि हम भी एक ईश्वर में ही मानते हैं ; परंतु विविध देवताओं की पूजा करते – करते ईश्वर के एकत्व का यह विचार लगभग भुला चुके हैं । इसलिए नामदेव ईश्वर के एकत्व का पुन: प्रतिपादन करने लगे । उन्होंने कहा कि एक बार जब राजा से मुलाकात हो जाती है तब सेवकों को कौन पूछता है ? गणेश ,शारदा आदि तो ईश्वर के सेवक हैं । स्वामी के साक्षात दर्शन हो जाने के बाद चाकरों की क्या जरूरत ? नामदेव ने एक भजन में यह भी कहा कि मन्दिर – मस्जिद दोनों की पूजा छोड़ो तथा जो अंतर्यामी ईश्वर है उसकी तरफ़ रुख़ करो ।

बंगाल में भी इस्लाम और ईसाइयत का बहुत असर था । तब वहां राजा राममोहन राय और देवेन्द्रनाथ टैगोर जैसे लोग खड़े हुए । उन्होंने कहा कि अपने यहाँ भी एकेश्वर की बात कही गई है । श्वेताश्वर उपनिषद में एकेश्वर का प्रतिपादन करने वाले अनेक वचन मिलते हैं । श्वेताश्वर कहता है – ’ एको हि रुद्र: ’। इन लोगों ने श्वेताश्वर उपनिषद का अध्ययन किया । ब्रह्मोसमाज की प्राथना में श्वेताश्वर उपनिषद के कुछ श्लोक भी गाये जाते हैं । ईश्वर ’ एकमेवाद्वितीयम ’ है । ईश्वर एक और अद्वितीय है , उसकी कौन सी उपमा दी जा सकती है? ईश्वर एक ही है। उसके जैसा अन्य कुछ नहीं ।

यह भी पता चलता है कि चैतन्य महाप्रभु हों,कबीर दास हों या गुरु नानक हों सभी के जीवन और चिंतन पर जितना असर वैष्णव धर्म का पड़ा है, उतना ही कुरान का भी पड़ा है ।  नानक ने तो ’जपुजी’ में क़ुरान का उल्लेख भी किया है । सिखों के गुरुग्रंथसाहब में भी गुरुओं की वाणी के साथ ही साथ मुसलमान संत बाबा फ़रीद की वाणी भी है । सभी संतों के हृदय एक होते हैं । गुरु ग्रंथसाहब में ऐसे विचार जगह-जगह देखने को मिल जायेंगे , ’ भले वेद हो या कुरान ,जो सार है तो वह है भगवान का नाम,और उसे हमने लिया है । “

नियमित जकात दो !

इसी प्रकार इस्लाम का एक अन्य संदेश है,जकात का तथा ब्याज के निषेध का । कुरान में आता है,’… व आत ज़ जकात ’ – जकात (नियमित दान ) देना चाहिए । खैरात तथा जकात । खैरात यानि ईश्वर के प्रति प्रेम से प्रेरित हो अनाथ , याचकों आदि को धन देना । जकात यानि नियमित दान । ’ …व मिम्मा रजाक्नाहुम युन्फ़िकून ’ – जो  कुछ भी तेरे पास है , उसमें से दूसरे को देना चाहिए । देना धर्म है तथा यह सब पर लागू होता है , इसलिए गरीब भी दें । देने का धर्म हर व्यक्ति को निभाना है । जो कुछ थोड़ा सा भी मिलता हो उसमें से पेट काट कर देना चाहिए । किसान क्या करता है ? जब फसल आती है तब उसमें से सर्वोत्तम बीज अलग से रख लेता है । अस्गले साल बोने के लिए । खुद के लिए खाने भर का न हो तब यह  बियारण निकाल लेता है,उसे नहीं खाता । देखा जाए तो यह उसकी क़ुरबानी है । इस पर अल्लाह खुश होता है तथा उसे बियारण का दस गुना करके देता है । इसी वजह से हर व्यक्ति को अपना फ़र्ज अदा करना चाहिए ।

पानी से हमे सबक लेना चाहिए । जैसे पानी हमेशा नीचे की तरफ़ दौड़ता है,वैसे ही हमे भी समाज के सबसे दु:खी,गरीब की इमदाद (सहायता ) में दौड़ पड़ना चाहिए । मुझे दो रोटियों की भूख है और मेरे पास एक ही रोटी है तो भी मुझे उसमें से एक टुकड़ा दूसरे को देकर ही ख़ुद खाना चाहिए । इसी में मानवता है । यादि आप ऊपर की तरफ़ देखते रहेंगे तब आपको लगेगा कि मुझे अधिक,और अधिक मिलता रहे । इस प्रकार लोभ लालसा बढ़ाने में मानवता नहीं है । यह मनुष्य के भेष में छुपी हैवानियत है ।

एक और बात भी कही है कि आपने जो बहुत बड़ा संग्रह किया है ,उसमें से देने की बात नहीं है । वैसा संग्रह करना तो मूल रूप में ही पाप माना गया है । आप जिसे ’रिज्क’ यानि रोजी कहते हैं , भगवान की कृपा से जो आपको प्रति दिन मिलती है , उसमें से आपको देना है । यह बात सभी के लिए कही गई है ,मात्र रईसों के लिए नहीं । तथा यह सभी धर्मों ने कही है ।

[ जारी ]

अगली कड़ी -’ब्याजखोरों का तीव्र निषेध ’

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[ गुजराती पत्रिका ’ भूमिपुत्र’ में विनोबा भावे के इस्लाम की बाबत विचार प्रकाशित हो रहे हैं । आशा है इस विषय पर समझदारी बनाने में इन से मदद मिलेगी । अफ़लातून ]

यह निर्विवाद हकीकत है कि आरंभिक जमाने में इस्लाम का प्रचार त्याग और कसौटी पर ही हुआ । प्रारंभ में इस्लाम का प्रचार तलवार से नहीं , आत्मा के बल से हुआ । कार्लाइल ने कहा है कि प्रारंभ में इस्लाम अकेले पयगंबर मोहम्मद के हृदय में ही था , न ? तब क्या वे अकेले तलवार लेकर लोगों को मुसलमान बनाने निकले थे ? इस्लाम का प्रचार-प्रसार उन्होंने आत्मा के बल से किया था । सभी प्रारंभिक खलीफ़ा भी धर्म-निष्ठ थे तथा उनकी धर्म-निष्ठा के कारण ही इस्लाम का प्रचार हुआ ।

इस्लाम का मतलब ही है शांति तथा ईश्वर-शरणता । इसके सिवा इस्लाम का कोई तीसरा अर्थ नहीं है । इस्लाम शब्द में ’सलम’ धातु है । जिसका अर्थ है शरण में जाना । इस धातु से ही ’सलाम’ शब्द बना है। सलाम का मतलब शान्ति । इस्लाम का अर्थ पर्मेश्वर की शरण में जाना । परमेश्वर की शरण में जाइएगा तो शान्ति पाइएगा ।

मानव – मानव का नाता बराबरी का है

इस्लाम में सूफ़ी हुए । सूफ़ी यानी कुरान का सूक्ष्म अर्थ करने वाले । भारत में इस्लाम का प्रथम प्रचार सूफ़ियों ने किया । इस वास्ते ही इस्लाम भारत में लोकप्रिय बना । मुस्लिम राजा या लुटेरे तो बाद में आये  , आउर वे आए और लौट गये । परंतु सूफ़ी फ़कीर यहाँ आए और देश भर में घूम कर प्रचार किया । इस्लाम में एक प्रकार का भाईचारा मान्य है । इस्लाम धर्म की यह भाईचारे की भावना हम सब को अपना लेनी चाहिए । यहाँ की ब्रह्मविद्या उससे मजबूत होगी ।

’ सब में एक ही आत्मा बसती है’ – यह कहने वाले हिंदू धर्म में अनेक जातिभेद , ऊँच-नीच के भेद तथा अन्य अनेक प्रकार के भेदभाव हैं । हमारी सामाजिक व्यवस्था में समानता की अनुभूति नहीं होती है । यह एक बहुत बड़ी विसंगति है , विडंबना है ।  जबकि इस्लाम में जैसे एकेश्वर का संदेश है , वैसे ही सामाजिक व्यवहार में संपूर्ण अभेद का भी संदेश है । इस्लाम कहता है कि  , मानव – मानव के बीच किसी प्रकार का भेद नहीं करना चाहिए , मानव – मानव का नाता बराबरी का है । इस्लाम की इस बात का असर भारत के समाज पर पड़ा है ।  हमारे यहाँ जो कमी थी उसको इस्लाम ने पूरा किया । खास तौर पर फ़कीरों और सूफ़ी संतों ने जो प्रचार किया उसका यहाँ बहुत असर पड़ा । कई संघर्ष हुए , लड़ाइयां हुईं, इसके बावजूद बाहर से आई एक अच्छी और सच्ची चीज का यहाँ के समाज पर गहरा असर पड़ा । इस्लाम का यह संदेश बहुत पवित्र संदेश है । [ जारी ]

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