मेरा एक दोस्त है।पुलिस महकमे के सबसे बड़े ओहदे पर था, अवकाशप्राप्ति के समय।30 बरस से रखी अपनी goatee दाढ़ी हटाने के बाद मुझे चीन्हने में उस मित्र को भी दिक्कत हुई तब भरोसा हुआ कि थोबड़े में ‘कारगर’ तब्दीली हुई है।
मोदी-योगी की पुलिस की आंख में थोड़ी सी धूल झोंकने के लिए अब यह उपाय कारगर नहीं रह गया क्योंकि इस थोबड़े को सार्वजनिक कर दिया गया है।
यह पूरी तरह रूमानी ख्याल नहीं है।कुछ हफ्ते पहले पुलिस के क्षेत्राधिकारी मेरे फोन पर मेरी किसी से बातचीत को सुन रहे थे।मेरा परिचित एक व्यवसायी वहां मौजूद था।उसने मेरी आवाज पहचान कर उस पुलिस अधिकारी से पूछा,’आप अफ़लातूनजी की बातचीत क्यों सुन रहे हैं?’उस अधिकारी ने कबूला और बताया कि राज्य सरकार के गृह विभाग से एक सूची भेजी गई है जिसमें जो नाम और नम्बर हैं उनकी निगरानी (surveillance) की जानी है।यह पहली सरकार नहीं है जिसने हमारे जैसों को अपराधी माना है।हम भी तो ऐसी सरकारों को आपराधिक मानते हैं।काशी विश्वविद्यालय के छात्रसंघ बहाली के लिए चले आंदोलन के समय कांग्रेस की सरकार थी।सरकार द्वारा थोपे गए फर्जी मुकदमे गम्भीर आपराधिक धाराओं वाले थे।मुझ पर तीन हत्याओं के प्रयास,आगजनी, विस्फोटक कानून और क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट आदि धाराएं प्रमुख थीं।एक-दो छात्र नेताओं पर कुछ अतिरिक्त मुकदमे भी थे।उनमें से एक सांसद,विधायक और सूबे में कैबिनेट मंत्री बने।सपा की सरकार के समय सभी मुकदमे वापस लिए गए।उस दौर में एक बार ऐसा भेश बदला कि मेरी बा भी आवाज सुनने के बाद ही चीन्ह पाई।बा पहचान नहीं पाई तो मुझे यकीन हो गया कि यह भेष असरकारक है।थाने से बिल्कुल करीब एक कैफे से गिरफ्तार हुआ।पुलिस वालों से कहा कि डोसा खा लेने दो।मुझे जेल से निकालने के लिए ढाई-ढाई हजार रुपयों के 6 जमानतदारों की जरूरत थी। जमानतदार के नाते मेरी बा ने कहा कि उसके पास ढाई हजार से अधिक मूल्य की किताबें हैं और स्वतंत्रता सेनानी पेंशन की किताब दिखाई।भारत रक्षा कानून के तहत 1942 में वह ढाई वर्ष कटक जेल में थी।
दूसरे जमानतदार मेरे जीजाजी डॉ सुरेन्द्र गाडेकर थे।उनसे जज ने पूछा,’आप क्या करते हैं?’
‘मैं परमाणु ऊर्जा का विरोध करता हूँ,’जवाब मिला।इन जानकारियों से जज साहब भड़के भी नहीं।
1942 में मेरी नानी भी कुछ समय भूमिगत थी।आजाद ,लोकतांत्रिक देश में भूमिगत होने के मौके नहीं आने चाहिए।
1974 में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के दौर में राजनारायण,जॉर्ज फ़र्नान्डिस और मेरे पिताजी को बिहार-निकाला दिया गया।पिताजी मूछ रख कर और शेरवानी-चूड़ीदार पहन कर बनारस से पटना गए।कदम कुंआ में महिला चरखा समिति में हुई बैठक में सर्वप्रथम जॉर्ज साहब ने उन्हें पहचाना।इन लोगों के प्रांत निकाले से अमित शाह के प्रांत निकाले की तुलना नहीं की जानी चाहिए।अमित शाह फर्जी मुठभेड़ में हत्या के आरोप में तड़ीपार किए गए थे।बहरहाल,पिताजी का कहना था कि गांधीजी के सत्याग्रह के मानदंड पर छुपना,भेश बदलना बिल्कुल वर्जित होता।जेपी आंदोलन को अहिंसक नहीं कहा गया,शांतिपूर्ण कहा गया।
मुझे 18 सितंबर को ओडिशा के बलांगीर जाना है।’विप्लव और जागृति’ नामक संगठन ने ‘मौजूदा लोकतंत्र और गांधीजी’ विषय पर भाषण देने के लिए बुलाया है।मेरे नेता किशन पटनायक ने बलांगीर से बी.ए. किया था।दिए गए विषय पर उथल-पुथल के सिलसिले में यह सब भी दिमाग से गुजरा।


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