संपूर्ण क्रान्ति विद्यालय
वेडछी
२२.११.२०१०
प्यारे दोस्तों ,
सप्रेम जय जगत ।
मेरे बाद की पीढ़ी वाले , लेकिन विचारों में मुझसे आगे जानेवाले लोगों तक पहुंच पाने के मनोरथसे यह पत्र मैं अपने दो पुत्रों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक प्रसार माध्यम से भेज रहा हूँ । आशा है आपमें से कुछ को जरूर मेरा यह पागलपन छूएगा । तुकाराम ने गाया है : ” आम्ही बिगड़लो ,तुम्हीं बिघडाना ! “
दिन दहाडे स्वप्न देखना मुझे बुरा नहीं लगता । अक्सर जब लोग मुझे पूछते हैं कि ’ क्या गांधी आज प्रासंगिक हैं ? ’ तब मुझे उसके सीधे जवाब ’ जी हाँ ’ के अलावा और भी एक विचार आता है , कि गांधी विचार जो एकरूप में भूदान – ग्रामदान-ग्राम स्वराज आन्दोलनमें और दूसरे रूपमें संपूर्ण क्रांति आन्दोलन के रूपमें प्रकट हुआ था , वह न आज सिर्फ़ प्रासंगिक है , बल्कि आज उसे प्रासंगिक बनाया भी जा सकता है । संपूर्ण क्रांति के लिए मेरी कल्पनाकी व्यूहरचना के आधार पर वह नीचे प्रस्तुत है ।
आज का संकट सर्वक्षेत्रीय और संपूर्ण है , इसलिए उसका जवाब भी संपूर्ण होना चाहिए । संपूर्ण क्राम्ति के लिए व्यक्ति की मनोवृत्तिमें तथा समाज के मूल्योंमें परिवर्तन होना चाहिए । इस दोहरी प्रक्रिया के लिए पंचविध कार्यक्रम हों , जिसके क्रममें विविध स्थानो की विविध परिस्थिति के कारण क्रम परिवर्तन हो सकता है और हो ।
- प्रबोधन : ( कोन्सिएन्टाइज़ेशन ) : लोगों को असम्तोष है , लेकिन परिस्थिति का ठीक से विश्लेषण नहीं , न पूरा आकलन ही है ।हमें स्वयं अपने से शुरु कर लोगों को खुद अपनी गुत्थियां सुलझाने के लिए प्रवृत्त करना चाहिए । शासन , नेता या अवतार के आने का इन्तेजार करना नहीं चाहिए । लोकजागरण के हर संभव तरीके का प्रयोग करना चाहिए । मुखोमुखी बातचीत और चिट्ठी पत्र से लेकर गोष्ठियां , सभाएं तथा ’जात्रा’ , मेले, डिंडी आदि शताब्दियों से चले आये, लेकिन आजकल पुराने पड़ रहे माध्यमों से लेकर नाटक , पथनाट्य , छाया नाटक , मुशायरे , कवि सम्मेलन , ’तमाशे’, चौपाल , ’भवाई’,’दायरे’ इत्यादि सांस्कृतिक उपकरण एवं कार्टून प्रदर्शनियां,डॉक्यूमेन्टरी,फिल्म,रेडियो,टी.वी. तथा वेबसाइट आदि तक ।
- संगठन : प्रबोधन के साथ साथ ,एवं उसके आगे बढ़ने के बाद भी संगठन होते रहना चाहिए । पूरी क्रांति तो तब होगी जब लोग उसे उठा लेंगे ।लेकिन उसके अग्रदूतकी भी आवश्यकता रहेगी । लेकिन संगठन करने की हमारी प्रक्रियामें कुछ गुणात्मक परिवर्तन की जरूरत है । यह तो जाहिर है कि गांधी , विनोबा, जयप्रकाश नहीं हैं । इसीलिए संगठन की प्रक्रिया न सिर्फ़ आदर्शों की दृष्टिसे वरन व्यावहारिक आवश्यकतासे भी कुछ अलग होना जरूरी है । विनोबा ने ’गणसेवकत्व’ के विचार बीज बोये थे , लेकिन अभी तक का हमारा अनुभव बहुत कुछ एक नेतृत्व आधारित ही रहा है । तरुण शांति सेना और मेडिको फ्रेण्ड सर्कल नयी दिशामें कुछ गति कर रहे थे । लेकिन अभी लम्बी राह बाकी है । मेंसा लेखा के प्रयोग कुछ पथ प्रदर्शन कर सकते हैं । कालेजोंमें , छात्रालयोंमें , गाँवोंमें , मुहल्लोंमें आरंभ करना होगा । संगठन अहिंसा की अग्नि परीक्षा है – ऑर्गनाइजेशन इज़ द एसिड टेस्ट ऑफ़ नॉनवायल्न्स इस गांधी वाणी को निरंतर मद्देनजर रखकर आगे बढ़ना होगा ।
- नमूने प्रस्तुत करना : हमारा जीवन दर्शन हमारी जीवन शैलीसे गाढ़ संबध रखता है । जगह जगह ऐसे केन्द्र बनाने की कोशिश हो जहां व्यक्तिगत गुण संवर्धन , सामाजिक न्याय एवं शांति तथा सृष्टि के साथ संवादिता (हार्मनी) पैदा करने की सतत साधना होती हो । ऐसे नमूने निकट तथा दूर दोनों तरफ़ ध्यान आकर्षित कर सकते हैं तथा परस्पर अनुभवों के आदान-प्रदान से तो तात्कालिक लाभ मिल ही सकता है । इन नमूनों का आधार प्रयोगवीरों की गुणवत्ता पर होगा और यही उनका मानदण्ड भी होगा । व्यक्तिगत जीवनशैली के नमूने स्वावलम्बन , परस्परावलम्बन या ग्राम स्वावलम्बन के हो सकते हैं । वैकल्पिक उर्जा – सौर,पवन,जल,पशु, उर्जा आदि – के विविध प्रकार के प्रयोगों की आज अत्यन्त आवश्यकता है । हम में से कुछ लोग इन प्रयोगों के पीछे जीवन बिता सकते हैं । गांधी के सारे रचनात्मक कार्य नवसंस्करण की राह देख रहे हैं ।उन्हें इन्तेज़ार है उन प्राणवान हाथों की जिन्हें जीवन की ताकतों के लिए प्रयोग करने की ललक है ।
- संघर्ष : संपूर्ण क्रांति का मार्ग हमेशा सीधा या आसान तो होगा नहीं । वर्तमान व्यवस्था के अनेक पहलू उसके आडे आ सकते हैं । वैसे देखें तो संपूर्ण क्रांति अपने में ही यथास्थिति – स्टेटस को – केखिलाफ़ एक बगावत है । इसलिए अकसर शोषण , अन्याय , अनीति , भ्रष्टाचार के खिलाफ़ संघर्ष के मौके आते ही रहेंगे । हर संघर्ष के समय संपूर्ण क्रांतिकारी का ध्यान गांधी के बताये हुए उन तीन उसूलों पर स्थिर रहना चाहिए जो गांधी ने सत्याग्रही के लिए अनिवार्य माने थे । उनकी अपेक्षा थी कि स्त्याग्रही सत्यकी ठोस आधारशिला पर ही खड़ा रहेगा , व अपना ध्येय हासिल करने के लिए वह तीव्रतम कष्ट सहने के लिए तैयार होगा और उसके दिलमें अन्यायपूर्ण व्यवस्था के प्रति चाहे जितना आक्रोश हो , किन्तु प्रतिपक्षी के लिए तो निरा निर्मल प्रेम ही होगा । साधन शुद्धि ही संपूर्ण क्राम्तिकारी परख और वही उसकी कसौटी होगी ।
- प्रकाशन : इस सारे कार्यक्रम के लिए प्रचार एवं प्रकाशन की जरूरत होगी । यद्यपि गांधी का व्यक्तित्व तथा उनका जीवन ही प्रकाशन का उत्तम माध्यम बन जाता था , फिर भी यह ध्यान रहे कि उन्होंने लगभग आधे शतक तक प्रकाशन का कोई न कोई माध्यम सम्हाल कर अपने साथ रखा था ।प्रकाशन का एक व्यापक , विकेन्द्रित तंत्र खड़ा करना होगा । अनेक आधुनिक उपकरणों ने विकेन्द्रित प्रकाशन सुलभ बना दिया है । हममें से कइयों को इस काम में अपनी शक्ति और सामर्थ्य लगाने होंगे ।
सब से पहले तो इस समूचे विचार पर हमें आपकी बहुमूल्य टिप्पणी चाहिए । यह सारा प्रयास ही ’एक: अहम बहुस्याम’ का है । आपके विचारों से हमारे विचारों का स्पष्टीकरण , शुद्धीकरण एवं संशोधन होगा ।
फिर आपको यह सोचना होगा कि हम किस प्रकार इस अभियान में जुड़ सकते हैं । इसमें सब प्रकार के लोगों का उपयोग हो सकता है , आंशिक समय देनेवाले , एक नि्श्चित प्रकार का ही काम करनेवाले से ले कर इसी काम में पूरी शक्ति लगाने वाले तक की । अपने अलावा औरों को जुटाने वाले भी चाहिए ।
हमारे विद्यालय की दृष्टि से इसमें प्रशिक्षण पाने के लिए योग्य एवं उत्सुक प्रसिक्षार्थी चाहिए । हमारे काम में प्रत्यक्ष सहभागी बनने के लिए साथी चाहिए। आप अपने कुछ नये साथियों को हमारे खुले सहजीवन से परिचित कराके अपनी सेकण्ड लाइन तैयार करना सोचते हों तो एक दो साथियों को उस दृष्टि से यहां भेजिए ।
और उपरोक्त पांचों प्रकार के कामों में अभिज्ञता रखनेवाले साथी तो इस अभियान के निहायत जरूरी है ही । अपने क्षेत्रों यदि आज तक ऐसा कुछ न कुछ शुरु न कर चुके हों तो आज से शुरु कीजिए। इस काम में क्या अड़चनें आ रही हैं उनके विषय में हम आपस में सलाह मशविरा तो करें । और यह भी खोजें कि कहां से किस प्रकार की सहायता मिल सकती है।स्व.श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ( हरिवंशराय बच्चन की पंक्तियां) की एक पंक्ति ने मुझे तो बरसों से क्या दशाब्दियों से प्रेरित किया है:
’आज लहरों में निमंत्रण, तीर पर कैसे रुकूँ मैं ?’
स्नेहसने सलाम,
नारायण देसाई.
(इन विचारों से मेरी सहमती नहीं है इसीलिए मैं एक राजनैतिक दल से जुड़ा हूँ ।)
मैं नारायण भाई के विचारें से शब्दश: सहमत हूँ। मेरा नियन्त्रण केवल मुझ तक सीमित है। इसलिए जो भी करना है, मुझे ही करना है। जो मैं कर रहा हूँ या करना चाहता हूँ या जिसमें मेरा विश्वास है वह सब करने के लिए मैं दूसरों से आग्रह, अनुरोध ही कर सकता हूँ। उससे अधिक कुछ भी नहीं। अपेक्षा तो कर ही नहीं सकता क्योंकि अपेक्षा तो दु:खों और निराशा की जननी है।
श्रद्धेय नारायण भाई देसाई के इन विचारों से पूर्ण सहमति है . आपसी बात-चीत और सलाह-मशविरे और सुझावों के द्वारा विचारों के स्पष्टीकरण , शुद्धीकरण एवं संशोधन के साथ इस अभियान को आगे बढ़ाया जाय. मैं इस अभियान में सहभागी होना चाहूंगा.
परम श्रेध्धेय बापूजी ( नारायण भाई ) को सादर नमन व चरण स्पर्श –
मैं लावण्या, स्व.पण्डित नरेंद्र शर्मा जी की पुत्री हूँ –
मेरे पापा जी ने बापू की अहिंसक क्रान्ति में जुड़कर , २ वर्ष ब्रीटीश साम्राज्य से सजा पाते हुए , देवली ड़ीटेंशन जेल , राजस्थान में सहर्ष कारावासस्वीकार किया था और १४ दिन का अनशन भी किया था –
इलाहाबाद में, ‘ आनंद भवन ‘ में वे नेहरू जी के निजी सचिव थे अंगरेजी संभाषणों का कोंग्रेसी समीति से आम जनता तक पहुंचाने का कार्य , हिन्दी अनुवाद के जरिए भी पापाजी ही किया करते थे जिसके फलस्वरूप उन्हें यह कठिन कारावास मिला था —
इस सजा की खबर १ सप्ताह बाद मेरी स्व. दादीजी गंगादेवी को पहुँच पायी थी तो दादी जी ने भी १ सप्ताह तक अपने पुत्र के अनशन के साथ स्वयं भी अन्न त्याग किया था –
ऐसे कितने ही नन्हे नन्हे सिपाही , हमारे परम पूज्य बापू की अहिंसक सेना के अंग रहे हैं जिनको आज भारतवर्ष भूल कर साम्राज्यवाद और बाजारवाद के दुहरे भंवर में डूब कर पश्चिम का अंध अनुकरण करने लगा है ..
स्वयं बापू के कहे का अनुसरण भी बिरले लोग ही करते हैं — आप जैसे हितैषी जब् भी हमे आगाह करवाते हैं तब बोध होता है कि बापू की दूरदर्शिता और विश्व के सभी के प्रति दया, करूणा व भाईचारे की भावना ने उन्हें ‘ महात्मा ‘ बनाया – वह कितनी उत्कट तथा विरल भावना थी —
बात लम्बी न करते हुए यही कहूंगी, निजी स्तर पर मेरे लेखन से, अमरीकी निवासी होते हुए भी सम्पूर्ण रूपेंण भारतीयत मानस को लिए, ‘ जय – जगत ‘ कहते हुए आपके प्रयासों में सहकार देने के लिए , अपना प्रयास
अवश्य करूंगी –
मैं , यदाकदा , अन्तराष्ट्रीय हिन्दी समीति ” विश्वा ” का सम्पादन कार्य भी करती हूँ और समीति के सदर्स्यों तक आपका पत्र पहुंचा रही हूँ –
– भाई श्री अफलातून जी मेरे भ्राता हैं और मेरा बचपन मानों उन्हीं के समान रूप घर में, [ बंबई शहर में ] मेरे गांधीवादी , सत्य पूजक, कर्मठ पिता के आश्रम जैसे पवित्र घर में बीता और अफलातून भाई की तरह मुझे भी , एक सत्य साधक की छत्र छाया में, पलकर बड़े होने का मुझे भी सौभाग्य मिला है –
मेरी नानी जी ” कपिला बा ” आजीवन अपने हाथ से बुने खादी की धागों से निर्मित साड़ी ही सदा, पहनतीं रहीं और उसी को ओढ़े हुए वे गयीं —
मेरे नाना जी श्री गुलाबदास गोदीवाला जी, जो ब्रीटीश राज्य में सेन्ट्रल रेलवे के अधिकारी पद पर कार्य करते थे उन्हें भी मेरी ‘ बा ‘ ने खादीधारी बना लिया था और मेरे मामाजी स्व. राजेन्द्र गोदीवाला जी ने ऋषितुल्य विनोबा जी के साथ झुम्पडी अलगट ग्राम में , सड़कें बनायीं, भूदान में हिस्सा लिया और अछूत उध्धार
प्रयास के लिए योगदान दिया —
हरिजनों को लेकर मंदिर प्रवेश करते विनोबा जी के लिए उठीं , कई पागल ब्रह्मण दल की लाठीयां , मेरे राजू मामाजी ने , अपनी पीठ पर झेलीं थीं —
फल स्वरूप उनके पीठ की कई हड्डीयां टूट गयीं – उनके सेवा – सुश्रुषा , वर्धाश्रम पौनार में हुई और आदरणीया कुसुम्ताई देशपांडे की छोटी बहन शीला देशपांडे से मेरे मामा जी का विवाह होना इस घटना का एक सुखद उपहार बना
बापू जैसा न कोइ विगत शताब्दी में हुआ है और इस सदी में भी उनसे किसी के जन्म लेनेकी संभावना कम ही लग रही है !!
जैसा आपने सही लिखा है कोइ ” युगपुरुष ” उद्धार करने आनेवाला नहीं –
हमे परस्पर सहयोग करना है और आपके सुझाए ध्येय , इस मार्ग में सहायक सिध्ध होंगें इस में मुझे कतई भी संदेह नहीं है –
बहुत आदर व श्रध्धा सहित आपकी एक भारतीय बेटी
उत्तर अमरीका से
– लावण्या शाह ( शर्मा )
We can 4 Gandhi is more relevant today than he was ever.
1. इस वाक्य का अर्थ समझ में नहीं आया – (इन विचारों से मेरी सहमती नहीं है इसीलिए मैं एक राजनैतिक दल से जुड़ा हूँ ।)
2. इस कार्य में मैं सहयोगी बनूँगा। नारायण जी से नेतृत्व की अपेक्षा है।
mote taur par sahamat hoon.
sunil
सुदूर गाँवों में काम करते समय इन्टरनेट उपलब्ध ना होने के कारण मुझे विलम्ब हुआ है .
आज ही गुजरात विद्या पीठ की वेबसाइट पर भी अहिंसा संबंधी प्रशिक्षण की भी माहिती देख रहा था.
आज देश में जो वातावरण बनाया जा रहा है और विश्व में भी जैसी स्थितियां हैं उनके मद्देनज़र आपने जो मार्ग बताया है वह बहुत उचित और आवश्यक है.पिछले कुछ दिनों से ऐसी ही ज़ुरूरत महसूस करते हुए मैं facebook पर सक्रिय हुआ तो आप का ख्याल बार बार आता था. “जिनके जिन्ह पर सत्य सनेहू सो तेहिं मिलहिं ना कछु संदेहू.” SUDHIASIANS FOR ASIAN UNITY नामक समूह के लिए सन्दर्भ चयन में आपका साहित्य पहले पहल हम सामने रख रहे हैं. जो स्टेप्स आपने बताये हैं वे हमारे काम में हमें prakaashit करें.हम इनका आचरण करने योग्य बनें. हमें आपका पथप्रदर्शन सदा मिलता रहे और हम अपने संकल्पों को आचरण में लाते हुए गाँधी मार्ग पर लोक्स्वराज्य, सामुदायिक एकता तथा विश्वशांति के पथ को प्रशस्त करते हुए निर्विघ्न निरंतर बढ़ते रहें ये आशीर्वाद हमें दीजिये.
कहने की सीमाएं हैं. ख़ास तौर पर एक बार में ही अपनी सारी बात कहने की सीमायें अधिक हैं.संक्षेप में यही कि यह मार्ग समय की पुकार है यह कार्य ऐसा है कि अब विलम्ब कही काज. आपसे अन्य माध्यमों सहित यहाँ भी सादर मिलता रहूँगा. कृपा, संवाद बनाए रखें.
डॉ. सुधीर चन्द्र जोशी
अभिनव अभियान राजस्थान……..