मित्र लाल्टू ने कहा,” ‘नल की हड़ताल’ पढ़कर अपनी दो पुरानी कविताएँ याद आ गईं। चंडीगढ़ में 1992 में वाटर वर्क्स कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी, तब लिखी थीं । पहली है’ –
तुम कोई भी हो खुले आकाश का खालीपन टूटे नल से बहा तालाब
कहने को कह सकता हूँ उत्तर संरचित बातें इस वक्त
जब सुन रहा बहुत पुराने गीत शिकवा यह कि नहीं चढ़ा पानी आज भी
कहने दो मुझे यह जीवन भी सुंदर है
हजारों हड़ताली जेल में टूटी हैं
पानी की पाइपें तड़प रहे
अस्पतालों में रोगी हग रखा
बाथरुम में किसने मुझे आती उल्टी।
कहने दो जब नहीं मिलता पानी बच्चों को
पानी सुंदर यह जीवन सुन रहा हूँ
बहुत पुराने गीत भुगत रहा प्यास से
कहीं नहीं पीने लायक बूँदें।
ऐसे में सोचते हुए उनको जो गाँवों में गंदे बावड़ियों से पीते पानी
याद आ रही एक सुंदर लड़की चाहता हूँ रोना
उसके उरोजों में रख अपना चेहरा कहने दो
सुंदर है सुनना पुराने गीत चाहना रोना
उसकी त्वचा का याद कर जो कर सकती है पैदा
एक और प्यासा।
(वाक् – 2010)
दूसरी –
परेशान आदमी
कहा उसने कि पढ़ी थी कभी अखबार में
अड़तालीस लोगों के प्यास से तड़प मरने की खबर
वह कह रहा था आप लोग बुश क्लिंटन छोड़ो
नल बंद करना सीखो
निरंतर बातें करते उसके बालों से चू रहा पसीना
कोई इंकलाबी सरकार नहीं दे सकती पर्याप्त
पानी घर शिक्षा स्वास्थ्य चीख रहा था वह
बहुत परेशान वह सुबह सुबह
आँखें कह रही थीं दिल में बैठा कोई अंजील था तड़पता
बाद में कहा दोस्तों ने
क्यों हो इतना परेशान
रहना इस देश में तो ऐसे रहना सीखो
किसी तरह दिन काटो अपने बाकी मत देखो
खत्म हो जाओगे सोच सोच
क्या फायदा हो इतना परेशान
रुका नहीं वह
कहता रहा देश विदेश की बहुत सी बातें
दोस्त बाग चले गए एक एक कर
बाल्टी बाल्टी पानी भर
उसकी बाल्टी में अब भर रहा था
बूँद बूँद पानी
परेशान आदमी की यही कहानी।
(पश्यंती- जनवरी मार्च १९९५)