Feeds:
पोस्ट
टिप्पणियाँ

Posts Tagged ‘काशी’

अतिक्रमण को मुआवजा क्यों दिया मोदी जी ?

(वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ गोकर्ण काशी के नगीना हैं।सैंकडों वर्ष से महात्म्य के कारण देश के कई भागों के लोग काशी के विभिन्न मोहल्ले में बसे हैं।आम तौर पर देश के विभिन्न भागों के राजे,महाराजे,जमींदार,समृद्ध लोग ‘काशी – वास ‘ के लिए भवन निर्माण करते और अपने इलाके के ब्राह्मणों को रहने के लिए दे देते थे।काशी का कॉस्मोपोलिटन चरित्र इस वजह से रहा है।)

इन दिनों वर्चअल वल्र्ड में एक वीडियो वायरल हो रहा है। जाने कितने लाख लोगों ने उसे अब तक देख लिया है। वीडियो में बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर से जुड़ी चीजें शूट की गयी हैं। वीडियो में कुछ तमिल तीर्थयात्री दिखते हैं। वीडियो के साथ आॅडियो हिन्दी में है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों का नतीजा है कि अतिक्रमण से घिरे बाबा विश्वनाथ आज मुक्त हो कर सांस ले रहे हैं। खुद मोदी जी ने भी जब आठ मार्च को इस काॅरिडोर की आधारशिला रखी तब भी उन्होंने कहा कि चालीस हजार वर्गमीटर में बन रहे इस काॅरिडोर को जब हमनें खाली कराया तो यहां 44 ऐसे अति प्राचीन मंदिर मिले जिन्हें इलाके के लोगों ने अतिक्रमण कर अपने घरों में छिपा लिया था। उन मंदिरों और शिवालयों में लोगों ने टाॅयलेट बना लिया था।

मोदी जी, आपका बयान रिकाॅर्डेड है। अब आप यह कह नहीं सकते कि नहीं हमने तो ऐसा कहा ही नहीं था। क्योंकि आपके इस झूठ को पूरी दुनिया ने लाइव टेलिकास्ट में देखा। हमें नहीं मालूम कि आपको किसने यह सब पढ़ा दिया लेकिन हम बनारस के लोग उस दिन इस सचाई को जान कर हैरान थे कि दुनिया में ताकतवर माने जाने वाले हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री का सामान्य ज्ञान कितना कमजोर है। मोदी जी पिछले पांच सालों से आप इतिहास से भी पुराने इस बनारस के सांसद है। बीते आठ मार्च तक आपने अपने संसदीय क्षेत्र का 19 बार दौरा भी किया। तथाकथित रूप से आपने इस शहर को कई हजार करोड़ रूपए का तोहफा भी दे डाला पर हजरत अफसोस कि इस शहर को आप अब तक समझ नहीं सके। आप न तो इसके इतिहास से वाकिफ हुए और न आपने इसके भूगोल को जानने की कोशिश की। आपके लिए इतिहास मतलब केवल असी घाट और भूगोल मतलब शहर के बाहरी हिस्से मंडुआडीह स्थित डीजल रेल इंजन कारखाने से लंका के बीएचयू गेट तक का सड़क ही रहा। आपने इस चुनावी साल के जनवरी महीने में बनारस में प्रवासी भारतीय सम्मेलन पर अरबों रूपए खर्च कर वाहवाही बटोरी। इस आयोजन का मकसद आज तक कोई समझ नहीं सका। आपने प्रवासियों को बनारस के गली कूचे में तमाम सारी जानकारी दिलवायी लेकिन अफसोस कि इन बीते पांच सालों में आप खुद आज तक कभी किसी गली में गये ही नहीं। आपने जापान के पीएम शिंजो अबे से लेकर फ्रांस के राष्ट्रपति तक के साथ कई बार स्टीमर पर बैठकर गंगा यात्रा की लेकिन जनाब आपने कभी इन घाटों की उन सीढ़ियों पर अपने चरण नहीं धरे जिन पर लेट कर कबीर ने अपने गुरू से राम राम कहो का ज्ञान हासिल किया। आपने कभी तुलसी घाट के उस हुजरे को भी नहीं देखा जहां बाबा तुलसी दास ने रामचरित मानस लिखा। आपने रविदास मंदिर में मत्था टेक कर पंजाब के लिए अपना राजनीतिक मंतव्य साधने का प्रयास जरूर किया लेकिन मोदी जी आपने कभी उस सारनाथ को जानना नहीं चाहा जहां तथागत बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। सारनाथ में आपकी दिलचस्पी शायद इसलिए नहीं थी क्योंकि आपके सलाहकारों ने आपको शायद ये समझा दिया था कि बुद्ध को मानने वाले तो किसी और पार्टी के वोट बैंक हैं। हां याद आया आप इस पूरे टेन्योर में एक बार कालभैरव गये थे। वो भी इसलिए कि जब आपने देखा कि हर बार आपके बनारस आगमन पर बिन मौसम बरसात हो जाती है और कुछ न कुछ हादसा हो जाता है। तो ऐसे में आपको मशवरा देने वाला बुद्धिमान गिरोह बनारसियों के दबाव में आ गया और आपकी वहां हाजिरी लगवा दी गयी।

मोदी जी, बनारस का इतिहास बहुत पुराना है। यहां के प्राग ऐतिहासिक मंदिरों का अपना वजूद है। यहां के मोहल्लों का भी अपना एक तिलिस्म है। गुस्ताखी माफ सर, काशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के नाम पर आपने एक पूरे इलाके की जिस तरह से कुर्बानी ली है, इसके लिए इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा। ज्ञानवापी से लेकर सरस्वती फाटक तक और फिर लाहौरी टोला से लेकर ललिता घाट तक के लोगों को आपने अपने इगो के लिए जबरन पैसे देकर जिस तरह उजाड़ा है उसे पुश्तों तक दर्द के साथ याद रखा जाएगा। साहब, ये लोग अतिक्रमणकारी नहीं थे। ये तो वो लोग थे जो पार्टीशन के वक्त पाकिस्तान से उजड़ कर यहां आये थे। ये वो लोग थे जिन्हें उस जमाने में रिफ्यूजी कहा गया। लाहौर में अपना सब कुछ गंवा कर लौटे इन लोगों को जहां जगह मिली बनारस ने अपने साथ रचा बसा लिया। इसलिए इस मोहल्ले का नाम लाहौरी टोला रखा गया। आपकी जानकारी के लिए साहेब, ये सब के सब हिन्दू थे, जिनकी खैरख्वाही का आप दम भरते हैं। अफसोस की हिन्दूत्व की आपकी झंडाबरदारी सच नहीं है। आपने उन्हें उजाड़ा है। आपको पता है, खत्री पंजाबी बिरादरी से लेकर राजस्थानी गौड़ सारस्वत ब्राह्मण बिरादरी तक के ये लोग उजाड़े जाने के बावजूद हर रोज इस इलाके में आते हैं और यहां के मिट्टी की सोंधी खूशबू अपने फेफड़ों में भर कर जाते है। जानते हैं क्यों ? क्योंकि आपके बहुत ज्यादा मुआवजा देने के बावजूद अपनी जड़ो से दोबारा बेदखल किये जाने का दर्द उन्हें रातों में सोने नहीं देता।

मुआवजे की बात के साथ एक बात याद आयी। मोदी जी, आपने कहा कि 44 मंदिरों पर अवैध कब्जा था। लोगों ने उसे घेर कर घर बनवा लिया था। जनाब यह पूरी तरह से फरेब है। झूठ है। बेइमानी है। आपको शायद नहीं मालूम होगा कि हूण, तुगलक और मुगलों ने देश के तमाम मंदिरों के साथ बनारस के मंदिरों पर भी हमले किये। उन्हें ढ़हाया। उसे नष्ट किया और लूटा। उस जमाने में मोहल्ले के लोगों ने इन प्राचीन मंदिरों को आक्रमणकारियों से छिपाने के लिए उसके इर्द गिर्द दीवार खड़े किये। उस जमाने जान हथेली पर रख कर वहां पूजा पाठ का क्रम बनाये रखा। ऐसे में क्या उन्हें अतिक्रमणकारी कहना चाहिए। आप बेशक होंगे प्रधानमंत्री लेकिन किसी को बेइमान कहने का हक तो आपको संविधान भी नहीं देता जनाब। चलिए मान लेते हैं कि 40 हजार वर्ग मीटर में आने वाले 280 मकान अतिक्रमण ही थे तो साहेब, आपने या आपकी सूबाई सरकार ने संविधान की किस धारा के तहत इन अतिक्रमणकारियों को करोड़ो का मुआवजा दे दिया ? इन्हें तो कायदे से जेल में डाला जाना चाहिए था फिर आपने कैसे यह सब होने दिया ? आपको शायद पता होगा कि पांच सौ फीट के एक मकान का मुआवजा एक करोड़ रूपए दिया गया, जबकि उसकी कीमत महज कुछ लाख ही थी। कुछ रसूख वालों को तो आपके चहेते योगी आदित्यनाथ की सरकार ने नौ करोड़ का मुआवजा दिया। सर, ऐसा क्यों ? योगी जी की सरकार में इसी क्षेत्र से आने वाले एक नये मंत्री से लेकर कभी शिवसेना के नाम पर राजनीति करने वाले इस इलाके के एक छोटभैया नेता तक ने घर उजाड़े जाने के इस धंधे में अरबों रूपए कूट डाले।

सर, आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आपको कुछ पता ही नहीं रहा। आपको इस बात का भी पता है कि इन रिफ्यूजीस के घर उजाड़ने में किसने कितनी दलाली ली। सुन कर शर्म आती है कि आपकी सरकार ने बनारस के लोगों को सिर्फ दलाली के टुकड़े फेंके और औरंगजेब सरीखे इन आततायियों ने अपनों का सिर कलम कर दिया। बाकी धंधे का असली माल तो गुजरात से आये धंधेबाजों ने आपस में बांट लिया। काॅरिडोर कैसे बनेगा और उसमें कहां क्या बनेगा ये सब तो गुजरात के हाथ लगा है। इसके पीछे दलालों की दलील है कि हमारे यहां ईमान नहीं है। साहेब, ये कह कर तो आपने पूरे बनारस को बेइमान घोषित कर दिया। सब रिकाॅर्डेड है साहेब कि पिछले पांच सालों में बनारस में जो कुछ भी तथाकथित विकास हुआ उसमें बनारस के हाथ कुछ नहीं लगा। एक भी ठेका बनारस वालों को नहीं दिया गया। सबके सब गुजरात वालों को। वो गुजराती ठेकेदार अपने साथ मजूदर भी लेकर आये। क्या हम बनारसी मजदूरी के लायक भी नहीं हैं ? मोदी जी, क्या हम इतने खराब हैं कि आप हमें मजदूरी के लायक भी न समझें ? सर, ये कुछ चंद सवालात बनारस वालों का इगो नहीं है, ये ऐसे यक्ष प्रश्न हैं जिनके जवाब आपके पास तो क्या संघ के पुरोधाओं के पास भी नहीं हैं। आपकी सूबाई सरकार ने काॅरिडोर के नाम पर दर्जनों मंदिर तोड़े हैं। इन मंदिरों से उखाड़ कर फेंके गये देवी देवताओं के सैकड़ों विग्रह और शिवलिंग अक्सर ही किसी काॅलोनी के खाली पड़े प्लाॅट में कूड़े के बीच पड़े मिलते हैं। साहेब, ये विग्रह नहीं उन देवताओं की रूहें हैं जिनकी प्राण प्रतिष्ठा कर कई पुश्तों ने इन्हें पूजा था। ये रूहें आज लाहौरी टोला के लोगों को सोने नहीं दे रही हैं लेकिन यकीन मान लीजिए जनाब की चुनाव बाद आप और आपकी पार्टी भी चैन से सो नहीं पाएगी। क्योंकि हिन्दूत्व के नाम पर आपने पाप किया है।

Read Full Post »

’ यह अब तक का सर्वाधिक समझदार ,सन्तुलित और नैतिक हथियार है । ’ सिर्फ़ जीवन हरण करते हुए तमाम निर्जीव इमारतों आदि को जस – का – तस बनाये रखने की विशिष्टता वाले न्यूट्रॉन बम के आविष्कारक सैमुएल कोहेन ने अपने ईजाद किए इस संहारक हथियार के बारे में यह कहा था। इस ६ दिसम्बर को उसके बेटे ने खबर दी कि उसकी कैन्सर से मृत्यु हो गई । युद्ध के बाद इमारतें जस की तस बनी रहेंगी तो निर्माण उद्योग को बढ़ावा कैसे मिलेगा ? संभवत: इसीलिए न्यूट्रॉन बम के प्रति बड़े मुल्कों में आकर्षण नहीं बना होगा । इराक के ’पुनर्निर्माण’ से अमेरिकी उपराष्ट्रपति डिक चेनी से जुड़ी कम्पनियां जुड़ी थीं , यह छिपा नहीं है ।

कल बनारस के शीतला घाट पर हुए ’ मध्यम श्रेणी के विस्फोट ’ के बाद से समस्त मीडिया का ध्यान काशी की कानून और न्याय – व्यवस्था पर है । यहां के नागरिकों और पर्यटकों के जान – माल की रक्षा में विफल जिला प्रशासन पर है ।

सैमुएल कोहेन की तरह बनारस के जिला प्रशासन ने भी एक ’समझदार ,सन्तुलित किन्तु संहारक हथियार ’ गत ढाई महीने से इस्तेमाल किया है । इस हथियार का प्रयोग बनारस के शहरी-जीवन के हाशिए पर मौजूद पटरी व्यवसाइयों पर हुआ है । इस माएने में जिला प्रशासन न्यूट्रॉन बम से भी एक दरजा ज्यादा ’समझदार’ है। वह जीवितों में भी भी गरीबों को छांट लेता है । ढाई महीने से आधा पेट खाकर लड़ रहे इन पटरी व्यवसाइयों के बीच से दो फल विक्रेता – रामकिशुन तथा दस्सी सोनकर रोजगार छीने जाने के आघात से अपनी जान गंवा चुके हैं । जिला प्रशासन की इस दमनात्मक कारगुजारी में ’रियल एस्टेट’ लॉबी तथा पुलिस बतौर गठबन्धन के शरीक है । इस गठबन्धन ने खुले रूप से एक घिनौना स्वरूप ग्रहण कर लिया है । लंका स्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को बनारस की सबसे चौड़ी पटरी और नगर निगम का रिक्शा स्टैण्ड उपहार स्वरूप भेंट दे दिया गया है , इसके बदले रियल एस्टेट मालिक द्वारा लंका थाना परिसर में कमरे बनवाना तथा पुताई करवाई गई है । इसी परिवार द्वारा बनाये गई बहुमंजली इमारतों में कई ’आदर्श घोटाले’ छुपे हैं ।

मुख्यधारा की मीडिया जिला प्रशासन रूपी न्यूट्रॉन बम को देखे-समझे यह भी सरल नहीं है ।

उत्तर प्रदेश में शासन कैसे चल रहा है इसका नमूना बनारस के पटरी व्यवसाइयों के ढाई महीने से चल रहे संघर्ष से समझा जा सकता है । मुख्यमन्त्री के कान-हाथ दो तीन नौकरशाह हैं । जो जिलाधिकारी इनसे तालमेल बैठा लेता है वह कोई भी अलोकतांत्रिक कदम उठा सकता है । वाराणसी नगर निगम के किसी भी अधिकारी द्वारा कोई भी आदेश न दिए जाने के बावजूद जिलाधिकारी के मौखिक आदेश का डंडा स्थानीय थानध्यक्ष के सिर पर है और थानाध्यक्ष के हाथ का डंडा पटरी व्यवसाइयों के सिर पर । गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटरी पर व्यवसाय को मौलिक अधिकार का दरजा दिए जाने को भी जिलाधिकारी नजरअंदाज करते आए हैं । वाराणसी के कमीशनर को विधानसभाध्यक्ष , सत्ताधारी दल के कॉडीनेटर,शासन द्वारा नामित सभासदों द्वारा लिखितरूप से कहने को स्थानीय प्रशासन नजरअंदाज करता आया है ।सत्ताधारी दल के इन नुमाइन्दों ने स्थानीय प्रशासन को यह भी बताना उचित समझ कि अधिकांश  पटरी व्यवसाई दलित हैं । लोगों का कहना है कि इन महत्वपूर्ण सत्ता -पदों पर बैठे राजनैतिक कार्यकर्ताओं का महत्व गौण होने के पीछे स्वयं मुख्यमन्त्री का तौर तरीका है । माना जाता है कि नौकरशाह दल के नेताओं से ज्यादा चन्दा पहुंचाते हैं । लाजमी तौर पर दल के कार्यकर्ताओं का इन अफ़सरों से गौण महत्व होगा।

 

 

 

 

 

Read Full Post »

पटरी व्यवसायी संगठन

वाराणसी

प्रति ,

श्री कौशलेन्द्र सिंह ,

महापौर – वाराणसी ।

 

विषय : पटरी व्यवसाइयों की बाबत ।

माननीय महापौर महोदय़ ,

फेरीवाले , पटरी ब्यवसाई , खोमचे वालों का नगर – जीवन में एक अहम योगदान रहा है । बनारस शहर के फेरीवाले ही १२५ वर्ष से पहले लिखे गये भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के प्रसिद्ध नाटक ’अन्धेर नगरी’ के पात्र हैं । इतने वर्षों बाद भी मानो अब भी वे अन्यायपूर्ण नीतियों के शिकार हैं । असंगठित क्षेत्र के इन व्यवसाइयों के हित में बनाई गई तमाम नीतियों तथा सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के बावजूद नगर प्रशासन में मौजूद निहित स्वार्थी तत्वों के कारण उन्हें अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है ।

उत्तर प्रदेश में इस श्रेणी के व्यवसाइयों से कई वर्षों तक तहबाजारी वसूली जाती थी । तदुपरान्त निजी ठेकेदारों को यह काम दिया गया परन्तु फिलहाल तहबाजारी समाप्त करने के साथ ही प्रदेश सरकार ने संसद द्वारा पारित ’नगरीय फेरी वालों हेतु राष्ट्रीय नीति’ को लागू करने की घोषणा की है । इस नीति के अनुरूप नगरवासी फेरीवालों , पटरी व्यवसाइयों को नगर निगम द्वारा लाइसेंस जारी किए जाने तथा पटरी व्यवसायी संगठन के प्रतिनिधियों को नगर निगम में प्रतिनिधित्व दिए जाने की बातें हैं ।

गत १९ अक्टूबर २०१० को मा. सर्वोच्च न्यायालय ने एक अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि पटरी पर व्यवसाय करना मौलिक अधिकार है ।

इन नीतियों तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद नगर लंका क्षेत्र के पटरी व्यवसाइयों को गत २३ सितम्बर से जिलाधिकारी के निर्देश पर स्थानीय पुलिस व्यवसाय करने से रोक रही है तथा उत्पीडित कर रही है । यह उल्लेखनीय है कि नगर में सड़क के दोनों ओर सर्वाधिक चौड़ी बीस-बीस फुट की पटरी सिर्फ़ लंका स्थित मालवीय चौराहे से रविदास द्वार तक है । स्थान उपलब्ध होने के कारण ही रविदास गेट के निकट वर्षों तक नगर निगम का रिक्शा स्टैण्ड था । गत कुछ वर्षों में एक रियल – एस्टेट लॉबी द्वारा सड़क के दोनों ओर मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स तथा दुकानें ( बहुमंजली आवासीय भवन के पार्किंग स्पेस में ) खोल दी गई हैं । इन्हीं लोगों द्वारा महेन्द्रवी छात्रावास को खरीदने की बाबत भी सतर्कता आयोग द्वारा जांच कराई जा रही है ।

प्रदेश शासन द्वारा देश के एक बड़े उद्योगपति की फुटकर फल-सब्जी श्रृंखला को अनुमति न दिए जाने के निर्णय का भी हमें स्मरण है तथा इसे हम फुटकर व्यवसाय के हित में लिया कदम मानते हैं।

लंका पर विश्वविद्यालय के शिक्षक सड़क पर ही अपनी निजी गाड़ियां खड़ा कर बाजार करते हैं। आप से निवेदन है कि विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय से आप अनुरोध करें कि वे परिसरवासियों से गाड़ियां परिसर में रख कर पैदल लंका बाजार करने आने की अपील करें । कुछ समझदार शिक्षक ऐसा करते हैं । विश्वविद्यालय परिसर को टाउन एरिया तथा नोटिफाइड एरिया के रूप में न रख कर नगर निगम के विभिन्न वार्डों से जोड़ दिया गया इसलिए आपके द्वारा यह अनुरोध अति उपयुक्त होगा ।

आप से सविनय निवेदन है कि उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में आप वाराणसी के पटरी व्यवसाइयों द्वारा नगर निगम वाराणसी को रचनात्मक सहयोग सुनिश्चित कराने के लिए स्वयं हस्तक्षेप करेंगे ताकि नगर के इस अहम किन्तु कमजोर तबके के साथ न्याय हो सके ।

आप के सहयोग की अपेक्षा में , हम हैं :

 

 

( काशीनाथ )                         (मोहम्मद भुट्टो)                                  ( काली प्रसाद )

अध्यक्ष                                    महामन्त्री                                          उपाध्यक्ष

Read Full Post »

डॉ. लोहिया की मृत्यु के बाद एक दशक से ज्यादा समय तक समाजवादी युवजन राजनीति के एक प्रमुख स्तम्भ रहे मारकण्डे सिंह की गत दिनों कानपुर में मृत्यु हो गई । मुख्यधारा की राजनीति के इस पतनशील दौर में एक खाँटी राजनैतिक कार्यकर्ता के राजनैतिक आचरण को  कल लंका की पटरी पर आयोजित सभा में दलों के दायरे से ऊपर उठ कर वक्ताओं ने श्रद्धा के साथ याद किया । मौजूदा राजनीति की गिरावट के कारण मारकण्डे सिंह सरीखे कार्यकर्ता उसके लिए फ़िट नहीं माने गये यह कबूलने में सभी दलों के वक्ता एक मत थे ।

आम आदमी के चन्दे से राजनैतिक कार्यकर्ता का काम और सादगीपूर्ण जीवन चल सकता है इसका उदाहरण मारकण्डे सिंह थे। समाजवादी युवजन सभा और लोहिया विचार मंच के कार्यकर्ता रहे वरिष्ट पत्रकार योगेन्द्र नारायण शर्मा ने बताया कि कैसे संगठन के काम के लिए जेब में दस रुपये होने के बावजूद वे कैसे निकल पड़ते थे और इलाहाबाद,दिल्ली और कोलकाता का प्रवास कर लौटते थे । (हर यात्रा का टिकट खरीद कर)। समाजवादी जनपरिषद की राष्ट्रीय समिति के सदस्य अफ़लातून ने इस मुद्दे पर कहा कि समाज में ईमानदार राजनैतिक कार्यकर्ताओं को आर्थिक मदद करने की परम्परा जारी रहनी चाहिए ।

पिछले देढ़-दो महीनों से मारकण्डे सिंह समाजवादी किसान नेता चौधरी राजेन्द्र के साथ जैन लॉज में रह रहे थे । वे रोज सुबह कमरे और आस-पास झाड़ू लगाते और नियमित तौर पर अपने कपड़े खुद साफ़ करते । कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी की अहरौरा में हुई सभा में मंच से ५०० मीटर के बैरीकेड के बाद खड़े मारकण्डेजी सोशलिस्ट पार्टी द्वारा उसी स्थान पर आयोजित सभा को याद कर रहे थे। तब जॉर्ज मुख्य अतिथि थे और मारकण्डे सिंह मुख्य वक्ता । उन्होंने चौधरी राजेन्द्र से कहा ,’यह (राहुल) ५ से ७ मिनट बोलेगा जितना इसे सिखाया गया होगा । उससे ज्यादा बोला तब कुछ न कुछ विवादास्पद बोल जाएगा ।’

शिक्षाशास्त्री प्रोफेसर हरिकेश सिंह ने याद किया १९७० में विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष रहते हुए परिसर के मेस-महाराजों और नाइयों का सम्मान समारोह आयोजित कर उन्होंने छात्रों के मन में श्रम साध्य कामों के प्रति प्रतिष्ठा पैदा की थी । सपा नेता डॉ. बहादुर सिंह यादव ने याद किया १९७७ में देहाती पृष्टभूमि से वे विश्वविद्यालय में आये तब मारकण्डे जी ने उन्हें इकाई का अध्यक्ष बनाया और प्रशिक्षित किया ।

छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शिवकुमार ने कहा कि मौजूदा दौर की रा्जनीति में एक दशक टिक पाना एक दुष्कर कार्य है वैसे में मारकण्डे सिंह साढ़े चार दशक तक बिना भ्रष्ट हुए सक्रिय रहे यह सीखने वाली बात है ।

सभा को भाजपा के पूर्व सांसद मनोज सिन्हा और छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं जिला कांशग्रेस अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव ने भी सम्बोधित किया। सभा की सदारत छात्र-गार्जियन के रूप में जाने वाले समाजवादी कार्यकर्ता रामजी टंडन ने की ।

Read Full Post »

    कल सुबह कभी मेरे पड़ोसी प्रयाग पुरी चल बसे ।  मैं उन्हें बाबाजी बुलाता था । उनका अभिवादन होता था , ‘ महादेव !’ मेरी तरफ़ से उत्तर होता ,’बम’। वे काशी विश्वविद्यालय में इटालवी भाषा के प्राध्यापक थे । वेनिस से एम.ए करने के पश्चात करीब २६ वर्ष पहले वे बनारस आए । इटली में उनका नाम कोर्राडि पुचेत्ती Corrado Puchetti था । काशी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग जिसे कभी ‘भारती विद्यालय’ कहा जाता था से उन्होंने पीएच.डी की – महाभारतकालीन किसी शहर पर ।

   उनका  इन आधुनिक शिक्षा प्रतिष्ठानों से अधिक  आकर्षण काशी और भारत के पारम्परिक ज्ञान और साधना  से था । शंकराचार्य स्वरूपानन्दजी के श्री मठ से वे जुड़े थे। एक सन्यासी ने ही उनको नाम दिया था ।

  प्रयाग पुरी के एक गुर्दा था तथा उन्हें डाइलिसिस पर जाना पड़ता था । इस गम्भीर व्याधि के अलावा वे हृदय रोग से पीडित हो गये थे। मेरे आयुर्वेद से जुड़े मित्र डॉ. मनोज सिंह उनके चिकित्सक थे । गुर्दे की बीमारी के कारण हृदय की शल्य चिकित्सा सम्भव नहीं थी। इसके बावजूद मृत्यु के एक दिन पहले तक उन्होंने क्लास ली ।

      कुछ माह पूर्व इटली में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े । कोमा में जा कर लौटे तब भी उन्होंने काशी में प्राण त्यागने की और हिन्दू विधि से अग्नि को समर्पित करने की इच्छा जतायी थी ।

   प्रयाग पुरी की पत्नी इंग्लैंड की हैं और भाषा विज्ञानी हैं । चार-पाँच साल के बेटे  चेतन बालू ने अपने पिता को मुखाग्नि दी । इसके पूर्व केदार-गौरी मन्दिर के समक्ष उनके शव को कुछ समय रक्खा गया तथा श्री मठ के महन्त ने रुद्राक्ष की माला अर्पित की ।

   चेतन बालू हिन्दी , इटालवी और अंग्रेजी तीनों भाषाएं बोलता है । पिता के unwell होने की बात घर पर होती थी और कल सुबह उसने अपनी माँ से पूछा कि क्या अब वे well हैं ?

    एक अन्य इटालवी साधू से उसने पूछा कि पिता कहां गये ? उस साधु ने कहा -‘हिमालय’।

    लेकिन जब घाट पर एक दक्षिण भारतीय साधु ने चेतन से पूछा कि प्रयाग पुरी कहां गये तो वह बोला ,’प्रयाग पुरी आग में गए।’

  बाबाजी की स्मृति को प्रणाम ।

Read Full Post »