[ नारायण देसाई के लिखे यात्रा वृत्तांत ‘ यत्र विश्वंभवत्येकनीड़म ‘ से सीजर शावेज पर अध्याय । पिछला भाग ( सीजर शावेज से मुलाकात ) ]
सीजर शावेज का व्यक्तित्व
शियुलकिल नदी के किनारे , फिलाडेलफिया शहर की भीड़ से कुछ दूर , उस बगीचे में बातें कर तथा बाद में पश्चिमी किनारे पर डेलेनो में , जहाँ सीजर काम करते हैं वहाँ जा कर , एक- बार वाली नेल्सन एवं उनकी पत्नी द्वारा आयोजित निदर्शन में हिस्सा लेकर तथा सीजर के साथियों के साथ बाद में जो जानकारी प्राप्त हुई , उसमें से कुछ महत्वपूर्ण नीचे दे रहा हूँ ।
सीजर एस्टैडा शावेज के माता – पिता दोनों मेक्सिकन थे , लेकिन उसका खुद का जन्म मार्च ३१ , १९२७ को अमरीकन नागरिक के नाते हुआ था । मेक्सिकन अमरीकन या चिकानो लोग अमरीका के सबसे गरीब लोगों में से हैं और इन्हीं गरीबों के लिए अहिंसक रीति से लड़ते – लड़ते सीजर ने चिकानो गांधी उपाधि प्राप्त की है । दस वर्ष की उम्र में उसके माता – पिता जिस बगीचे में काम करते थे , वह बिक गया और सीजर के परिवार को वहाँ से हटना पड़ा । कैलिफोर्निया के एक और स्थान पर आकर जब वे रहने लगे , तब सीजर अपने भाइयों के साथ बूट पालिश का धन्धा कर माता – पिता की कमाई में कु्छ मदद करने लगा । पढ़ाई सात दरजे तक हुई । बाकी पढ़ाई सब अनुभव से । एक जंगल में लकड़ी काटने का काम किया तब मालिक की मेहरबानी से उसी जंगल में झोपड़ी बनाने की इजाजत मिली । बढ़ईगिरी का यहीं पहला सबक था ।
दस साल की अवस्था में ही सीजर शावेज का बचपन पूरा हो चुका था । जवानी के आरम्भ ही से कौम के प्रश्न उसके अपने प्रश्न बन गये । खेतों में और बगीचों में मजदूरी का काम मिलता था , लेकिन उसकी स्थिरता का कोई भरोसा नहीं था । गोरे लोग अपनी दूकानों पर लिखे रहते थे : ‘ कुत्तों तथा मेक्सिकनों का प्रवेश निषेध ।’
अमरीका का यह पश्चिम प्रान्त मजदूरों के शोषण के इतिहास का साक्षी रहा है । १८६० तक तो वहाँ के मूल निवासी रेड इण्डियनों को , जो अर्ध गुलामी में रहते थे , साफ कर दिया जा चुका था । उनके स्थान पर खेतों में चीनी मजदूर आ गये थे , जो यों तो ‘दक्षिण पैसेफिक रेलवे’ डालने के लिए चीन से लाये गये थे , लेकिन काट-कसर से रहनेवाले और मेहनतकश चीनी लोगों को वहीं के बेकार गोरे लोग सहन नहीं कर पाये । १८८२ में चाईनीज एक्स्क्लूजन ऐक्ट ( चीनी हटाओ कानून ) द्वारा धनाढ्य मालिकों ने उनकी जगह पर जापानी मजदूरों को लाना शुरु कर दिया । लेकिन थोड़े ही दिनों में जापानी मजदूरों के प्रति द्वेष का भाव बन गया ; क्योंकि उन्होंने और मजदूरों को पीछे छोड़ दिया । अलावा इसके वे अमरीकन लोगों से बेहतर किसान थे और ऐसी जमीन को उन्होंने खेती के लायक बना दिया , जो अमरीकनों के हाथों में बंजर पड़ी थी । इस आपत्ति का उपाय १९११ में विदेशी जमीन कानून बनाकर किसी विदेशी को जमीन ने देने का तय करके निकाला गया । उसके बाद वहाँ पर भारत , अरब और अरमेनिया के मजदूर आये । इनमें अरमेनिया और यूरोप से आये हुए लोगों पर गोरे होने के कारण कम जुल्म गुजारा जाता था । और आज वहाँ बसे हुए किसानों के पितामह वे ही लोग थे । मेक्सिको से भूमिहीन मजदूर अक्सर आते – जाते रहे । चूँकि वे मेक्सिको से गैर – कानूनी ढंग से आते थे , इसलिए उनको कम मजदूरी देकर काम करवाना भूमिपतियों के लिए और भी आसान हो गया । १९२० के बाद फिलीपीन द्वीप से और भी सस्ते मजदूर लाये गये , जिसके कारण कुछ समय तक मेक्सिकन मजदूरों की कीमत घट गयी । १९२९ में अमरीका के टेक्सस से मजदूरो ने आकर फिलिपीन मजदूरों को समुद्र – पार भेज दिया । १९३४ में फिलिपीन स्वतन्त्र होने के बाद वहाँ से मजदूरों का लाना बन्द हो गया । १९४२ तक चीनी मजदूर शहरों में चले गये थे , जापानी लोगों को ( लड़ाई के कारण ) पकड़कर कन्सन्ट्रेशन कैम्पों (यातना शिविर ) में रखा गया था , यूरोपीय मजदूर पढ़-लिखकर आगे बढ़ गये थे और उनमें बहुत सारे बगीचों के मालिक बन गये थे । बाकी गोरे लोग युद्ध के आर्थिक उत्पादन के क्षेत्रों में लग गये थे । इसलिए मेक्सिको सरकार से बातचीत करके ‘ ब्रेसरो’ (खेत – मजदूर ) का कार्यक्रम बनाया गया , जिसमें मेक्सिको से मजदूरों को कटनी के समय ट्रकों में भरकर केलिफोर्निया तथा अन्य दक्षिण- पश्चिमी राज्यों में लाया जाता था और कटनी खतम होते ही फिर उन्हें ट्रकों भरकर मेक्सिको लौटाया जाता था । यह व्यवस्था भूमिपतियों को इतनी अनुकूल पड़ गयी कि युद्ध समाप्त होने के बाद भी ‘ब्रेसरो’ कार्यक्रम जारी रखा गया। वाशिंगटन में इस कार्यक्रम के समर्थकों ने यह दलील दी कि गोरे लोग कपास , बीट आदि की फसल काटने का मेहनत का काम नहीं कर पायेंगे । लोग आसानी से भूल गये कि थोड़े ही वर्ष पहले यह सारा काम गोरे लोगों ने किया था और अगर ठीक से जीवन – निर्वाह करने लायक रोजी मिले तो अब भी काले-गोरे लाखों लोग यह काम करने को तैयार थे । लेकिन दरिद्र और लाचार मेक्सिकन लोग कम मजदूरी में अधिक समय तक काम करने को तैयार थे । १९५९ में एक अन्दाज के अनुसार ४ लाख विदेशी मजदूर काम करते थे , जब कि देश में ४० लाख लोग बेकार बैठे थे । १९६४ में कानून से ‘ब्रेसेरो’ प्रोग्राम को बन्द किया गया । उसके बाद मजदूरों में हड़ताल आदि के जरिए संगठन करके अपनी स्थिति सुधारने की कुछ आशा बढ़ी । लेकिन अंगूर के उत्पादक मालिकों ने तब तक और उपाय ढूँढ़ लिये थे । अमरीका में एक कानून के अनुसार ‘स्थायी निवासी विदेशियों ‘ को हरा कार्ड लेकर अमरीका में रहने की छूट दी गयी थी। मेक्सिकन लोग मजदूरी के पैसे लेकर वापस अपने देश चले जाते थे । कानून यह है कि जहाँ कहीं किसानों और मालिकों के बीच विवाद रजिस्टर किया गया हो , वहाँ विदेशी मजदूर काम नहीं कर सकते हैं । लेकिन इस प्रकार के विवाद रजिस्टर करने में ही ढीलाढाली की जाती थी और विदेशी मजदूरों को लाकर स्थानीय मजदूरों की हड़तालें तुड़वायी जाती थीं।
इसी प्रकार का वातावरण था , जब सीजर शावेज ने कैलिफोर्निया की सेन जोआक्वीन उपत्यका में अंगूर के बागों में काम करनेवालों के संगठन की जिम्मेदारी सँभाली ।
जब तक सीजर नहीं आया था , मजदूर नेताओं ने खेत – मजदूरों के संगठन को अशक्य-सा(नामुमकिन) मान रखा था । ये मजदूर अधिकांश अनपढ़ हैं , एक जगह बहुत दिन टिकते नहीं हैं और ऐसे अल्पसंख्यक समुदायों से आये हैं जिनके बारे में बहुसंख्यक लोगों को विशेष सहानुभूति नहीं है। इसी कारण इन लोगों की हड़तालें बार – बार तोड़ी गयी थीं ।
इधर सीजर को भी संगठन से बहुत आशा नहीं थी । जब लॉस एन्जेलिस में स्थापित कम्युनिटी सर्विस आर्गनाइजेशन की ओर से फ्रेड रास नामक एक सज्जन ने उससे सम्पर्क करने की कोशिश की तो पहले तो दो – तीन दिन वह उससे मिलना ही टालता रहा । ” अरे , ये लोग यहाँ पर रिपोर्टरों को भेजते हैं , और फिर वहाँ जाकर हम लोगों के बारे में अजीब – अजीब रिपोर्ट लिखते हैं । उन्हें और काम ही क्या है ? ” यह थी सीजर की मनोवृत्ति । लेकिन फ्रेड रास इससे हार मानने वाला नहीं था । उसने आखिर एक दिन सीजर को पकड़ ही लिया। कम्युनिटी सर्विस आर्गनाइजेशन के बारे में बातें करने के लिए एक मीटिंग बुलाने की उसकी इच्छा थी ।
” आपको सभा में कितनी लोग चाहिए ? ” सीजर ने पूछा ।
” चार – पाँच होंगे तो चलेगा । ” रास ने कहा ।
“और बीस हों तो ? “
” तब तो पूछना ही क्या ? “
इस सभा में जिन लोगों को सीजर ने बुलाया था , उनमें से कुछ को तो उसने कह रखा था कि ” जब मैं अपनी सिगरेट एक हाथ से दूसरे हाथ में लूँ , तब आप लोग शरारत शुरु कर सकते हैं । ” लॉस एन्जेलिस से उनकी अवस्था के बारे में रिपोर्ट लिखने के लिए आने वालों के बारे में सीजर को इतनी चिढ़ थी । लेकिन सभा में सीजर ने देखा कि फ्रेड रास कोई दूसरे ही प्रकार का आदमी था । उसके बाद तो कई सभाओं में सीजर फ्रेड के पीछे – पीछे दौड़ता रहा ।
सीजर पहले – पहल कम्युनिटी सर्विस आर्गनाइजेशन में वोटर रजिस्ट्रेशन अभियान के निमित्त शामिल हुआ । फ्रेड ने सीजर को इस संस्थान के संगठन का अध्यक्ष बनाया । ” मैं कहा जाता ? धनवानों के पास ? उनसे तो मेरी कोई जान – पहचान भी नहीं । इसलिए मैंने अपनी घाटी के १६ लोगों को अपने साथ किया । वैसे तो उनको कानून मतदाताओं के नाम भर्ती करवाने का कोई अधिकार नहीं था , क्योंकि उनमें से हर एक ने कभी न कभी कोई जुर्म किया था । उनको तो मत देने का भी अधिकार नहीं था । लेकिन वे घर – घर जाकर द्वार तो खटखटा सकते थे । और उन्होंने मेहनत भी काफी की । “
सीजर की सबसे बड़ी कुशलता कोई है तो वह संगठन – शक्ति की है । इसी कुशलता के कारण उसने इतिहास में पहली बार अंगूर के बगीचे में काम करनेवाले गरीब , अनपढ़ , असहाय मजदूरों को संगठित किया । ‘ संगठन के लिए सबसे बड़ी चीज चाहिए समय । अगर आपके पास समय हो तो आप संगठन कर सकते हैं ।’ सीजर का यह वाक्य शायद भारत में उतना समझ में नहीं आयेगा , जहाँ फुर्सत है । और सीजर के समय का अर्थ कोरा समय नहीं होता । उसका अर्थ होता है प्रेम-सभा समय । इसीके कारण तो वह अब भी छोटे-बड़ों के पास जाकर उनके सुख – दुख का अंतरंग साथी बन सकता है । जब सीजर के नेतृत्व में एक हड़ताल चल रही थी , तब डेनि नामक एक मजदूर ने हड़ताल का विरोध करते हुए कहा था : ” मुझे बन्दूक दीजिए तो अभी उनमें से कइयों की लाशें गिरा दूँगा । ” इस हड़ताल में सीजर के लोगों की जीत हो गयी । तब ये लोग चाहते थे कि डेनि को अब यहाँ से लात मारकर भगाया जाय । लेकिन सीजर ने कहा : “क्या आप एक आदमी से डर गये ? आपको मालूम है कि सच्ची चुनौती किस बात में है ? उसे निकालने में नहीं , लेकिन उसे अपने में लाने में सच्ची चुनौती है । अगर आप अच्छे संगठक हों , तो जरूर उसे अपने में आने को राजी कर लेंगे – लेकिन आप आलसी हैं । “
अंगूर के बगीचे के मजदूरों के संगठन को अभी तक बहुत बड़ी सफलता तो नहीं मिली है । आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सरकार के कानून द्वारा संगठन के अधिकार प्राप्त करना है । हड़ताल का साधन हमेशा सफल नहीं होता । मुख्य कारण यह है कि अंगूर – उत्पादकों को दूसरे मजदूर आसानी से मिल जाते हैं । अतएव सीजर के संगठन युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी ने कई जगह नये मजदूरों को काम पर जाने से रोकने के लिए पिकेटिंग की है । हड़ताल में शामिल होने वाले मजदूरों को युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी कुछ दूसरा काम देने का भी प्रयत्न करती है । लेकिन वर्षों तक चलने वाली हड़ताल को टिकाये रखने के लिये समिति के पास पैसे नहीं हैं । हड़ताल को टिकाये रखनेवाला मुख्य तत्व है संगठन के नेताओं का सादा जीवन । उनके और मजदूरों के जीवन में अन्तर नहीं है । मजदूरों के कष्ट सीजर और उनके साथियों के कष्ट बन जाते हैं ।
हाँ , कई साथियों में इतना धीरज नहीं है । मालिक लोग जब पीछे से ट्रकें लाकर मजदूरों को रास्ते चलते कुचल डालते हैं , मेक्सिको से आये हुए नये मजदूरों को हड़ताल करनेवाले लोगों से झगड़ा करने के लिए किराये पर रखते हैं , सीजर या उसके साथियों को खुले आम गालियाँ देते हैं , तब सीजर के साथियों में से कोई – कोई चिढ़ जाता है । सीजर उन्हें कभी हँसकर , कभी गंभीरता से समझाता है । वे कहते हैं : ” अहिंसा के रास्ते से देर लगती है । ” सीजर कहता है : ” हिंसा के रास्ते से जो सफलता मिलती है , वह स्थायी नहीं होती । “दलीलें चलती रहती हैं । अन्त में बात वही होती है , जो सीजर कहता है , लेकिन सीजर को भी मालूम है कि केवल उसकी अपनी अहिंसा – निष्ठा से काम बननेवाला नहीं है । इसलिए वह सारे कार्यकर्ताओं को अहिंसा की महिमा समझाने की कोशिश करता रहताह है ।
[ शेष भाग अगली किश्त में ]
सीजर शावेज के बारे में जान कर अच्छा लगा। इस आलेख में नारायण भाई की टिप्पणी कि,
“संगठन के लिए सबसे बड़ी चीज चाहिए समय । अगर आपके पास समय हो तो आप संगठन कर सकते हैं ।’ सीजर का यह वाक्य शायद भारत में उतना समझ में नहीं आयेगा , जहाँ फुर्सत है । और सीजर के समय का अर्थ कोरा समय नहीं होता । उसका अर्थ होता है प्रेम-सभा समय । इसीके कारण तो वह अब भी छोटे-बड़ों के पास जाकर उनके सुख – दुख का अंतरंग साथी बन सकता है।”
लेकिन अब वास्तव में मजदूरों के पास समय नहीं है। ये मजदूर हैं आई टी जैसे आधुनिक उद्योगों में काम करने वाले उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त लोग। इन्हीं में संगठन की जाग्रति पैदा करने की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि आज सब से आधुनिक उद्योग में काम करने वाला श्रमजीवी ही आने वाले परिवर्तन का अगुआ बन सकता है।
अगली किश्त की प्रतीक्षा है।
घुघूती बासूती
बहुत अच्छी सीरीज़ चल रही है सर! क्या यह पुस्तक कहीं उपलब्ध है.
हमारे एक गुरूजी थे स्कूल में मजूमदार सर. उन्होंने हमें अपनी डायरियों में शावेज़ का एक कथन बाकायदा डिक्टेट कर के लिखवाया था: “You cannot uneducate a person who has learned to read. You cannot humiliate the person who feels pride. You cannot oppress the people who are not afraid anymore.”
प्रतीक्षा चल रही है अगले भाग की.
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