उम्र के फर्क से लोहिया की दोस्तियां प्रभावित नहीं होती थीं।पार्टी के भीतर के मतभेदों को लेकर जेपी और लोहिया के बीच हुए पत्राचार एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुए थे।एक पत्र में ‘आप’ का इस्तेमाल होते ही टोका गया था।मुझे लगता है दोस्ती में उम्र का बाधक न बनना लोहिया के प्रेम प्रकोप से होता होगा।बनारस में जेपी की आम सभा में मैं मौजूद था जब उन्हें लोहिया के बीमार होने की खबर मिली थी।जेपी ने सभा में मौजूद लोगों को लोहिया की तबीयत की खबर दी,सभा समाप्ति की घोषणा की तथा दिल्ली जाने के लिए मुगलसराय से ट्रेन पकड़ने के लिए निकल पड़े।
नवकृष्ण चौधरी,मालती देवी और लोहिया का परस्पर संबंध भी बहुत दोस्ताना था।नवबाबू जेपी से मात्र साल भर बड़े थे।मालती देवी नवबाबू से लगभग साढ़े तीन साल कम थीं।लोहिया ने किसी भाषण में ‘पूर्व बंगालन की हंसी की खूबसूरती’ का जिक्र किया है।हांलाकि वे मानते थे कि दुनिया की हर औरत खूबसूरत होती है।यहां उनकी कॉमरेड मालती देवी पूर्व बंगालन थी और उनकी मुस्कान और हंसी बहुत प्यारी थी यह बता देना चाहिए।
कुछ समय तक लोहिया बनारस में एक पैसे वाले व्यक्ति को मेजबानी का मौका देते थे।पार्टी के साथियों ने प्रतिवाद किया उसके बाद गंगा पर बजड़े में टिकना पसंद करते थे। 1965 या 1966 की बात है।मालतीदेवी और नवबाबू बनारस में राजघाट स्थित साधना केंद्र में हमारे घर आए हुए थे।उन्हीं दिनों लोहिया भी बनारस आए हुए थे।मालतीदेवी और नवबाबू से मिलने वे आए हमारे घर से करीब 60 मीटर दूर परिसर के फाटक पर रुक गए।वहीं से जोर से पुकारा,’मैं उस सरकारी संत के परिसर में नहीं घुसूंगा तुम दोनों फाटक पर आओ।’ दोनों से गले मिले।बात बांग्ला में होती होगी या हिंदी में पता नहीं।
1965 से 1967 के बीच लोहिया और नवबाबू के बीच के राजनैतिक आदान प्रदान का हवाला सोशलिस्ट पार्टी उड़ीसा के तत्कालीनअध्यक्ष रबि राय ने जून 1967 के ‘जन’ में छपी रपट में दिया है।आजादी मिलने के बीस साल बाद 9 राज्यों में गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल बन चुके थे।उस रिपोर्ट के कुछ हिस्से सीधे उद्धरित कर रहा हूँ –
[ ” उड़ीसा में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई और वहाँ गैर कांग्रेसी मंत्री मंडल भी बना है।दूसरे आठ राज्यों में जहां गैर-कांग्रेसी मंत्रीमंडल बने,उड़ीसा उनसे पीछे नही रहा,कई बातों में तो आगे ही रहा।
27 फरवरी, 1966 को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में ‘कांग्रेस हटाओ देश बचाओ’ कार्यक्रम क्रियान्वित करने के लिए एक आम सभा हुई।इस सभा का महत्व इसलिए बढ़ गया क्योंकि उड़ीसा के भूत पूर्व मुख्य मंत्री नवकृष्ण चौधरी ने कांग्रेस को किस तरह हटाया जाए इस बारे में अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे।मैं भी उस सभा में उपस्थित था। असल में यह सभा नवकृष्ण चौधरी के कहने पर बुलाई गई थी।यह कहना ठीक होगा कि उस सभा में उड़ीसा में कांग्रेस हटाओ आंदोलन की नींव डाली गई।नबकृष्ण चौधरी के भाषण से यह भी पता चला कि वह भाषा, समानता, सादगी, बड़े लोगों की आय और खर्च पर पाबन्दी जैसी सोशलिस्ट पार्टी की नीतियों के प्रबल समर्थक हैं।पिछले साल जून में जब राममनोहर लोहिया उड़ीसा के अकाल पीड़ित क्षेत्रों का दौरा करने गए थे उस समय लोहिया की उपस्थिति में पत्रकार लोगों को भी नवकृष्ण चौधरी ने बाकायदा कहा था कि मैं बहुत से मामलों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नजदीक हूँ।
नवकृष्ण चौधरी विचार और व्यवहार में जनता के आदमी हैं। 1934 में वह कांग्रेस समाजवादी दल के मंत्री ही नहीं नेता भी थे,और उड़ीसा में किसान आंदोलन और पुराने रियासती राज्यों में प्रजा आंदोलन के प्रतिष्ठाता के रूप में उनकी ख्याति थी। 1950 से 1956 तक उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहकर उन्होंने कॉन्ग्रेस की सिद्धांतहीनता का अनुभव किया और उसके बाद मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस की साधारण सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। 1948 में समाजवादियों के कांग्रेस छोड़ने के वक्त अगर नवकृष्ण चौधरी कांग्रेस छोड़कर समाजवादियों के साथ रहते तो उड़ीसा के समाजवादी आंदोलन की शक्ल आज कुछ और ही होती।
नवबाबू के खुल्लमखुल्ला कांग्रेस के खिलाफ अभियान शुरू करने के बाद उड़ीसा के सब विरोधी राजनीतिक दलों में एक हलचल पैदा हो गई।हरेकृष्ण महताब और नवकृष्ण चौधरी विचार और सिद्धांत दोनों में बहुत पार्थक्य होते हुए भी नवकृष्ण चौधरी के कांग्रेस हटाओ नारा बुलंद करने के बाद हरे कृष्ण महताब ने अपने बहुत से अन्यायियों के साथ जन कॉन्ग्रेस का गठन किया।जन कॉन्ग्रेस के गठन के बाद उड़ीसा में कांग्रेस की हार की संभावना बढ़ती ही गयी।
चुनाव के पहले कांग्रेस की ओर से जब यह प्रचार किया गया कि विरोधी दलों के बीच तालमेल नही हो सकता तब नवकृष्ण चौधरी ने भरपूर कोशिश कर जन कॉन्ग्रेस और स्वतंत्र दल के बीच सीटों का बंटवारा किया,और इसका जनता पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा।
कांग्रेस को उड़ीसा में सिर्फ 30 सीटें मिलीं। 1930 के मध्य अवधि चुनाव में बीजू पटनायक के नेतृत्व में उसे 82 सीटें मिली थीं।उड़ीसा कांग्रेस के नेता बीजू पटनायक 20 हजार,गृहमंत्री नीलमणि राउत राय 22हजार और शिक्षा मंत्री सत्य प्रिय महन्ती 18 हजार वोटों से हारे।चुनाव नतीजा निकलते वक्त मालूम पड़ता था कि जनता ने सोच समझ कर वोट दिया जिसके चलते कांग्रेस हटाओ ने एक आन्दोलन का रूप ले लिया।
उड़ीसा में गैर कॉन्ग्रेसी सरकार बनाने के बाद ही 1 अप्रैल से जमीन से पूरा लगान खत्म करने का ऐलान किया गया।मंत्रीमंडल ने 21 सूत्री कार्यक्रम बनाया है जिसमे लगान माफी,भ्रष्टाचारी मंत्रियों के खिलाफ आयोग नियुक्ति, उड़िया भाषा का सार्वजनिक क्षेत्र में प्रचलन और लोकपाल की नियुक्ति की बाते हैं।एक मंत्री को छोड़कर सबने उड़िया में शपथ ली।
यह गैर कांग्रेसी मंत्रिमंडल क्रांतिकारी परिवर्तन का माध्यम नही बन सकता।अभी समय आया है कि जनता और राजनीतिक दल समय की चुनौती को स्वीकारें और एक ऐसा राजनीतिक दल बनाने की सोचें जो मन और पेट की भूख को मिटा सकता है।ऐसा दल ही आर्थिक क्रांति ला सकता है।उसीसे तथा देश मे दारिद्र्य को मिटाने का यही एक रास्ता है। -रबि राय]
1965 से 67 में नवबाबू
जून 26, 2021 अफ़लातून अफलू द्वारा
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