यह हैं काशी के शिवाला मोहल्ले के हयात मोहम्मद खाँ। हमारे पोलू भाई । मोहल्ले के ज्यादातर लोगों की तरह जरदोजी , बैज ( ब्लेजर पर लगने वाला ) बनाने अथवा बनारसी साड़ी बिनने का काम वे नहीं करते हैं । पोलू भाई कभी ऑटो रिक्शा चलाते थे , कभी बिजली का काम ।
उनका पसंदीदा काम है रसोइए का । छोटी-सी चाय की गुमटी है । गरमियों में चाय बनना बन्द हो जाती है । उसकी जगह आम का पन्ना , लस्सी , नीबू पानी और रूह आफ़ज़ा चलने लगता है । उन दिनों ‘यह कोक-पेप्सी मुक्त क्षेत्र है’ का बैनर अथवा ‘दूध – दही के देश में ,पेप्सी-कोक नहीं चलेगा’ के स्टिकर उनकी दुकान की शोभा बढ़ाते हैं । पोलू भाई जब ‘अनरसे की गोलियाँ’ छानते हैं तब बच्चों की भीड़ लग जाती है ।
आज , पोलू भाई की अंतर्राष्ट्रीय पाक कला निपुणता की चर्चा करेंगे । पोलू भाई आस – पास के लॉजों में रसोइए का काम भी करते रहे हैं । बनारसी पंडे तीर्थ यात्रियों का हाव – भाव , चाल – चलन , वेश-भूषा ‘तजबीज’ कर उनका प्रान्त बता देते हैं । पोलू भाई उसी गुण से विदेशी पर्यटकों का देश बता देते हैं । जब वे लॉजों में रसोई बनाते थे तब इसराईली लड़कियाँ उनसे पूरी-सब्जी , मसालेदार सब्जी , दाल और चपाती बनाना सीखती थीं । उन्हीं लड़कियों से पोलू भाई ने ‘सकसूका’ और ‘मलावा’ जैसे इसराईली पकवान बनाने सीखे । त्योहारों और विशिष्ट अवसरों पर ‘ मलावा’ और ‘सकसूका’ का बनना जरूरी होता है । “पुरुष नहीं सीखते – भारतीय पकवान बनाना?” पोलू भाई गंभीरता से बताते है अपने देश में रेस्टरॉं चलाने वाले इक्का दुक्का पुरुष भी सीखते थे ।
बहरहाल , इसराईली महमानों से उनके देश के व्यंजन बनाना सीखने के बाद पोलू भाई ने एक लॉज के मेनू में सकसूका और मलावा को शामिल करवाया । इनकी लोकप्रियता को देख कर मेनू चोरी हुआ और अब शिवाला के अन्य गेस्ट हाउसों में भी यह इसराईली व्यंजन उपलब्ध हो गये हैं ।
पोलू भाई नरीमन हाउस में इसराईली नागरिकों के साथ आतंकियों की नृशंसता से आहत हैं। उनके मोहल्ले के रेस्टरां तथा स्वयं उनकी चर्चा भारत के बारे में हिब्रू में लिखी गई पर्यटन गाइडों और इन पर्यटकों के ब्लॉगों में हुई है ।
पोलू भाई की दिली इच्छा है कि काशी आने वाले इसराईली पर्यटकों की पसंद शिवाला है- यह भी दुनिया जाने ।
क्या आप इन बोर्डों को पढ़ सकते हैं ? कौन सी लिपि है , यह ? काशी विश्वविद्यालय से काशी स्टेशन तक गंगाजी के समानांतर जाने वाली बनारस की एक मुख्य सड़क पर यह बोर्ड हैं । जॉन ज़ैदी द्वारा संचालित इन्टरनेट कैफ़े की सूचना है, इन पर । महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद जॉन जिन्हें मोहल्ले में ‘लिटिल’ के नाम से पुकारा जाता है ने यह इन्टरनेट कैफ़े शुरु किया । इसराईली पर्यटकों का यह अति प्रिय केन्द्र है । लिटिल को एक मनोरंजन चैनल में नौकरी मिल गयी इसलिए उन्हें बनारस छोड़ना पड़ा । उनके बड़े भाई अली नवाज जैदी अब उस कैफ़े के संचालक हैं । लिटिल की चर्चा पर्यटक स्वदेश लौट कर भी करते हैं इसलिए बनारस आने वाले इसराईली पर्यटक अभी भी उसकी दुकान और उसे खोजते हुए पहुंचते हैं ।
१८५७ से ७६ साल पहले अंग्रेज सैनिकों के छक्के छुड़ाने वाले इस मोहल्ले की चर्चा इस चिट्ठे पर पहले हुई है । साहित्यकार रत्नाकर के नाम पर बने इस मोहल्ले के रत्नाकर पार्क के समक्ष १९६७ में अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन के प्रदर्शनकारियों पर गोली चालन हुआ था । आतंकी मुम्बई के नरीमन हाउस पर हमले द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जो घिनौना संकेत देना चाहते थे उसकी काट भी शिवाला के पोलू भाई और जॉन ज़ैदी बनेंगे , यह हमारी दुआ है ।