[ अब की गरमियों में पहला पड़ाव हैदराबाद था । जहाँ एक जानदार व्यक्ति – लाल्टू से मुलाकात हुई । उनकी कविताएँ मिलीं , पेश हैं । ]
१
तुमने कहा अरे !अरे क्या ! मैंने कहा फिर लिया लेखा जोखा आपस में हमनेआपस के छूटे हुए दिनों कातुमने पिलाया पानीमैंने सोचा कब छूटेगा तुम्हारा बदनदिन भर के काम से
२
तुम्हारी पीठ पर से कुछ अणुमेरी हस्त – रेखाओं में बस गये हैंजहां भी जाता हूंलोगों से हाथ मिलाता हूंउनके शरीर में कुछ तुम आ जाती होऔर वे सुन्दर लगने लगते हैं अचानक कम नहीं होती मुझमें तुमजहां कहीं से भी लौटता हूंतुम होती हो हथेलियों परसड़कों से नाचते – नाचते लौटता हूं घरदरवाजा खोलते ही खिलखिलाता हंस उठता हैदीवार पर पसरा भगतसिंह
३
तुम्हारा न होना मेरा अपना न होना है
जीता हूं सुख से फिर भी क्योंकि
ठंडी हवा है तुम्हारे होने की संभावना लिए
आज तो एक चांद भी है तुम सा
सच कहता यह जो अंधेरा चांद से यहां तक फैला है
वह तुम्हारे बाल हैं
अंधेरे को उंगलियों से छूता हूं बार – बार
जानता हूं दूर किसी गांव में
मुड़ – मुड़ कर चूम रही होगी
मेरी उंगलियों को तुम
– लाल्टू
अंधेरे को उंगलियों से छूता हूं बार – बार
जानता हूं दूर किसी गांव में
मुड़ – मुड़ कर चूम रही होगी
मेरी उंगलियों को तुम
बहुत सुन्दर.
लाल्टू की इन कविताओं के लिए आभार!
लाल्टू की कविताओं से लगता है की वह जानदार आदमी है
दिलचस्प कविताएं है ….
लाल्टू की कविताएं एकदम ताजा लगती हैं। यह अदुभुत कल्पना है कि तुम्हारी पीठ के अणु हस्त रेखाओं में बसे हैं। औरों से हाथ मिलाने पर तुम उनमें आजाती हो। पर मुझमें कम नहीं होंती। लाल्टू भाई सलाम आपको।
अच्छी कविता हैँ।
कविता उनकी कल्पना शक्ति की समृद्धता को प्रदर्शित करती हैँ। लाल्टू जी और आपको धन्यबाद॥
कविता अच्छी है
हाय प्रेम तू क्यों तपता है।
क्योँ तेरा तन सूखा है ।
सावन भर घन जल बरसाये।
तृषित अंग फिर भी न माने।
क्या तूने चातक की नाई।
कठिन प्रतिज्ञा कर ही डाली।
क्या तू अश्रु पिएगा खाली।
माँ की ममता में आँसू।
प्रीतम विरह मिलन में आँसू।
अरे प्रेम बस तेरे खातिर कितना आँसू गिरता है,
सोच दहल उठता है ये मन,
कितना आँसू पीता है॥
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बेहद intense फिर भी संतुलित प्रेम कविताएँ।
Reblogged this on roshandan and commented:
एक प्रेम कविता, उच्छल भी संतुलित भी।