भालुकपोंग में हम अरुणाचल की सीमा में दाखिल हुए।यहीं तक तराई है। कुछ ही दूर टीपी गांव में वन विभाग द्वारा संचालित एक ऑर्किड शोध-केन्द्र है। अरुणाचल में हिमालय की पहाड़ियां कतारबद्ध नहीं हैं। आड़ी-तिरछी एक दूसरे को काटती हुई हैं। असम के सहायक वन संरक्षक बनारस में मेरे स्कूल में ५ वर्ष आगे थे। उन्होंने बताया कि अंडमान-निकोबार के बाद अरुणाचल का वनाच्छादित इलाका सर्वाधिक है(क्षेत्रफल के प्रतिशत के हिसाब से)।भालुकपोंग से तवांग पहुंचने के लिए जिन दर्जनों पहाड़ियों-घाटियों को पार किया उन पर पेड-पौधों की विविधता ध्यान खींचने वाली थी।जगह-जगह फूले लाल बुरांश के फूलों ने ध्यान खींचा तब स्वातिजी ने उसका नाम बताया। केले से मिलता-जुलता एक पेड़ बहुतायत में दिखा। जंगल के हिस्से के रूप में।यानि जिसे बतौर खेती न लगाया गया हो।मजे की बात यह थी कि मीलों तक यह पेड़ दिखे और सिर्फ एक जगह उनका फूल और एक जगह गाढ़े रंग के छिलके वाले फल दिखे।मुमकिन है फल सड़ चुके हों।अरुणाचल के बाहर के एक विद्वान साथी ने कहा कि सम्भव है उनके फूलने-फलने का यह मौसम न हो।अरुणाचल के जंगल में विविधता है लेकिन अनमने तो नहीं लगते वे।
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अरुणाचल के फूल,पेड़-पौधे |
सेन्सरशिप में यकीन रखने वालों का माध्यम ब्लॉग नहीं है,नीतीश कुमार!
Posted in सेंसरशिप censorship, tagged aflatoon, अफ़लातून, टिप्पणी, नीतीश, ब्लॉग, सेंसरशिप, blog, censorship, comment, nitish on अप्रैल 28, 2010| 4 Comments »
नीतीश कुमार के ब्लॉग पर उनकी हिन्दी में लिखी पहली पोस्ट पर मैंने टिप्पणी की है । मेरी समझ से उनके प्रति अत्यन्त संवेदना के साथ। फिलहाल ( २८ अप्रैल,शाम ४.५८ बजे) २८ अनुमोदित टिप्पणियों में मेरी टिप्पणी नहीं है । इसका मतलब नीतीश रचनात्मक आलोचना भी बरदाश्त करने का माद्दा नहीं रखते । आपातकाल काल के दौरान लगाई गई सेन्सरशिप के वे विरोधी रहे होंगे परन्तु एक ब्लॉग में की गई टीप को क्या वे बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं?
इस पोस्ट के द्वारा उन्हें २४ घण्टे की मोहलत दे रहा हूँ कि वे मेरी टिप्पणी को प्रकाशित कर दें । तब तक उनकी पहली हिन्दी में लिखी पोस्ट पर अपनी टिप्पणी को मैं यहाँ नहीं प्रकाशित करूँगा। टिप्पणी के प्रकाशन के बाद पाठक तय करेंगे कि उक्त टिप्पणी का नीतीश कुमार द्वारा रोका जाना उचित था अथवा नहीं।
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