कोहरा/ विनायक सेन
कल शाम से गहरा गया है कोहरा,
कमरे से बाहर निकलते ही गायब हो गया मेरा वजूद,
सिर्फ एक जोड़ी आँखें रह गयी अनिश्चितता को आंकती हुई,
अन्दर बाहर मेरे कोहरा ही कोहरा है,
एक सफ़ेद तिलिस्म है है मेरे और दुनिया के बीच,
लेकिन मेरे अन्दर का कोहरा कहीं गहरा है इस मौसमी धुंध से
मैं सड़क पर घुमते हुए नहीं देख पा रहा कोहरे के उस पार
मेरे-तुम्हारे इस देश का भविष्य
मेरा देश कुछ टुकड़े ज़मीन का नहीं हैं जिसे लेकर
अपार क्रोध से भर जाऊं मैं और कर डालूँ खून उन सभी आवाजों का
जो मेरी पोशाक पर धब्बे दिखाने के लिए उठी हैं,
मेरा देश उन करोड़ों लोगों से बना है,
जिनकी नियति मुझ से अलग नहीं है,
जो आज फुटपाथ पर चलते-फिरते रोबोट हैं,
जो आज धनाधिपतियों के हाथ गिरवी रखे जा चुके हैं,
जो आज सत्ता के गलियारों में कालीन बनकर बिछे हैं,
जो आज जात और धर्म के बक्सों में पैक तैयार माल है जिन्हें बाजार भाव में बेचकर
भाग्य विधाता कमाते हैं ‘पुण्य’ और ‘लक्ष्मी’,
घने कोहरे के पार कुछ नहीं दिखाई देता मुझे,
शायद देखना चाहता भी नहीं मैं,
वह भयानक घिनौना यंत्रणापूर्ण दृश्य जो कोहरे के उस पार है,
वहाँ हर एक आदमी-औरत एक ज़िंदा लाश है,
वहाँ हर एक सच प्रहसन है
वहाँ हर एक सच राष्ट्रद्रोह है,
वहाँ हर उठी उंगली काट कर बनी मालाओं से खेलते हैं
राहुल -बाबा-नुमा बाल-गोपाल-अंगुलिमाल,
और समूचा सत्ता-प्रतिसत्ता परिवार खिलखिला उठता है,
इस अद्भुत बाल-लीला पर,
इस घने कोहरे से सिहर उठा हूँ मैं,
और कंपकंपी मेरी हड्डियों तक जा पहुँची है,
आज सुबह मैंने आईने में चेहरा देखा
तो सामने सलाखों में आप नज़र आये
विनायक सेन……
– इकबाल अभिमन्यु
*तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन*
जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थे
तब वे गुलछर्रे उड़ा रहे थे
जब तुम मरीज की नब्ज टटोल रहे थे
वे तिजोरियां खोल रहे थे
जब तुम गरीब आदमी को ढांढस बंधा रहे थे
वे गरीबों को उजाड़ने की
नई योजनाएं बना रहे थे
जब तुम जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थे
वे संविधान में सेंध लगा रहे थे
वे देशभक्त हैं
क्योंकि वे व्यवस्था के हथियारों से लैस हैं
और तुम देशद्रोही करार दिए गए
जिन्होंने उन्नीस सौ चौरासी किया
और जिन्होंने उसे गुजरात में दोहराया
जिन्होंने भोपाल गैस कांड किया
और जो लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ाते रहे
उनका कुछ नहीं बिगड़ा
और तुम गुनहगार ठहरा दिए गए
लेकिन उदास मत हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
तुम हो हमारे आंग सान सू की
हमारे लिउ श्याओबो
तुम्हारी जय हो।
-राजेंद्र राजन
सुन्दर
I have made an English translation of Tum Akele Nahin Ho Binayak Sen. Please do suggest corrections and improvements. And if you know a way of reaching the poet, please put me in touch.
You are not alone, Binayak Sen.
While you were giving a child its medicine
They were whooping it up at parties.
While your fingers were feeling a patient’s pulse,
Theirs were ransacking treasuries.
While you were bandaging a poor man’s hurt,
they were looking for new ways to kill him.
While you were speaking out against injustice
They were robbing people of their rights.
They are patriots
armed with power and wealth.
And you? You’re called traitor
by those who did the massacre of nineteen eighty four,
then repeated it in Gujarat,
by those who caused the gas horror in Bhopal,
and let a million of tons of food rot in warehouses.
Nothing of theirs was spoiled
and you? You’re in jail, a criminal.
But don’t be sad.
You’re not alone, Binayak Sen,
You are our Aung San Suu Kyi
Our very own Liu Xiaobo
Bless you.
[Rajendra Rajan]