ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हूज़ूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
लब कुशां हूं तो इस यकीन के साथ
कत्ल होने का हौसला है मुझे
दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी, आबला है मुझे
कौन जाने कि चाहतो में फ़राज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे
– अहमद फ़राज़ .
[ उर्दू के वरिष्ट शायर अहमद फ़राज़ गुजर गये । चिट्ठेकार शहरोज़ ने मुझे उनके बारे में बताया । फ़राज़ साहब की राजपाल से छपी किताब का देवनागरी में लिप्यांतरण शहरोज़ ने ही किया है ।
आपका आभार.
आपने फ़राज़ साहब को याद किया.और इसे बहाने मेरे ठिकाने का पता भी दे दिया.
वक़्त मिला तो मैं भी कुछ करता हूँ.
बेहतरीन ग़ज़ल…सटीक प्रस्तुति.
सच,फ़राज़ साहब बहुत गहरे शायर हैं.
वे और उनकी शायरी दोनों लाज़वाब हैं.
उनकी याद आती रहेगी.========
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
उन की अब तक पढ़ी सभी ग़ज़लें बेहतरीन ही हैं।
शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!
छा गये अफलातून जी, मजा आ गया, इसमें से हमारी पसंदीदा लाईने
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
hmm. nice one.
shekhar.s
अलविदा अहमद फराज साहब…
श्रद्दांजलि फ़राज साहब को।
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
[…] हार जाने का हौसला है मुझे / अहमद फ़राज़ […]
[…] हार जाने का हौसला है मुझे / अहमद फ़राज़ […]
when poetry sung by heart it effect brain, thus whole of body become intoxicant,