लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने दु:शासन पर्व में चंडीगढ़ जेल में अपनी डायरी में लिखी कविता में कहा था :
मुझ क्रान्ति – शोधक के लिए,
कुछ अन्य ही पथ मान्य थे , निर्दिष्ट थे,
पथ त्याग के , सेवा के , निर्माण के ,
पथ संघर्ष के , सम्पूर्ण क्रान्ति के .
एक शनिवार की शाम . अपने दफ़्तर से सरकारी बँगले की ओर वे लौट रहे थे . यह घटना बिहार की है लेकिन घटना सिख आतंकवाद से त्रस्त दौर की है . मुँह पर सीधे टॊर्च दाग कर दरोगा ने उन्हें रोका . कहा कि आतंकी दौर में सावधानी बरती जा रही है . उस व्यक्ति ने कहा कि ,’सावधान रहो , लेकिन किसी के मुँह पर यूँ टॊर्च न चमकाओ’. दरोगा ने ऐसे जवाब की कत्तई अपेक्षा नहीं की थी . उसने कहा अब थाने पर बात होगी . उस व्यक्ति ने कहा .’चलिए मैं बिल्कुल तैयार हूँ’. थाने पहुँच कर भी पुलिसिया रुवाब का असर न देख पाने की स्थिति में दरोगा ने नया दाँव खेला,’ तुमने शराब पी रखी है ,अस्पताल में तुम्हारी जाँच करवाई जाएगी.’वह व्यक्ति इसके लिए भी तैय्यार था.एक जीप बुलाई गयी,उसने जीप पर जाने से इन्कार किया सोचा सुबह की पायचारी आज इन लोगों के साथ सही.दरोगा को लगा अब अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस ‘उपलब्धि’ की सूचना दे देनी चाहिए.पुलिस उपाधीक्षक ने पहुँच कर पाया कि दाढ़ी-ऐनक वाला दुबला-पतला व्यक्ति राज्य के गृह विभाग के प्रशासनिक अधिकारी और कवि ज्ञानेन्द्रपति हैं.उसने पहुँचते ही कहा,’सर,आपने खुद का परिचय क्यों नही बताया? ज्ञानेन्द्रपति एक आम नागरिक के सामने आने वाली पुलिसिया हरकत को समझना चाहते थे और इस प्रकरण को एक परिणति तक पहुँचा देना चाहते थे,सो अस्पताल में शराब की जाँच कराने के आग्रह पर डटे रहे.बाद में गृह सचिव को उन्होंने पत्र लिखा,एक प्रशासनिक तथा एक पुलिस सेवा के अधिकारियों की एक कमिटी गठित हुई.उस समिति से ग्यानेन्द्रपति का आग्रह था कि उस दरोगा को निलम्बित न किया जाए बल्कि पुन: प्रशिक्षण के लिए भेजा जाए .
ज्ञानेन्द्रपति के लिए प्रशासनिक पद पर बने रहना मुमक़िन नहीं था.प्रान्तीय सेवा में काम करते हुए उन्हें जब भारतीय प्रशासनिक सेवा का साक्षात्कार देने के लिए पत्र मिला,ठीक उसी दिन एक साहित्यिक संगोष्ठी में शरीक होने का न्यौता भी मिला.लाजमी तौर पर वे संगोष्ठी में शरीक हुए.
कई अधिकारी नौकरी के साथ लिखना -पढ़ना करते हैं . ज्ञानेन्द्रपति कविता-कार्यकर्ता हैं और कवि राजेन्द्र राजन के अनुसार ‘पूर्णकालिक कवि-कार्यकर्ता’ हैं .
इस साल उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला तब वैकल्पिक राजनैतिक संस्कृति के लिए प्रतिबद्ध राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी खुशी हुई.
‘काशी संस्कृति रक्षा समिति’ के नाम पर जब दीपा मेहता की ‘वॊटर’ फ़िल्म की शूटिंग में हुडदंग की घटना के बाद वे व्यथित थे.शहर के महिला संगठनों की पहल पर उसी तुलसी घाट पर एक विरोध प्रदर्शन हुआ जहाँ एक दिन पहले फ़िल्म के सेट पर तोड़-फोड़ की गयी थी.ज्ञानेन्द्रपति काशीवास के लिए आयी विधवाओं और भजनाश्रमों पर एक कविता सुनाई.इस आयोजन में प्रख्यात रंगकर्मी कुंवरजी अग्रवाल और नगर के सामाजिक सरोकारों के समूह जुटे थे.मुख्यधारा के वाम दलों के साहित्यिक संगठनों के पुरोधा नदारद थे.
फिर याद आता है नाइजीरिया में तेल कम्पनी शेल द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के खिलाफ़ जन-आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले जननायक और नाटककार केन सारो वीवा को फाँसी के विरोध में आयोजित सभा.उस गोष्ठी में शामिल लोगों में ज्ञानेन्द्रपति प्रमुख थे.
अगली प्रविष्टियों में ज्ञानेन्द्रपति की कुछ कविताएं और उनसे बातचीत इन्हीं पृष्टों पर जल्द ही दी जाएगी.
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