इंसाफ़
अगर लोग इंसाफ़ के लिए तैयार न हों।
और नाइंसाफ़ी उनमें विजय भावना भरती हो।
तो यक़ीन मानिए,
वे पराजित हैं मन के किसी कोने में।
उनमें खोने का अहसास भरा है।
वे बचाए रखने के लिए ही हो गये हैं अनुदार।
उन्हें एक अच्छे वैद्य की ज़रूरत है।
वे निर्लिप्त नहीं, निरपेक्ष नहीं,
पक्षधरता उन्हें ही रोक रही है।
अहंकार जिन्हें जला रहा है।
मेरी तेरी उसकी बात में जो उलझे हैं,
उन्हें ज़रूरत है एक अच्छे वैज्ञानिक की।
हारे हुए लोगों के बीच ही आती है संस्कृति की खाल में नफ़रत।
धर्म की खाल में राजनीति।
देशभक्ति की खाल में सांप्रदायिकता।
सीने में दफ़्न रहता है उनके इतिहास।
आँखों में जलता है लहू।
उन्हें ज़रूरत है एक धर्म की।
ऐसी घड़ी में इंसाफ़ एक नाज़ुक मसला है।
देश को ज़रूरत है सच के प्रशिक्षण की।
– फ़रीद ख़ान
अगर लोग इंसाफ़ के लिए तैयार न हों।
और नाइंसाफ़ी उनमें विजय भावना भरती हो।
तो यक़ीन मानिए,
वे पराजित हैं मन के किसी कोने में।
बहुत खूब कहा है.
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
ज़रूर वन्दना जी।