मैं दिए गए विषयों पर सोचता हूं
मैं दी हुई भाषा में लिखता हूं
मैं सुर में सुर मिला कर बोलता हूं
ताकि जिंदगी चलती रहे ठीकठाक
मिलती रहे पगार
घर छूटे हो गए हैं बरसों
अब मैं लौटना चाहता हूं
अपनी भाषा में अपनी आवाज में अपनी लय में
कभी कभी मैं पूछता हूं अपने आप से
अपने बचे – खुचे एकांत में
क्या मैं पा सकूंगा कभी
अपना छूटा हुआ रास्ता ?
– राजेन्द्र राजन .
बहुत सुंदर भाव … अच्छी लगी यह रचना।
[…] , शब्द बदल जाएं तो भी , पश्चाताप , छूटा हुआ रास्ता , बामियान में बुद्ध […]
it really nice ..and encouraging … may you please send me your contact at my mail.
very nice and touchee
aaj pahli bar aapki kavitayen padi, bhavon se ott-prot lagi.videsh yatra ke liye shubh-kamnayen. aasha hai aap se mulakat bhi hogi evam prvasiyon per chap bhi chodege.
dhanywad sahit.
vena
aaj pahli bar aapki kavitayen padi, bhavon se ott-prot lagi.videsh yatra ke liye shubh-kamnayen. aasha hai aap se mulakat bhi hogi evam prvasiyon per chap bhi chodege.
dhanywad sahit.
veena
@ वीणाजी ,
कविता पसन्द करने के लिए हृदय से आभार । मेरे ब्लॉग पर प्रस्तुत कविताओं के रचयिता राजेन्द्र राजन विदेश यात्रा पर नहीं जा रही हैं । वे ‘जनसत्ता’ के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत हैं। इनकी रचनाएं समकालीन साहित्य, हंस, इंडिया टुडे सहित कई साहित्यिक पत्रिकाओं में छपी हैं। इसी नाम के एक मंचीय (तरन्नुम में रचना सुनाने वाले) कवि विदेश यात्रा पर जाने वाले हों , यह संभव है ।
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