कल सुबह कभी मेरे पड़ोसी प्रयाग पुरी चल बसे । मैं उन्हें बाबाजी बुलाता था । उनका अभिवादन होता था , ‘ महादेव !’ मेरी तरफ़ से उत्तर होता ,’बम’। वे काशी विश्वविद्यालय में इटालवी भाषा के प्राध्यापक थे । वेनिस से एम.ए करने के पश्चात करीब २६ वर्ष पहले वे बनारस आए । इटली में उनका नाम कोर्राडि पुचेत्ती Corrado Puchetti था । काशी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग जिसे कभी ‘भारती विद्यालय’ कहा जाता था से उन्होंने पीएच.डी की – महाभारतकालीन किसी शहर पर ।
उनका इन आधुनिक शिक्षा प्रतिष्ठानों से अधिक आकर्षण काशी और भारत के पारम्परिक ज्ञान और साधना से था । शंकराचार्य स्वरूपानन्दजी के श्री मठ से वे जुड़े थे। एक सन्यासी ने ही उनको नाम दिया था ।
प्रयाग पुरी के एक गुर्दा था तथा उन्हें डाइलिसिस पर जाना पड़ता था । इस गम्भीर व्याधि के अलावा वे हृदय रोग से पीडित हो गये थे। मेरे आयुर्वेद से जुड़े मित्र डॉ. मनोज सिंह उनके चिकित्सक थे । गुर्दे की बीमारी के कारण हृदय की शल्य चिकित्सा सम्भव नहीं थी। इसके बावजूद मृत्यु के एक दिन पहले तक उन्होंने क्लास ली ।
कुछ माह पूर्व इटली में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े । कोमा में जा कर लौटे तब भी उन्होंने काशी में प्राण त्यागने की और हिन्दू विधि से अग्नि को समर्पित करने की इच्छा जतायी थी ।
प्रयाग पुरी की पत्नी इंग्लैंड की हैं और भाषा विज्ञानी हैं । चार-पाँच साल के बेटे चेतन बालू ने अपने पिता को मुखाग्नि दी । इसके पूर्व केदार-गौरी मन्दिर के समक्ष उनके शव को कुछ समय रक्खा गया तथा श्री मठ के महन्त ने रुद्राक्ष की माला अर्पित की ।
चेतन बालू हिन्दी , इटालवी और अंग्रेजी तीनों भाषाएं बोलता है । पिता के unwell होने की बात घर पर होती थी और कल सुबह उसने अपनी माँ से पूछा कि क्या अब वे well हैं ?
एक अन्य इटालवी साधू से उसने पूछा कि पिता कहां गये ? उस साधु ने कहा -‘हिमालय’।
लेकिन जब घाट पर एक दक्षिण भारतीय साधु ने चेतन से पूछा कि प्रयाग पुरी कहां गये तो वह बोला ,’प्रयाग पुरी आग में गए।’
बाबाजी की स्मृति को प्रणाम ।
उनकी आत्मा की शांति की कामना करता हूँ.
व्याधियों के बावजूद कर्मठ जीवन जीने वाले को प्रणाम!
‘मृत्यु के एक दिन पहले तक उन्होंने क्लास ली’ इतने गम्भीर बीमार और काम के प्रति इतनी चिन्ता, इतनी निष्ठा ।
सचमुच में प्रणम्य है प्रयाग पुरीजी ।
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