[ गांधी शताब्दी वर्ष ( १९६९ ) के उपलक्ष्य में सर्वोदय नेता नारायण देसाई दुनिया के कई देशों की यात्रा पर गये थे । उनका यात्रा वृत्तांत ‘ यत्र विश्वं भवत्येकनीड़म ‘ नाम से प्रकाशित हुआ था । अशोक पाण्डे की एक पोस्ट से प्रेरित हो कर जोन बाएज़ के बारे में लिखे इस किताब के एक अध्याय को ब्लॉग पर मैंने प्रकाशित किया था । आज भारत भूषण तिवारी ने गांधी प्रभावित किसान नेता सीजर शावेज़ पर एक पोस्ट लिखी है । इस पोस्ट से प्रेरणा मिली कि उपर्युक्त यात्रा वृत्तांत से सीजर शावेज़ के बारे में लिखे दो अध्याय चिट्ठे पर प्रकाशित किए जांए । ]
सीजर शावेज से मुलाकात
भारत के कवियों के डाक टिकटों का जब एक अलबम छपा , तब जाने किसकी पसंदगी के कारण , गुरुदेव की ये पंक्तियां रवीन्द्रनाथ के टिकट के साथ छापी गयीं :
कतो अजानारे जानाइले तुमि
कतो घरे दिले ठाई ।
दूर के करिले निकट बंधु
पर के करिले भाई ।
कितने अनजानों से तुमने करवाई पहचान । कितने-कितने घरों में दिलवाया स्थान , दूर पड़े को निकट में लाया , पर को किया भाई जान ।
मेरे प्रिय गीतों में से एक यह है । उसका सुर – छंद मैं जानता नहीं ; लेकिन जीवन में बार – बार इस गीत की धुन का अनुभव किया है । अनेक बार नये – नये घरों में अपनत्व का अनुभव किया है , जिनको कल तक देखा भी नहीं था , वे आज अचानक चिर-परिचित हो गये हैं ।
सीजर शावेज से परिचय भी उसी प्रकार की एक अद्भुत अनुभूति थी । पूर्वजन्म के बारे में मैं अज्ञानी आदमी हूँ । लेकिन अगर कभी कभी पूर्व जन्म के बारे में विश्वास होता है तो इसी कारण से । कभी – कभी मैं सोचता हूँ कि पूर्वजन्म में मैं जरूर कोई संतचरणरजअनुरागी रहा होऊँगा । ऐसा न होता तो इस जन्म में इतने संतों की सत्संगति बिना मांगे ही अनायास कैसे मिल जाती है ?
सीजर के साथ की भेंट ने मेरा यह विश्वास पक्का किया ।
पहले से मैं सीजर के विषय में कुछ जानकारी जरूर रखता था । मुझे यह मालूम था कि केलिफोर्निया में अंगूरर की खेती करनेवाले मजदूरों का संगठन करनेवाला नेता सीजर शावेज है । मुझे यह भी पता था कि सीजर को अहिंसा में रुचि है । लेकिन मुझे यह पता नहीं था कि पहली ही भेंट में वह मेरे हृदय में इस प्रकार बस जायेगा ।
बंधु चार्ली वाकर सीजर को अपने ‘गांधी क्वोलोक्वियम’ के लिए लाने को कई दिनों से कोशिश कर रहा था । एक दिन उसने मुझसे आकर कहा , मैं तो उसे यहाँ नहीं ला पाया , लेकिन तुम उससे मिलने का मौका मत चूकना । अमरीका जाने से पहले जिन लोगों से मिलने की मैंने सूची बनाई थी , उसमें सीजर का नाम था ही। पश्चिमी किनारे पर जाने के समय मैं मिल लूँगा , ऐसी कल्पना थी । लेकिन पता चला कि जब मैं पश्चिमी किनारे पर जाऊँगा , तब वह वहाँ होगा नहीं । इसलिए पूर्वी किनारे पर ही कहीं मौका ढूँढ़ने की फिराक में था । अचानक पता चला कि सीजर फिलाडेलफिया आ रहा है । वहाँ उसका कार्यक्रम इतना व्यस्त था कि मिलना संभव होगा या नहीं , पता नहीं था । नीग्रो मित्र वाली नेल्सन से कह रखा था कि सम्भव हो तो परिचय करवा देना ।
एक छोटे-से यहूदी मम्दिर में उनका व्याख्यान था , वहाँ पहुँच गया । आमसभा की भीड़ में भेंट की आशा रखना वृथा था । इसीलिए छोटी सभा चुनी थी ।
सभा के पीछे बैठकर मैं देख रहा था । भारत की किसी भी भीड़ में आसानी से छिप जा सके , ऐसा शरीर । ऊँचाई साढ़े पाँच फुट से अधिक नहीं होगी । वजन १४० से १५० पौंड होगा । मैं अमरीकन आदमी तरह अन्दाज लगा रहा था । रँग साँवला । नाक बिलकुल भारतीय , बुशशर्ट और पैंट अनाकर्षक । भाषण करने से पहले जेब से कुछ कार्ड निकाल लिये । उसमें भाषण के मुद्दे होंगे , इन कार्डों की ओर बीच-बीच में झाँकते हुए , लेकिन अधिकांश में श्रोताओं की ओर सीधा ताकते हुए बोलता था , अत्यन्त सरल शैली , अनाडंबरित , ऋजु । भाषण में अधिकांश समय अहिंसा के ही बारे में बोलता रहा । अमरीका में आने के बाद यह पहला वक्ता , जिसने अहिंसा को अपना मुख्य विषय बनाया । बोलना था उसे अपने द्राक्षश्रमिक आन्दोलन के बारे में , लेकिन अहिंसा पर बोले बिना वह रह नहीं पाता था ।
मार्टिन लूथर किंग की मृत्यु के बाद अमरीका में अगर अहिंसा का कोई सबसे बड़ा भक्त हो तो वह सीजर शावेज है । कुछ लोग उसे मैक्सिकन अमरीकन लोगों का ( जिन्हें बोलचाल की भाषा में चिकानो कहा जाता है। ) गांधी भी कहते हैं ।
सभा के समय मैं पीछे बैठा था । लेकिन इस आदमी का व्यस्त कार्यक्रम देखकर मन में तय कर लिया था कि इससे परिचय करने में भारतीय संकोच छोड़कर अमरीकन आत्मप्रशंसा का तरीका अपनाऊंगा । वाली नेल्सन ने हमारा परिचय कराया ही था कि मैंने कहा : ” मैं गांधी के आश्रमों में पला हूँ । उनके साथ अपने जीवन के पहले अठारह साल बिताये हैं ।” सीजर से समय माँगने की जरूरत ही नहीं रही । हमारा पौरोहित्य करने के लिए गाँधी आ चुके थे । सामने से सीजर ही ने कहा: ” आपके पास समय है ? आपसे मैं बहुत – बहुत बातें करना चाहता हूँ । ” सीजर क्या समझ रहा था कि मेरा समय भी उसके जैसा व्यस्त होगा ?
” आपके पास गाड़ी है ? ” दूसरा प्रश्न । मैंने कहा : ” नहीं ।”
” तो मेरे साथ चल सकते हैं ? ”
मैं तो उसके साथ पैदल चलने को भी तैयार खड़ा था ।
एक स्टेशन वैगन के पीछे की सीट को बदलकर सोने लायक बनाया गया था । यही थी सीजर की प्रवास की गाड़ी । मुझसे क्षमा माँग कर सीजर उस सीट पर लेट गये । सीजर की कमर का दर्द धीरेनदा (वरिष्ट सर्वोदय नेता धीरेन्द्र मजुमदार , तब जीवित थे) की याद दिलानेवाला । दो सभा के बीच समय रहता है तो उस समय में उनकी नर्स मेरिया मोजिज उनको मालिश कर देती है ।
” कहीं खाने के लिए जाने का कार्यक्रम बना है ? ”
” नहीं तो । ”
” तब मेरे साथ ही रूखा – सूखा खा लीजिए । मुझे भी इस समय फुर्सत है । ”
गाड़ी के अन्दर ही बातचीत का आरम्भ हो गया । नर्स मेरिया को भी गांधी में दिलचस्पी थी । और एक फोटोग्राफर बाब फिचर भी जाने कहाँ से इस गाड़ी में घुसा हुआ था । चलती गाड़ी में उसने कितनी ही तस्वीरें खींच लीं । बाद में पता चला कि बाब की हॉबी ही विश्व के शांतिवादियों की तस्वीरें लेने की थी ।
फिलाडेलफिया के एक बाग में सियुलकिल नदी के किनारे हरी दूब पर बातें चलती रहीं । शाम का भोजन भी वहीं बैठकर किया : सेंडविच और काफी । फिर अपने कैमेरे से सीजर ने मेरी तस्वीर ली । फिर बातें चलती रहीं । अन्त में मैंने चार्ली वाकर के निमन्त्रण की बात निकाली । सीजर ने कहा : ” गांधी-शताब्दी के सिलसिले में मुझे इस देश से ३० और विदेशों से ७ निमंत्रण मिले थे । कहाँ जाना और कहाँ नहीं ? अतएव मैंने सभी जगह न जाने का फैसला किया ।” मैंने कहा: “लेकिन चार्ली जो क्वोलोक्वियम बुला रहा है , वह दूसरे निमंत्रणों जैसा नहीं है । यह सरकारी गाँधी शताब्दी नहीं है , जिसकी कमेटी के अध्यक्ष वेयेटनाम युद्ध के समर्थक ह्यूबर्ट हम्फ्री हैं । इसमें न आडम्बर है , जैसा कि मेथर देली की अध्यक्षतावाली शिकागो की कमेटी में आप पायेंगे । यह जनता के अभिक्रम से होने वाला कार्यक्रम है और इस गोष्ठी का विषय भी गांधीजी : रेलेवन्स टु अमरीका टुडे ( आज के अमरीका में गांधी की आवश्यकता एवं उपयोगिता) है ।” सीजर ने जवाब दिया कि ” तुम कहते हो इसलिए मैं इस पर विचार करता हूँ । मेरे मन में भी खटकता था कि कि गांधी-शताब्दी में पूरे कार्यक्रम में मैं कहीं शामिल न होऊँ यह ठीक नहीं है । इसलिए सोचता हूँ कि क्या इसमें जा सकता हूँ ? ” सेक्रेटरी लोगों ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि सीजर के पास समय नहीं है , उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है , कल उनको न्यूयॉर्क तक गाड़ी से जाना है । लेकिन मैं भी गांधी के सेक्रेटरी का लड़का था । इसलिए उनकी किसी बात का इनकार न करते हुए और आवश्यकता से अधिक आग्रह न करते हुए भी मैं यह कहता रहा कि ऐसे लोगों के मानसिक सन्तोष का विचार पहले करना चाहिए । मुझे लगता है कि हेवरफोर्ड कॉलेज के कार्यक्रम में आने से सीजर को स्वयं संतोष होगा । मैं जानता था कि सीजर की अनुमति मैं पहले ही पा चुका था । इसलिए मंत्रिमण्डल को नाखुश करने की मुझे जरूरत ही क्या थी ?
सीजर ने हेवरफोर्ड आने का कबूल किया है , यह समाचार रात को ग्यारह बजे टेलीफोन से चार्ली वाकर को बताया , तब वह खुशी के मारे पागल -सा हो उठा । उससे से बात करने के पहले ही मैं सभा भवन की व्यवस्था कर चुका था और भाषण की सूचना देनेवाले पोस्टर्स बना चुका था। मेरे विद्यार्थी मित्रों से कहकर हर कॉलेज और हर छात्रावास में ये ये पोस्टर्स लगवाने की व्यवस्था भी कर ली गयी थी ।
दूसरे दिन सुबह सीजर के लिए हेवरफोर्ड कॉलेज में जो सभा हुई ,वह शायद गांधी क्वोलोक्वियम की सबसे बड़ी सभा थी । उसमें भी वही जेब से कार्ड निकाल कर भाषण के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए , बिना किसी आडंबर के बोलना । वही श्रोताओं के दिल तक पहुंच जाने वाली शैली । भाषण की बीच ही किसीने श्रोताओं में हैट घुमाई । बिना किसी सूचना के आयोजित की हुई इस सभा में सीजर शावेज के ‘ला कॉज़ा’ (उद्देश्य) के लिए १७५ डॉलर का दान प्राप्त हुआ । फिलाडेलफिया की आमसभा की तुलना में यह रकम खराब नहीं थी , ऐसा मुझे बाद में वाली नेल्सन ने बताया । फिलाडेलफिया में श्रोता वर्ग प्रौढ़ों का था । हेवरफोर्ड कालेज में श्रोता-वर्ग तरुणों का था , जिन्हें गांधी आज के अमरीका के लिए उपयोगी मालूम होता था ।
[ जारी, आगे – ‘सीजर शावेज का व्यक्तित्व’https://kashivishvavidyalay.wordpress.com/2009/03/28/cesar_chavez_gandhi_narayan_desai/ ]