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Archive for the ‘cesar chavez’ Category

    पिछले भाग : एक , दो

    युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी के जिस कार्यक्रम को अधिक सफलता मिली है , वह है बहिष्कार । सीजर ने देखा कि केवल हड़ताल से काम बनता नहीं और एक मजदूर की जगह लेने के लिये अन्य मजदूर तैयार हैं , तो उसने दूसरा उपाय बहिष्कार का सोचा । अमरीका के बड़े – बड़े शहरों में जाकर उसने लोगों को यह समझाया कि केलिफोर्निया के उन उत्पादकों के अंगूर मत खरीदिए , जो अत्याचारी हैं और मजदूरों पर अन्याय कर रहे हैं । ये अंगूर एक खास प्रकार के होते हैं । इसलिए ग्राहकों के लिए पहचानना आसान होता है । बहिष्कार का यह कार्यक्रम काफी सफलता पा रहा है । इस समय अमरीका के कुछ प्रमुख शहरों में तथा इंग्लैण्ड , केनेडा , आयर्लैंड आदि कुछ देशों में भी केलिफोर्निया के उन अंगूरों की दूकानें बन्द हैं । इसके कारण सारे आन्दोलन को काफी प्रसिद्धि भी मिली है ।

    भूपतियों के क्रोध का सीजर को कई बार शिकार बनना पड़ा है । उसकी सभाओं में उस पर अंडे फेंके गये हैं । लेकिन फिर भी उसके व्याख्यान जारी रखने पर उसी श्रोता – मंडली ने उसका उत्साह से अभिनन्दन किया है । आंदोलन को बदनाम करने के लिये कुछ हिंसक उपद्रवियों को उसमें घुसाने की चेष्टा भी की गयी है । लेकिन त्याग और तपस्या पर अधिष्ठित  इस आंदोलन में ऐसे तत्व अधिक दिनों तक टिक नहीं पाये हैं ।

    १९६६ में सीजर और उसके साथियों ने अपने स्थान डेलेनी से केलिफोर्निया की राजधानी सेक्रामेन्टो तक की ३०० मील की पद-यात्रा की । इस पद-यात्रा को बहुत अच्छी प्रसिद्धि मिली । पद-यात्रा का उद्देश्य था राजधानी में गवर्नर से भेंट करना। लेकिन पूरी यात्रा समाप्त करके जब पचास पद-यात्री सेक्रामेन्टो पहुंचे , तब बारिश  में भीगते हुए उनके साथ और कई जाने – माने लोग और हजारों नागरिक शामिल हो गये थे । गवर्नर साहब ने इन लोगों से भेंट करने की अपेक्षा शनि और रविवार की छुट्टी मनाने के लिए चला जाना अधिक पसंद किया । लेकिन उसी समय अंगूर-उत्पादकों की एक बड़ी कम्पनी श्चेन्लीवालों ने मजदूरों के साथ एक कान्ट्रैक्ट पर दस्तख़त किये , जिसके अनुसार मजदूरों को प्रति घण्टे पौने दो डालर मजदूरी देने का तय हुआ । यह मजदूरों के लिए आज तक हुई सबसे बड़ी जीत थी ।

    सीजर की एक पद्धति ने उसे न चाहते हुए भी काफी प्रसिद्धि दी है । वह है अनशन । उसने आज तक अनेक बार अनशन किये हैं । सीजर को गांधी का चेला करार देनेवाला भी शायद यही सबसे बड़ा तत्व होगा ।

    अनशन के बारे में सीजर कहता है :

    ” मैंने अपने काम का आरम्भ ही अनशन से किया था । किसी पर दबाव डालने या अन्याय का प्रतिकार करने के लिए नहीं । मैंने तो सिर्फ़ इतना ही सोचा था कि एक बड़ी जिम्मेवारी का काम ले रहा हूँ । गरीब लोगों की सेवा करनी है । सेवा करने के लिए कष्ट उठाने की जो तैयारी होनी चाहिए , वह मुझमें है या नहीं , इसीकी परीक्षा करने के लिए वे अनशन थे । “

    लेकिन हर वक्त इसी उद्देश्य से उपवास नहीं हो सकते थे । बीच में एक बार उसने उपवास इसलिए किए थे कि उसे लग रहा था कि उसके साथियों में अहिंसा पर निष्ठा कम हो रही है । चुपचाप उपवास शुरु कर दिये । पहले तीन – चार दिन तक तो उसकी पत्नी और आठ बच्चों को भी पता नहीं चला कि सीजर खा नहीं रहा है । लेकिन फिर उसने अपनी शैय्या युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी के दफ्तर  में लगा ली । सिरहाने गाँधी की एक तसवीर टँगी हुई है । बगल में जोन बाएज़ के भजनों के रेकार्ड पड़े हैं । कमरे के बाहर स्पैनिश क्रांतिकारी एमिलियानो ज़पाटा का एक पोस्टर लिखा था : ‘ विवा ला रेवोल्यूशियो’ जिसका अर्थ होता है – इन्कलाब जिन्दाबाद । दूसरी ओर मार्टिन लूथर किंग की तसवीर । “उपवास का सबसे बड़ा असर मुझ ही पर हुआ ”  सीजर ने कहा । गाँधी के बारे में  मैंने काफी पढ़ा था । लेकिन उसमें से बहुत सारी बातें मैं इस उपवास के समय ही समझ पाया । मैं पहले तो इस समाचार को गुप्त रखना चाहता था , लेकिन फिर तरह तरह की अफवाहें चलने लग गयीं । इसलिए सत्य को प्रकट करना पड़ा कि मैं उपवास कर रहा हूँ । लेकिन मैंने साथ ही यह भी कहा कि मैं इसे अखबार में नहीं देना चाहता हूँ , न हमारी तसवीरें ली जानी चाहिए । बिछौने में पड़े – पड़े मैंने संगठन का इतना काम किया  , जितना पहले कभी नहीं किया था । उपवास के समाचार सुनकर लोग आने लगे । दसेक हजार लोग आये होंगे । खेत – मजदूर आये । चिकानो तो आये ही , लेकिन नीग्रो भी आये , मेक्सिकन आये , फिलिपीन भी आये । मुझे यह पता नहीं था कि इस उपवास का असर फिलिपीन लोगों पर किस प्रकार का होगा । लेकिन उन लोगों की धार्मिक परम्परा में उपवास का स्थान है ।  कुछ फिलिपीन लोगों ने आकर घर के दरवाजे  , खिड़कियों रँग दिया , कुछ ने और तरह से सजाना शुरु किया । ये लोग कोई कलाकार नहीं थे । लेकिन सारी चीज ही सौन्दर्यमय थी । लोगों ने आकर तसवीरें दीं । सुन्दर सुन्दर तसवीरें । अक्सर ये तसवीरें धार्मिक थीं । अधार्मिक तसवीरें थीं तो वह जान केनेडी की । और लोगों ने इस उपवास के समय मार्टिन लूथर किंग और गांधी के बारे में इतना जाना , जितना सालभर के भाषणों से नहीं जान पाये । और एक बहुत खूबसूरत चीज हुई । मेक्सिको के केथोलिक लोग वहाँ के प्रोटेस्टेन्ट लोगों से बहुत अलग – अलग रहते थे । उनके बारे में कुछ जानते तक नहीं थे । हम लोग रोज प्रार्थना करते थे । एक दिन एक प्रोटेस्टेन्ट पादरी आया , जो श्चेन्ली में काम करता है । मैंने उसे प्रार्थना सभा में बोलने के लिए निमंत्रण दिया । पहले तो वह मान ही नहीं रहा था , पर मैंने कहा कि प्रायश्चित का यह अच्छा तरीका होगा । उसने कहा कि मैं यहाँ बोलने की कोशिश करूँगा तो लोग मुझे उठाकर फेंक देंगे । मैंने उनसे कहा कि यदि लोग आपको निकाल देंगे तो मैं भी आपके साथ निकल आऊँगा । उन्होंने कबूल कर लिया । भाषण से पहले उनका पूरा परिचय दिया गया , ताकि किसीके मन में यह भ्रम न रहे कि यह केथोलिक है । उनका भाषण अद्भुत हुआ । मैथ्यू के आधार पर उन्होंने अहिंसा की बात की । लोगों ने भी बहुत ध्यान से और उदारता से उनको सुना । और फिर तो हमारे पादरी ने जाकर उनके गिरजे में भाषण किया । “

     शियुलकिल नदी के किनारे कई घण्टों तक बातें हुई । इन बातों में सीजर की जिज्ञासा ने मुझे श्रोता न रखकर वक्ता बना दिया था । मेरे पिताजी का गांधी से मिलन , प्यारेलाल और पिताजी का सम्बन्ध , राम – नाम पर गांधीजी की आस्था , प्राकृतिक चिकित्सा पर श्रद्धा , विनोबा का व्यक्तित्व , भूदान और ग्रामदान की तफसील , शांति – सेना के बारे में , सब कुछ उसने पूछ डाला । उठने से पहले मैंने सीजर से दो प्रश्न किये । पहला प्रश्न था : ” अहिंसा की प्रेरणा आपको कहाँ से हुई ? ” उसने कहा : ” मेरी माँ से । बचपन ही से वह हम बच्चों को  यही कहती रहती थी कि बड़ों से डरना नहीं चाहिए और झगड़ा हो तो उनको सामने मारना भी नहीं चाहिए । मैंने इस उद्देश्य को अपने खेलों में बड़ों के साथ झगड़ा होने पर आजमाकर देखा । मैं बड़ों से डरता नहीं था , लेकिन उनको मारता भी नहीं था । मैंने देखा कि इसका काफी असर होता है । शायद इसीसे अहिंसा के बारे में मेरी श्रद्धा के बीज डाले गये होंगे । “

      दूसरा प्रश्न था : ” गांधी के बारे में आप कब और किस प्रकार आकर्षित हुए ? “

      उसके जवाब में सीजर ने एक मजेदार किस्सा बताया : ” १९४२ में मैं १५ साल का था । एक सिनेमा की न्यूज रील में गांधी के आन्दोलन के बारे में कुछ चित्र दिखाये गये । मैंने देखा कि एक दुबला – पतला- सा आदमी इतनी बड़ी अंग्रेज सरकार का मुकाबला कर रहा है । मैं प्रभावित तो हुआ ,  लेकिन थियेटर से बाहर आने पर उस दुबले-पतले आदमी का नाम भूल गया । तो उसके बारे में अधिक जानकारी कैसे प्राप्त करता ? लेकिन मेरे मन में उस आदमी का चित्र बन गया । अकस्मात एक दिन अखबार में मैंने उसी आदमी की तसवीर देखी । मैंने लपककर अखबार उठा लिया और उस आदमी का नाम लिख लिया । फिर पुस्तकालय में जाकर उनके बारे में जो कुछ भी मिला , पढ़ लिया । “

    इस लेख का अन्त हम सीजर शावेज के उस वचन से करेंगे , जो उसने अपने एक अनशन के बाद कहे थे : ” हम अगर सचमुच में ईमानदार हों , तो हमें कबूल करना होगा कि हमारे पास कोई चीज हो तो वह अपना जीवन ही है । इसलिए हम किस प्रकार के आदमी हैं , यह देखना होत तो यही देखना चाहिए कि हम अपने जीवन का किस प्रकार उपयोग करते हैं । मेरी यह पक्की श्रद्धा है कि हम जीवन को देकर ही जीवन को पा सकते हैं । मुझे विश्वास है कि सच्ची हिम्मत और असली मर्दानगी की बात तो दूसरों के लिए अपने जीवन को पूरी तरह अहिंसक ढंग से समर्पण करने में ही है । मर्द वह है , जो दूसरों के लिए कष्त सहन करता है । भगवान हमें मर्द बनाने में सहायता करें । “

    

   

 

    

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[ नारायण देसाई के लिखे यात्रा वृत्तांत ‘ यत्र विश्वंभवत्येकनीड़म ‘ से सीजर शावेज पर अध्याय । पिछला भाग ( सीजर शावेज से मुलाकात ) ]

सीजर शावेज का व्यक्तित्व

शियुलकिल नदी के किनारे , फिलाडेलफिया शहर की भीड़ से कुछ दूर , उस बगीचे में बातें कर तथा बाद में पश्चिमी किनारे पर डेलेनो में , जहाँ सीजर काम करते हैं वहाँ जा कर , एक- बार वाली नेल्सन एवं उनकी पत्नी द्वारा आयोजित निदर्शन में हिस्सा लेकर तथा सीजर के साथियों के साथ बाद में जो जानकारी प्राप्त हुई , उसमें से कुछ महत्वपूर्ण नीचे दे रहा हूँ ।

सीजर एस्टैडा शावेज के माता – पिता दोनों मेक्सिकन थे , लेकिन उसका खुद का जन्म मार्च ३१ , १९२७ को अमरीकन नागरिक के नाते हुआ था । मेक्सिकन अमरीकन या चिकानो लोग अमरीका के सबसे गरीब लोगों में से हैं और इन्हीं गरीबों के लिए अहिंसक रीति से लड़ते – लड़ते सीजर ने चिकानो गांधी उपाधि प्राप्त की है । दस वर्ष की उम्र में उसके माता – पिता जिस बगीचे में काम करते थे , वह बिक गया और सीजर के परिवार को वहाँ से हटना पड़ा । कैलिफोर्निया के एक और स्थान पर आकर जब वे रहने लगे , तब सीजर अपने भाइयों के साथ बूट पालिश का धन्धा कर माता – पिता की कमाई में कु्छ मदद करने लगा । पढ़ाई सात दरजे तक हुई । बाकी पढ़ाई सब अनुभव से । एक जंगल में लकड़ी काटने का काम किया तब मालिक की मेहरबानी से उसी जंगल में झोपड़ी बनाने की इजाजत मिली । बढ़ईगिरी का यहीं पहला सबक था ।

दस साल की अवस्था में ही सीजर शावेज का बचपन पूरा हो चुका था । जवानी के आरम्भ ही से कौम के प्रश्न उसके अपने प्रश्न बन गये । खेतों में और बगीचों में मजदूरी का काम मिलता था , लेकिन उसकी स्थिरता का कोई भरोसा नहीं था । गोरे लोग अपनी दूकानों पर लिखे रहते थे : ‘ कुत्तों तथा मेक्सिकनों का प्रवेश निषेध ।’

अमरीका का यह पश्चिम प्रान्त मजदूरों के शोषण के इतिहास का साक्षी रहा है । १८६० तक तो वहाँ के मूल निवासी रेड इण्डियनों को , जो अर्ध गुलामी में रहते थे , साफ कर दिया जा चुका था । उनके स्थान पर खेतों में चीनी मजदूर आ गये थे , जो यों तो ‘दक्षिण पैसेफिक रेलवे’ डालने के लिए चीन से लाये गये थे , लेकिन काट-कसर से रहनेवाले और मेहनतकश चीनी लोगों को वहीं के बेकार गोरे लोग सहन नहीं कर पाये । १८८२ में चाईनीज एक्स्क्लूजन ऐक्ट ( चीनी हटाओ कानून ) द्वारा धनाढ्य मालिकों ने उनकी जगह पर जापानी मजदूरों को लाना शुरु कर दिया । लेकिन थोड़े ही दिनों में जापानी मजदूरों के प्रति द्वेष का भाव बन गया ; क्योंकि उन्होंने और मजदूरों को पीछे छोड़ दिया । अलावा इसके वे अमरीकन लोगों से बेहतर किसान थे और ऐसी जमीन को उन्होंने खेती के लायक बना दिया , जो अमरीकनों के हाथों में बंजर पड़ी थी । इस आपत्ति का उपाय १९११ में विदेशी जमीन कानून बनाकर किसी विदेशी को जमीन ने देने का तय करके निकाला गया । उसके बाद वहाँ पर भारत , अरब और अरमेनिया के मजदूर आये । इनमें अरमेनिया और यूरोप से आये हुए लोगों पर गोरे होने के कारण कम जुल्म गुजारा जाता था । और आज वहाँ बसे हुए किसानों के पितामह वे ही लोग थे । मेक्सिको से भूमिहीन मजदूर अक्सर आते – जाते रहे । चूँकि वे मेक्सिको से गैर – कानूनी ढंग से आते थे , इसलिए उनको कम मजदूरी देकर काम करवाना भूमिपतियों के लिए और भी आसान हो गया । १९२० के बाद फिलीपीन द्वीप से और भी सस्ते मजदूर लाये गये , जिसके कारण कुछ समय तक मेक्सिकन मजदूरों की कीमत घट गयी । १९२९ में अमरीका के टेक्सस से मजदूरो ने आकर फिलिपीन मजदूरों को समुद्र – पार भेज दिया । १९३४ में फिलिपीन स्वतन्त्र होने के बाद वहाँ से मजदूरों का लाना बन्द हो गया । १९४२ तक चीनी मजदूर शहरों में चले गये थे , जापानी लोगों को ( लड़ाई के कारण ) पकड़कर कन्सन्ट्रेशन कैम्पों (यातना शिविर ) में रखा गया था , यूरोपीय मजदूर पढ़-लिखकर आगे बढ़ गये थे और उनमें बहुत सारे बगीचों के मालिक बन गये थे । बाकी गोरे लोग युद्ध के आर्थिक उत्पादन के क्षेत्रों में लग गये थे । इसलिए मेक्सिको सरकार से बातचीत करके ‘ ब्रेसरो’ (खेत – मजदूर ) का कार्यक्रम बनाया गया , जिसमें मेक्सिको से मजदूरों को कटनी के समय ट्रकों में भरकर केलिफोर्निया तथा अन्य दक्षिण- पश्चिमी राज्यों में लाया जाता था और कटनी खतम होते ही फिर उन्हें ट्रकों भरकर मेक्सिको लौटाया जाता था । यह व्यवस्था भूमिपतियों को इतनी अनुकूल पड़ गयी कि युद्ध समाप्त होने के बाद भी ‘ब्रेसरो’ कार्यक्रम जारी रखा गया। वाशिंगटन में इस कार्यक्रम के समर्थकों ने यह दलील दी कि गोरे लोग कपास , बीट आदि की फसल काटने का मेहनत का काम नहीं कर पायेंगे । लोग आसानी से भूल गये कि थोड़े ही वर्ष पहले यह सारा काम गोरे लोगों ने किया था और अगर ठीक से जीवन – निर्वाह करने लायक रोजी मिले तो अब भी काले-गोरे लाखों लोग यह काम करने को तैयार थे । लेकिन दरिद्र और लाचार मेक्सिकन लोग कम मजदूरी में अधिक समय तक काम करने को तैयार थे । १९५९ में एक अन्दाज के अनुसार ४ लाख विदेशी मजदूर काम करते थे , जब कि देश में ४० लाख लोग बेकार बैठे थे । १९६४ में कानून से ‘ब्रेसेरो’ प्रोग्राम को बन्द किया गया । उसके बाद मजदूरों में हड़ताल आदि के जरिए संगठन करके अपनी स्थिति सुधारने की कुछ आशा बढ़ी । लेकिन अंगूर के उत्पादक मालिकों ने तब तक और उपाय ढूँढ़ लिये थे । अमरीका में एक कानून के अनुसार ‘स्थायी निवासी विदेशियों ‘ को हरा कार्ड लेकर अमरीका में रहने की छूट दी गयी थी। मेक्सिकन लोग मजदूरी के पैसे लेकर वापस अपने देश चले जाते थे । कानून यह है कि जहाँ कहीं किसानों और मालिकों के बीच विवाद रजिस्टर किया गया हो , वहाँ विदेशी मजदूर काम नहीं कर सकते हैं । लेकिन इस प्रकार के विवाद रजिस्टर करने में ही ढीलाढाली की जाती थी और विदेशी मजदूरों को लाकर स्थानीय मजदूरों की हड़तालें तुड़वायी जाती थीं।

इसी प्रकार का वातावरण था , जब सीजर शावेज ने कैलिफोर्निया की सेन जोआक्वीन उपत्यका में अंगूर के बागों में काम करनेवालों के संगठन की जिम्मेदारी सँभाली ।

जब तक सीजर नहीं आया था , मजदूर नेताओं ने खेत – मजदूरों के संगठन को अशक्य-सा(नामुमकिन) मान रखा था । ये मजदूर अधिकांश अनपढ़ हैं , एक जगह बहुत दिन टिकते नहीं हैं और ऐसे अल्पसंख्यक समुदायों से आये हैं जिनके बारे में बहुसंख्यक लोगों को विशेष सहानुभूति नहीं है। इसी कारण इन लोगों की हड़तालें बार – बार तोड़ी गयी थीं ।

इधर सीजर को भी संगठन से बहुत आशा नहीं थी । जब लॉस एन्जेलिस में स्थापित कम्युनिटी सर्विस आर्गनाइजेशन की ओर से फ्रेड रास नामक एक सज्जन ने उससे सम्पर्क करने की कोशिश की तो पहले तो दो – तीन दिन वह उससे मिलना ही टालता रहा । ” अरे , ये लोग यहाँ पर रिपोर्टरों को भेजते हैं , और फिर वहाँ जाकर हम लोगों के बारे में अजीब – अजीब रिपोर्ट लिखते हैं । उन्हें और काम ही क्या है ? ” यह थी सीजर की मनोवृत्ति । लेकिन फ्रेड रास इससे हार मानने वाला नहीं था । उसने आखिर एक दिन सीजर को पकड़ ही लिया। कम्युनिटी सर्विस आर्गनाइजेशन के बारे में बातें करने के लिए एक मीटिंग बुलाने की उसकी इच्छा थी ।

” आपको सभा में कितनी लोग चाहिए ? ” सीजर ने पूछा ।

” चार – पाँच होंगे तो चलेगा । ” रास ने कहा ।

“और बीस हों तो ? “

” तब तो पूछना ही क्या ? “

इस सभा में जिन लोगों को सीजर ने बुलाया था , उनमें से कुछ को तो उसने कह रखा था कि ” जब मैं अपनी सिगरेट एक हाथ से दूसरे हाथ में लूँ , तब आप लोग शरारत शुरु कर सकते हैं । ” लॉस एन्जेलिस से उनकी अवस्था के बारे में रिपोर्ट लिखने के लिए आने वालों के बारे में सीजर को इतनी चिढ़ थी । लेकिन सभा में सीजर ने देखा कि फ्रेड रास कोई दूसरे ही प्रकार का आदमी था । उसके बाद तो कई सभाओं में सीजर फ्रेड के पीछे – पीछे दौड़ता रहा ।

सीजर पहले – पहल कम्युनिटी सर्विस आर्गनाइजेशन में वोटर रजिस्ट्रेशन अभियान के निमित्त शामिल हुआ । फ्रेड ने सीजर को इस संस्थान के संगठन का अध्यक्ष बनाया । ” मैं कहा जाता ? धनवानों के पास ? उनसे तो मेरी कोई जान – पहचान भी नहीं । इसलिए मैंने अपनी घाटी के १६ लोगों को अपने साथ किया । वैसे तो उनको कानून मतदाताओं के नाम भर्ती करवाने का कोई अधिकार नहीं था , क्योंकि उनमें से हर एक ने कभी न कभी कोई जुर्म किया था । उनको तो मत देने का भी अधिकार नहीं था । लेकिन वे घर – घर जाकर द्वार तो खटखटा सकते थे । और उन्होंने मेहनत भी काफी की । “

सीजर की सबसे बड़ी कुशलता कोई है तो वह संगठन – शक्ति की है । इसी कुशलता के कारण उसने इतिहास में पहली बार अंगूर के बगीचे में काम करनेवाले गरीब , अनपढ़ , असहाय मजदूरों को संगठित किया । ‘ संगठन के लिए सबसे बड़ी चीज चाहिए समय । अगर आपके पास समय हो तो आप संगठन कर सकते हैं ।’ सीजर का यह वाक्य शायद भारत में उतना समझ में नहीं आयेगा , जहाँ फुर्सत है । और सीजर के समय का अर्थ कोरा समय नहीं होता । उसका अर्थ होता है प्रेम-सभा समय । इसीके कारण तो वह अब भी छोटे-बड़ों के पास जाकर उनके सुख – दुख का अंतरंग साथी बन सकता है । जब सीजर के नेतृत्व में एक हड़ताल चल रही थी , तब डेनि नामक एक मजदूर ने हड़ताल का विरोध करते हुए कहा था : ” मुझे बन्दूक दीजिए तो अभी उनमें से कइयों की लाशें गिरा दूँगा । ” इस हड़ताल में सीजर के लोगों की जीत हो गयी । तब ये लोग चाहते थे कि डेनि को अब यहाँ से लात मारकर भगाया जाय । लेकिन सीजर ने कहा : “क्या आप एक आदमी से डर गये ? आपको मालूम है कि सच्ची चुनौती किस बात में है ? उसे निकालने में नहीं , लेकिन उसे अपने में लाने में सच्ची चुनौती है । अगर आप अच्छे संगठक हों , तो जरूर उसे अपने में आने को राजी कर लेंगे – लेकिन आप आलसी हैं । “

अंगूर के बगीचे के मजदूरों के संगठन को अभी तक बहुत बड़ी सफलता तो नहीं मिली है । आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य सरकार के कानून द्वारा संगठन के अधिकार प्राप्त करना है । हड़ताल का साधन हमेशा सफल नहीं होता । मुख्य कारण यह है कि अंगूर – उत्पादकों को दूसरे मजदूर आसानी से मिल जाते हैं । अतएव सीजर के संगठन युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी ने कई जगह नये मजदूरों को काम पर जाने से रोकने के लिए पिकेटिंग की है । हड़ताल में शामिल होने वाले मजदूरों को युनाइटेड फार्म वर्कर्स आर्गनाइजिंग कमेटी कुछ दूसरा काम देने का भी प्रयत्न करती है । लेकिन वर्षों तक चलने वाली हड़ताल को टिकाये रखने के लिये समिति के पास पैसे नहीं हैं । हड़ताल को टिकाये रखनेवाला मुख्य तत्व है संगठन के नेताओं का सादा जीवन । उनके और मजदूरों के जीवन में अन्तर नहीं है । मजदूरों के कष्ट सीजर और उनके साथियों के कष्ट बन जाते हैं ।

हाँ , कई साथियों में इतना धीरज नहीं है । मालिक लोग जब पीछे से ट्रकें लाकर मजदूरों को रास्ते चलते कुचल डालते हैं , मेक्सिको से आये हुए नये मजदूरों को हड़ताल करनेवाले लोगों से झगड़ा करने के लिए किराये पर रखते हैं , सीजर या उसके साथियों को खुले आम गालियाँ देते हैं , तब सीजर के साथियों में से कोई – कोई चिढ़ जाता है । सीजर उन्हें कभी हँसकर , कभी गंभीरता से समझाता है । वे कहते हैं : ” अहिंसा के रास्ते से देर लगती है । ” सीजर कहता है : ” हिंसा के रास्ते से जो सफलता मिलती है , वह स्थायी नहीं होती । “दलीलें चलती रहती हैं । अन्त में बात वही होती है , जो सीजर कहता है , लेकिन सीजर को भी मालूम है कि केवल उसकी अपनी अहिंसा – निष्ठा से काम बननेवाला नहीं है । इसलिए वह सारे कार्यकर्ताओं को अहिंसा की महिमा समझाने की कोशिश करता रहताह है ।

[ शेष भाग अगली किश्त में ]

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