सभ्यता के उत्तरार्ध में
शब्दश: कुछ भी नहीं होगा
जो भी होगा वह
अपने लेबलों से कम होगा
लेबलों के बाहर
कुछ भे नहीं होगा
न कोई वस्तु न व्यक्ति
सारी शक्ति लेबलों में होगी
शब्दश: कुछ भी नहीं होगा
शब्दों पर भरोसा नहीं करेगा कोई
फिर भी शब्दों पर कब्जा करने का पागलपन रहेगा
सवार
‘शांति’ शब्द का इस्तेमाल कौन करे
इसके लिए हो सकता है युद्ध
कोई शब्द नहीं बचेगा शुद्ध
कोई कहेगा प्यार
और वह एक दरार में गिर जाएगा
विपरीत अर्थ वाले शब्दों में भी
कोई फर्क नहीं रहेगा
या रहेगा भी तो बस इतना
जितना छद्म मित्रों
और प्रछन्न शत्रुओं के बीच होगा
सारे शब्द सिर्फ बाधाएं होंगे
पत्थरों की तरह पड़े रहेंगे
पूरी कठोरता के साथ
मनुष्य और मनुष्य के बीच
शब्दों के मृत पहाड़ पर
खड़ा होकर चीखेगा कवि
सुनेगा कोई नहीं
– राजेन्द्र राजन .
१९९५.
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