इतिहास के ग्रन्थों का कभी ना कभी नाश होना अटल है । यह जान कर ही शायद भारतीय जनता ने अनंत काल तक प्रचलन में रहने वाली कथा कहानियों के माध्यम से इतिहास बनाया है। इतिहास को क्रोध आया । उसने बदला लिया और सबसे ज्यादा समय तक अभंग रहने वाले पाषाणों पर उसने अपनी आत्मा खोदकर रखी । भारतीय धर्म ने भी अपनी कथा पाषाणों पर ही चित्रित की है ।
भारतीयों का धर्म जैसे जैसे उत्कर्ष तक पहुंचने लगा वैसे वैसे उसका रूप अधिकाधिक सत्वहीन और चिंतनहीन बनता गया । पाषाण जैसी सबसे भारी चीज पर जब भारत का धर्म ज्यादा पैमाने पर खोदा जा रहा था , उसी समय चिंतन में खोखलापन बढ़ रहा था । दुनिया के किसी भी अन्य देश ने अपनी आत्मा के इतिहास को और अपने इतिहास की आत्मा को भारत के समान पत्थर पर खोदकर लुभावनी शकल नहीं दी होगी । एक तरफ इतिहास और धर्म विषयक चिंतन में स्मिता और वहीं दूसरी तरफ धार्मिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं के काल्पनिक चित्रों में श्वास रोकने वाली लगभग चिरंतन सुन्दरता ।
भगवान बुद्ध व महावीर न जाने वास्तव में कैसे दिखाई देते थे । मगर उनकी मृत्यु के के करीबन ३ सौ साल बीत जाने के बाद जिन शिल्पकारों ने उनकी मूर्तियाँ खोदीं , उन्होंने उन मूर्तियों में महापुरुषों की शिक्षा का मर्म इस तरह साकार किया है कि वे गोया सजीव प्रतीत होती हैं । कई तरह के रूपों में बुद्ध और महावीर को मूर्तियों में चित्रित किया गया है । कहीं चिंतन मग्न तो कहीं करुणा निधि , कहीं अभय मुद्रा में तो कहीं विकारों पर विजय प्राप्त किये हुए । जिस तरह हाथों और पैरों पर ठोंकी हुई कीलों की एक ही शकल में ईसा मसीह का स्वरूप दिखाई देता है वैसे बुद्ध और महावीर की मूर्तियों का नहीं । भारतीय शिल्पकारों ने उनका एक ही एक रूप चित्रित करने का बन्धन नहीं स्वीकारा। अपनी इच्छा के अनुसार अपने आराध्य देवता का चित्र रेखांकित करने की आजादी युरोपीय चित्रकारों को होगी । लेकिन शिल्पकारों को नहीं होगी भारतीय शिल्पकार ही इस सम्बन्ध में पूर्णतया स्वतंत्र मालूम होते हैं ।
बुद्ध और महावीर की मूर्तियाँ अनेक रूपों में होने पर भी उन सभी की आस्था व शिल्पशैली एक जैसी है । सभी मूर्तियाँ किसी एक्च ही शिल्पकार ने नहीं खोदीं हैं । कितने भी महान शिल्पकार के लिए यह असंभव था । पीढ़ी पीढियों के अथक परिश्रमों का वह फल है । तो भी बुद्ध और महावीर की मूर्तियाँ एक जैसी दिखती हैं ऐसा शायद ही कोई कह सकता है ।
बुद्ध की प्रतिमा में बुद्ध निश्चिंत दिखाई देते हैं तो महावीर की मुद्रा एक तरह से तंग दिखाई देती है । दोनों की मूर्तियाँ देखने पर लगता है कि मानव को उपलब्ध होने वाली श्रेष्ठ विजय दोनों को प्राप्त हुई है । मगर विजीत बुद्ध मुद्रा पर निश्चिंतता है तो विजयी महावीर का चेहरा जो तंग है । इन धर्म प्रवर्तकों की सीख समझाने का जो काम बड़े बड़े ग्रन्थ और धर्म प्रबन्ध कर नहीं पाये , वह काम इन शिल्पकारों ने अपने धर्म पुरुषों की प्रतिमाएं खोदकर अत्यधिक संक्षिप्त लेकिन साफ साफ तय किया है ।
सारनाथ उसी तरह मथुरा , नालंदा , अजंता , वेरूळ के महान बुद्ध की मूर्ति के चेहरे पर सब जगह प्रसन्न विजेता का भाव मालूम होता है । श्रवण बेळगोळा में महावीर परम्परा के बाहुबली की एक बहुत ही प्रचंड मूर्ति है । जो कि दुनिया की सबसे प्रचंड मूर्ति है । विजयी बाहुबली की मुद्रा पर अन्यत्र के समान यहां भी आत्मनिग्रह प्रतीत होता है ।उस मुद्रा की तरह ही लगता है कि यह मुद्रा गोया हमें कहती है कि आदमी कभी भी स्वयं पर अति विजय नहीं पा सकता । मन के बैल को पकड़ने में सफलता मिल जाने के बाद भी उसे अनिर्बंध नहीं छोड़ना चाहिए । जैन धर्म और उसके अनुयायिओं की , विशेष रूप से जैन मुनियों कीकठोर व्रत साधना उस धर्म के कट्टर पंथ की एवं निरंतर दक्षता वृत्ति की साख है । बुद्ध का ऐसा नहीं है । बुद्ध मूर्ति देखने पर ऐसा लगता है कि विजय प्राप्ति के बाद भी विजय के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लगेगा ऐसी मनोदशा प्राप्त करना संभव है । यहाँ यह सवाल ही नहीं उपस्थित होता कि दोनों में से कौन सी प्रवृत्ति ठीक है । जो कि दोनों धर्म पंथों का आगे चलकर अध:पतन ही हुआ है । कौन अधिक अच्छा था यह सवाल भी अप्रस्तुत है । चूंकि कहा जा सकता है कि मानवीय दृष्टि से बुद्ध ज्यादा योग्य था तो ऐसा भी कहना संभव है कि तार्किक दृष्टि से महावीर ज्यादा ठीक थे । मैं यहाँ केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि शिल्पकारों ने उन दोनों की विचार प्रणाली को उनकी शरीराकृतियों के और मुद्राओं के माध्यम के द्वारा उत्तम रीति से पाषाणांकित की है ।
( जारी )
achchha lekh hai jaari rakhiye.
अच्छा आलेख, लगता है बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
Today i received a comment from this blog on my post related to Jagannath Puri on Kabaadkhaana . I am really very keen on knowing about Indian impact on Indonesia and other countries of that region. can u pls inform me at maykhaana.blogspot.com , if u ever write on this subject.
this article is indeed very educating.
यह आलेख कला के दृष्टिकोण से धर्म,संस्कृति और इतिहास को नई आंख से देखने का मार्ग प्रशस्त करता है . प्रस्तुति के लिए आभार !
मुग्ध हो गए हम तो!
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