[ प्रसिद्ध लेखक और सामाजिक कार्यकार्ता भारत डोगरा की यह कविता बाबा मायाराम की लिखी किताब ’सतपुड़ा के बाशिन्दे’ से साभार ली गई है । ]
पलामू के एक जंगल में
एक ट्राइबल को एक टाइगर मिल गया
दोनों के सम्बंध अच्छे नहीं थे उन दिनों
तो भी पुराने दिनों की खातिर
ट्राइबल ने हाथ जोड़ नमस्ते कर दी
घमंड में चूर बाघ ने मुंह फेर लिया
नमस्ते का जवाब तक न दिया
तिरस्कार की नज़र से घूरा
बोला – हट जाओ रास्ते से
हम तुम्हारे ढोर खाने जाते हैं
यह देख आदिवासी को ताव आ गया
बिरसा का खून धमनियों में बह गया
इतना दर्प ! ऐसा अपमान !
किस बात का है इसको गुमान
उसने तान दिया तीर – कमान
टाइगर ने अट्टहास किया,बोला
आज का कानून समझ के तीर चलाना
मैं तुम्हें मारूँ तो सुरक्षित हूँ
तुम मुझे मारो तो धर लिए जाओगे
पछताओगे , जेल की हवा खाओगे
ट्राइबल झल्लाया , बोला यह कैसा कानून
यह तो अंग्रेजों के दिनों में भी नहीं था
तब अति संक्षेप में टाइगर ने समझाया
प्रोजेक्ट टाइगर बन चुका है
प्रोजेक्ट मानव अभी बनना है
– भारत डोगरा.