हत्यारे ने उस औरत को मारने में दो मिनट लगाए
उस पर दो शताब्दियों तक चलता है मुकदमा
जिसने सार्वजनिक कोष से साफ़-साफ़ उड़ा लिए सैकड़ों करोड़ रुपये
उसकी सत्तर साल तक जांच करता है जांच आयोग
कोई किसी से पूछता है, क्यों यह समय इतना निरपेक्ष और किसी
अक्षम्य पाप जैसा है
जब नहीं सुनता कोई किसी की बात तो एक उपेक्षित कवि
अपने कान समूची पृथ्वी पर लगाता है
हर अँधेरे में सुलगती हैं उसकी पीड़ित आत्मा की खुफिया आँखें
अप्रासंगिकताएं क्यों हावी हैं इस कदर तमाम अच्छी और ज़रूरी चीज़ों पर
जो ठीक-ठाक हैं और जो चाहिए तमाम लोगों को
उनका विज्ञापन क्यों नहीं दिखाई देता कहीं ?
उनकी कोई कीमत क्यों नहीं बची, कुछ बताएंगे आप ?
एक छोटी-सी जेब में समा जाने वाली कंघी,
खैनी, राई, अरहर और गुड के लिए
अपने कपडे क्यों नहीं उतारतीं मधु सप्रे और अंजलि कपूर
बीडी के बण्डल का रैपर क्यों नहीं बनाते अलेक पदमसी
वो कौन हैं जिनके लिए है इतना सारा उद्योग
रात भर कई सालों से गिरती हैं आकाश से सिसकियाँ और खून
स्वप्न चुभतेहैं उसके तलवों में जो भी इस समाज से गुज़रता है
एक गरीब धोबी जो टैगोर हो सकता था
सारे शहर के कपडे धोता है आधी रात अपने आंसुओं से
एक स्त्री जोर-जोर से हंसती है अपनी ह्त्या के ठीक एक पल पहले
कोई विश्वास
होता है हर बार, जिस पर घात होता है हर बार
सबलोग यह जानते हैं पर खामोशी ही लाजिमी है
जो व्यक्त करता है यथार्थ को
वह मार दिया जाता है अफवाहों से |
(‘रात में हारमोनियम’, १९९८, वाणी प्रकाशन)
जो व्यक्त करता है यथार्थ को
वह मार दिया जाता है अफवाहों से |
kamaal hain kya hakikat hain !!