मित्र गोपाल राठी ने सूचित किया है की आज मैथिलीशरण गुप्त की जन्म तिथि है । अपने नाना के संग्रह से उनकी लिखी एक छोटी सी पुस्तिका लाया हूं – ‘भूमि-भाग ‘। विनोबा के भूदान के दौर में लिखी गई कविताओं का संग्रह है ।
एक खेत
रहते हम यों जीवित-मृत क्यों ? ज्यों मरघट के भूत-प्रेत ,
कहीं हमारा भी होता हां ! छोटा-मोटा एक खेत ,
बैल न होते , हम तो होते ,
श्रम-जल सींच जोतते बोते ,
उगते आशा के-से अंकुर रहता फिर क्यों रक्त श्वेत ?
कहीं हमारा भी होता यदि छोटा-मोटा एक खेत !
बांध मचान रखाते गाते ,
हम कितना आनंद मनाते ,
जग में हरा खेत हैं जिनका भरा उन्हींका है निकेत ।
कहीं हमारा भी होता यदि छोटा-मोटा एक खेत !
आती फिर गोमाता मोटी ,
बच्चे खाते माखन – रोटी ,
देती उन्हें गर्व से गृहिणी घर के तिल गुड़ के समेत ।
कहीं हमारा भी होता यदि छोटा-मोटा एक खेत !
क्या-क्या फूल फूलते-फलते ,
रंहट और रंहटे सब चलते ,
मोती बरसाती तब मिट्टी मणि-कणिकाएं धुल रेत ।
कहीं हमारा भी होता यदि छोटा-मोटा एक खेत !
स्वप्न देखते हैं हम झूठे ,
देश काल दोनों हैं रूठे ,
दुर्लभ हुई धुल भी हमको , व्यर्थ कल्पना , चित्त ,चेत ।
कहीं हमारा भी होता यदि छोटा-मोटा एक खेत !
– मैथिलीशरण गुप्त
bahut khoob….! …aur dhanyavaad..!