दुनिया की अन्य किसी भाषा में सूर्य के लिए ऐसा शब्द नहीं है । पारसियों में सूर्य के लिए ‘ मित्र ‘ शब्द मिलता है । अन्य किसी भाषा में सूर्य के लिए ऐसा शब्द नहीं है । हाँलाकि अपने देश में सूर्य जितना मित्र जैसा लगता है उससे बहुत अधिक युरोप में मित्र जैसा लगता है और आनन्ददायक होता है । हमें तो उसका ताप भी तनिक सहन करना पड़ता , परन्तु उनके लिए सूर्य की धूप आनन्ददायक बन पड़ती है । उनकी स्थिति कैसी है ? संस्कृत में एक शब्द है ‘दुर्दिन’ । उसका शब्दश: अर्थ तो ‘अशुभ दिन’ होगा । परन्तु उसका विशेष अर्थ है : जिस दिन आकाश में बादल छाये हुए हों उस वजह से अथवा बारिश के कारण सूर्यनारायण का दर्शन न हो , वह दिन ।
इससे यह समझ में आता है कि यहाँ आए उसके पहले हमारे पूर्वज अरबस्तान जैसे किसी गरम प्रदेश में नहीं रहते होंगे , किसी ठण्डे प्रदेश में ही रहते होंगे जहाँ सूर्य-दर्शन उन्हें मित्र जैसा प्रिय लगता होगा । सूर्य हमेशा रहे इसे वे अपना भाग्य मानते । परंतु सूर्य की धूप जिनके लिए इतनी अधिक आनन्ददायक होती है उन युरोप के लोगों को सूर्य के लिए ‘मित्र’ की संज्ञा नहीं सूझी ! इसलिए उनकी भाषाओं में सूर्य के लिए ‘मित्र’ शब्द नहीं है । वेद में सूर्य को मित्र कहा गया , यह हमारी अग्रणी संस्कृति का द्योतक है । इसमें एक प्रतिभा है , एक दर्शन है । बाद में गौतम बुद्ध ने अपने यहाँ पैदा इस बहुत पुरातन शब्द को ले कर मैत्री का एक आन्दोलन भी चलाया ।
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