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अपने आप को धर्म और भगवान से ऊँचा मानने वाला हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था । वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें । पर हिरण्यकश्यप के पुत्र ने उसे भगवान मानने से साफ इनकार कर दिया । बहुत यातना व अत्याचार के बाद भी वह वह स्वयंभू अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद से अपने को भगवान कहलाने में असफल रहा । हार कर अन्त में उसने प्रह्लाद को जान से मारने का तरीका सोचा ।
हिरण्यकश्यप की एक होलिका नाम की बहन थी ।होलिका के पास एक अग्निरोधक वरदान वाला शॉल था ।वरदान के अनुसार यदि वह शाल ओढ़ कर आग में बैठेगी तो आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी । हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा कि वह प्रह्लाद को गोद में ले कर चिता पर बैठ जाए । होलिका ने अपने भाई का कहना माना और प्रह्लाद को गोद में ले कर चिता पर बैठ गयी । लेकिन जब चिता जली तो लपटों में होलिका का शॉल उड़ गया । होलिका जल मरी,पर भक्त प्रह्लाद का बाल बाँका नहीं हुआ।
प्रतिवर्ष होली जला कर हम इसी घटना का स्मरण करते हैं । होलिका दहन कर हिरण्यकश्यप की कुटिल चाल को नाकाम करते हैं। भक्त प्रह्लाद को जिन्दा रखते हैं।
होली का मर्म
आज भगवान को अपनी छुद्र राजनीति का जरिया बना कर धर्म के तथाकथित संरक्षक बन बैठे एक नहीं अनेक हिरण्यकश्यप सारे देश में घूम-घूमकर खून की होली खेल रहे हैं ।
अपने विश्वास को संविधान , कानून , राष्ट्र और जनता से ऊपर समझने वाले ये हिरण्यकश्यप देश की , जनता की एकता , सद्भावना,परस्पर विश्वास और लोकतांत्रिक मर्यादाओं पर कुठाराघात कर रहे हैं । अपनी बहन होलिका रूपी साम्प्रदायिकता के माध्यम से कई निर्दोष और मासूमों को अपना शिकार बना रहे हैं ।
जो व्यक्ति या संगठन इनके विचारों से असहमति रखते हैं उन्हें सबक सिखाना,डराना,धमकाना ,मार-पीट करना,सभा बिगाड़ना,पुतला जलाना और अन्त में दमन करना,हत्या करना इन हिरण्यकश्यपों की दृष्टि में पवित्र धार्मिक और राष्ट्रीय कर्तव्य है ।
धर्म और भगवान के ठेकेदार बने स्वयंभू हिरण्यकश्यपों और साम्प्रदायिकता रूपी होलिका को ठिकाने लगाना ही होली का सच्चा मर्म है ।
लकड़ियों के बड़े ढेर में आग लगा कर तो हम खत्म हो रहे जंगलों के विनाश में भागीदार बनते हैं , पर्यावरण असंतुलन के गुनहगार बनते हैं । अत: होली का मर्म समझ कर कम-से-कम लकड़ेयाँ जला कर प्रतीकात्मक होलिका दहन करें ।
– समता संगठन ,पिपरिया,होशंगाबाद,(म.प्र.)
लेखक ने आधुनीक युग के हिरण्यकश्यप के बारे मैं सही कहा। आजकल काफ़ी ढोंगी लोगों ने हिरण्यकश्यप की तरह अपने आप को भगवान मान लिया है। ये ढोंगी समाज को खोखला कर रहे हैं।
holi (हिरण्यकश्यप की एक होलिका नाम की बहन थी ।होलिका के पास एक अग्निरोधक वरदान वाला शॉल था ।वरदान के अनुसार यदि वह शाल ओढ़ कर आग में बैठेगी तो आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी । हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा कि वह प्रह्लाद को गोद में ले कर चिता पर बैठ जाए । होलिका ने अपने भाई का कहना माना और प्रह्लाद को गोद में ले कर चिता पर बैठ गयी । लेकिन जब चिता जली तो लपटों में होलिका का शॉल उड़ गया । होलिका जल मरी,पर भक्त प्रह्लाद का बाल बाँका नहीं हुआ।) jaha per vishnu bhagwan hai vaha anhoni nahi hoti. H RAJPUROHIT
AAJ KAL SAB LOG APNE AAP KO BHAGWAN SAMJTE. JO KI VILLAGES KI HOLI KHADI NAHI KAR SAKTE USKO KYA SAMJANA CHAHIA.
Hai Sab Ek Doosre ki tang khichne me lage hai
aap kiski taang khichne rahe hai
mai aap ki tang khich raha hoon
[…] (पु्नर्प्रकाशन ) […]
Why you have choosen Holi as a subject, is there any specific reason please clarify.
Dinesh S/o. Dansinghji Rajpurohit
Korka Pol
Barwa, Pali,
Rajasthan
dineshraj2006@yahoo.co.in
@ दिनेश ,
हमारे देश में पर्व और त्यौहारों से जुड़ी कथाओं से काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है । जैसे प्रह्लाद एक युवा सत्याग्रही था और हिरण्यकश्यप के अन्याय और निरंकुशता के प्रतिकार में उसने सत्याग्रह किया। इसलिए होली के अवसर पर त्यौहार के पीछ की कथा की चर्चा की गयी है। हिरण्यकश्यप जैसी ताकतें समाज में अभी भी हैं जिनका प्रतिकार प्रह्लाद से प्रेरणा लेकर करना है । उम्मीद है अब आपको स्पष्ट हो गया होगा कि आँखें मूँद कर त्यौहार मनाने में कोई मजा नहीं है और आधुनिक हिरण्यकश्यप का विरोध क्यों होना चाहिए।
holi ki tarah hi har parw ke piche bade bade etihas hai,
[…] होली : प्रह्लाद,हिरण्यकश्यप और होलिका […]