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गूगल ने दिसम्बर २००७ में ऐलान किया था कि वह नेट उपयोगकर्ताओं द्वारा लिखे गए एनसाइक्लोपीडिया की शुरुआत करने जा रहा है । २३ जुलाई को इसकी शुरुआत हो गयी है। आप किसी विषय पर लिखेंगे और उस पृष्ट के मालिक होंगे , विकीपीडिया की भांति कोई दूसरा उस पृष्ट का सम्पादन नहीं कर सकेगा । पाठक उस पृष्ट को सुधारने के सुझाव जरूर दे सकेंगे लेकिन आप पर होगा कि उन्हें आप मंजूर करते हैं या नहीं । कई माएने में यह विकीपीडिया से अलग है लेकिन  इन्टरनेट पर अपना स्वायत्त,स्वतंत्र पृष्ट बनाने का दर्शन भी तो मूलत: यही है ! 

   मानिए कि अभय तिवारी इस्राईल के इतिहास के बारे में ‘नॉल’ लिखते हैं । उसी विषय पर २३३५ और लोग लेख लिख सकते हैं । इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में दोहराव होगा। सिद्धान्तत: यह माना जा रहा है कि स्पर्धा होगी तो सब से अच्छी सामग्री वाला पृष्ट टिकेगा ।

    यह बताया जा रहा है कि विकीपीडिया से विपरीत ‘नॉल’ से धन कमाया जा सकेगा । दरअसल एडसेन्स जैसे विज्ञापनों द्वारा गूगल की जो कमायी होगी उसमें से कुछ टुकड़ा लेखक को फेंक दिया जाएगा।

   विकीपीडिया की तरह नॉल में विषय सूची या वर्गीकरण नहीं है । गूगल को शायद अखर रहा है कि लाखों विषयों को सर्च इंजनों से खोजते वक्त मुनाफ़ा न कमाने वाली संस्था ( विकीमीडिया फाउन्डेशन ) द्वारा संचालित विकीपीडिया की प्रविष्टी सब से ऊपर आती है । यह मुमकिन है कि नॉल के पृष्टों को गूगल के सर्च इंजनों पर प्राथमिकता और वरीयता मिले इसकी पूरी संभावना है ।

   ‘नॉल’ गूगल के उपाध्यक्ष यूडी मैनबर के दिमाग की पैदाइश माना जा रहा है । फिलहाल इस पर कुछ सौ लेख हैं जिनमें से ज्यादातर स्वास्थ्य एवं आयुर्विज्ञान पर हैं । विकीपीडिया में सिर्फ़ अंग्रेजी में २१ लाख लेख है तथा इसके द्वारा अन्य भाषाओं में लिखने को भी प्रोत्साहित किया जाता है । गूगल ने ज्ञान की इकाई के रूप में नॉल को परिभाषित किया है ।

    कुछ वर्ष पहले गूगल ने किसी प्रश्न का उत्तर देने और उसकी कीमत देने का एक चोंचला चलाया था।  लगता है कि यह विफल हो चुका है ।

  हिन्दी चिट्ठालोक के कई वरिष्ट सदस्य हिन्दी विकीपीडिया को समृद्ध करने में मेहनत करते आए हैं । अनुनाद सिंह और अनूप शुक्ला हिन्दी विकीपीडिया को समृद्ध करने के प्रति गंभीर रहे हैं । इस दानवाकार कम्पनी द्वारा ज्ञान को कमाई का सस्ता जरिया बनाने के प्रति हिन्दी चिट्ठालोक की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है ।

 

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