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Posts Tagged ‘बसपा’

राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता एक दूसरे को कमजोर करनेवाली होती है,क्योंकि राष्ट्रीयता के परिधान में ही साम्प्रदायिकता आकर्षक लगती है।न सिर्फ साम्प्रदायिकता की चुनौती को झेलने के लिए बल्कि अलगाववाद पर नियंत्रण पाने के लिए भी राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद के संबंध में एक दृढ़ और स्पष्ट अवधारणा को प्रचारित करना जरूरी हो गया है।नई आर्थिक नीतियों के कारण हमारी आजादी पर खतरे की आशंका व्यापक हो रही है।आर्थिक नीतियों के मामले में राष्ट्रवाद को परिभाषित करना ही होगा।यहां से शुरू करके राष्ट्र संबंधी पूर्णांग धारणा विकसित हो सकती है। – किशन पटनायक

भारतीय संस्कृति का स्थान भी साम्प्रदायिकता ले रही है,मानो पश्चिमी संस्कृति को मानने वाले ही साम्प्रदायिकता का विरोध कर रहे हैं।बात बिल्कुल ऐसी नहीं है क्योंकि पश्चिमी संस्कृति को मानने वाले राजनीतिक स्तर पर अब बड़ी संख्या में भाजपा के समर्थक बनते जा रहे हैं।इसलिए भारतीय संस्कृति का एक ग़ैरसाम्प्रदायिक आधुनिक रूप प्रचारित होना बहुत जरूरी है।आजादी के पहले रवींद्रनाथ ठाकुर इसके प्रभावी प्रतीक थे।आजादी के बाद पश्चिमीकृत संस्कृति के विकल्प में सिर्फ सती प्रथा और आसाराम स्थापित हो रहे हैं।
-किशन पटनायक

गैर भाजपाई दलों में सपा और बसपा का अकेला मोर्चा है जो संघ परिवार से भयभीत नहीं जान पड़ रहा है।इससे एक सबक लेना है-एक सीधा और गहरा सबक।संघ परिवार से मुकाबला करने के लिए जिस जनाधार की जरूरत है वह शूद्र-दलित समन्वय से बनता है ।जिस राजनैतिक दल का नेतृत्व मुख्य रूप से उच्च जातिवाला है,जिसके कार्यकर्ता भी सामान्यतया उच्च जाति से आते हैं,उसके पांव संघ परिवार से लड़ते वक्त लड़खड़ाते हैं।कई सामाजिक और ऐतिहासिक कारणों से उसके अंदर दुविधाएं और कमजोरियां पैदा होती हैं।
– किशन पटनायक

अंततोगत्वा संघ परिवार की धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक नीतियों का लक्ष्य समाज में ब्राह्मणवाद को पुनः स्थापित करना है।इसलिए ब्राह्मण-बनिया-राजपूत जातियों का एक स्वाभाविक आकर्षण इन नीतियों के प्रति होता है।यह सही है कि कई बार राजपूत और यादव,कायस्थ और कुर्मी समान रूप से मुसलमान विरोधी यानी साम्प्रदायिक दिखाई देते हैं।लेकिन गहराई में जाने पर पिछड़ों और दलितों का साम्प्रदायिक विद्वेष बहुत सतही मालूम होगा। ब्राह्मणवादी विचारों के हिसाब से ब्राह्मण ही पूरी तरह हिन्दू है या फिर द्विज जातियां।शूद्र जातियां अपेक्षाकृत कम हिन्दू हैं और दलितों का हिंदुत्व नगण्य है।अतः जिस दाल का नेतृत्व जितना द्विज प्रधान होगा,साम्प्रदायिकता के मुकाबले वह अपने को उतना दुविधाग्रस्त पाएगा।भाजपा से लड़ने में उसका आत्मविश्वास उतना कमजोर पाया जाएगा।उसका नेता प्रबल धर्मनिरपेक्षतावादी हो सकता है,लेकिन उसके अपने परिवार और स्वजनों के बीच उसकी बातें प्रभावी नहीं होंगी।
-किशन पटनायक
(धर्मनिरपेक्षता का घोषणापत्र 4)

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’ यह अब तक का सर्वाधिक समझदार ,सन्तुलित और नैतिक हथियार है । ’ सिर्फ़ जीवन हरण करते हुए तमाम निर्जीव इमारतों आदि को जस – का – तस बनाये रखने की विशिष्टता वाले न्यूट्रॉन बम के आविष्कारक सैमुएल कोहेन ने अपने ईजाद किए इस संहारक हथियार के बारे में यह कहा था। इस ६ दिसम्बर को उसके बेटे ने खबर दी कि उसकी कैन्सर से मृत्यु हो गई । युद्ध के बाद इमारतें जस की तस बनी रहेंगी तो निर्माण उद्योग को बढ़ावा कैसे मिलेगा ? संभवत: इसीलिए न्यूट्रॉन बम के प्रति बड़े मुल्कों में आकर्षण नहीं बना होगा । इराक के ’पुनर्निर्माण’ से अमेरिकी उपराष्ट्रपति डिक चेनी से जुड़ी कम्पनियां जुड़ी थीं , यह छिपा नहीं है ।

कल बनारस के शीतला घाट पर हुए ’ मध्यम श्रेणी के विस्फोट ’ के बाद से समस्त मीडिया का ध्यान काशी की कानून और न्याय – व्यवस्था पर है । यहां के नागरिकों और पर्यटकों के जान – माल की रक्षा में विफल जिला प्रशासन पर है ।

सैमुएल कोहेन की तरह बनारस के जिला प्रशासन ने भी एक ’समझदार ,सन्तुलित किन्तु संहारक हथियार ’ गत ढाई महीने से इस्तेमाल किया है । इस हथियार का प्रयोग बनारस के शहरी-जीवन के हाशिए पर मौजूद पटरी व्यवसाइयों पर हुआ है । इस माएने में जिला प्रशासन न्यूट्रॉन बम से भी एक दरजा ज्यादा ’समझदार’ है। वह जीवितों में भी भी गरीबों को छांट लेता है । ढाई महीने से आधा पेट खाकर लड़ रहे इन पटरी व्यवसाइयों के बीच से दो फल विक्रेता – रामकिशुन तथा दस्सी सोनकर रोजगार छीने जाने के आघात से अपनी जान गंवा चुके हैं । जिला प्रशासन की इस दमनात्मक कारगुजारी में ’रियल एस्टेट’ लॉबी तथा पुलिस बतौर गठबन्धन के शरीक है । इस गठबन्धन ने खुले रूप से एक घिनौना स्वरूप ग्रहण कर लिया है । लंका स्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को बनारस की सबसे चौड़ी पटरी और नगर निगम का रिक्शा स्टैण्ड उपहार स्वरूप भेंट दे दिया गया है , इसके बदले रियल एस्टेट मालिक द्वारा लंका थाना परिसर में कमरे बनवाना तथा पुताई करवाई गई है । इसी परिवार द्वारा बनाये गई बहुमंजली इमारतों में कई ’आदर्श घोटाले’ छुपे हैं ।

मुख्यधारा की मीडिया जिला प्रशासन रूपी न्यूट्रॉन बम को देखे-समझे यह भी सरल नहीं है ।

उत्तर प्रदेश में शासन कैसे चल रहा है इसका नमूना बनारस के पटरी व्यवसाइयों के ढाई महीने से चल रहे संघर्ष से समझा जा सकता है । मुख्यमन्त्री के कान-हाथ दो तीन नौकरशाह हैं । जो जिलाधिकारी इनसे तालमेल बैठा लेता है वह कोई भी अलोकतांत्रिक कदम उठा सकता है । वाराणसी नगर निगम के किसी भी अधिकारी द्वारा कोई भी आदेश न दिए जाने के बावजूद जिलाधिकारी के मौखिक आदेश का डंडा स्थानीय थानध्यक्ष के सिर पर है और थानाध्यक्ष के हाथ का डंडा पटरी व्यवसाइयों के सिर पर । गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटरी पर व्यवसाय को मौलिक अधिकार का दरजा दिए जाने को भी जिलाधिकारी नजरअंदाज करते आए हैं । वाराणसी के कमीशनर को विधानसभाध्यक्ष , सत्ताधारी दल के कॉडीनेटर,शासन द्वारा नामित सभासदों द्वारा लिखितरूप से कहने को स्थानीय प्रशासन नजरअंदाज करता आया है ।सत्ताधारी दल के इन नुमाइन्दों ने स्थानीय प्रशासन को यह भी बताना उचित समझ कि अधिकांश  पटरी व्यवसाई दलित हैं । लोगों का कहना है कि इन महत्वपूर्ण सत्ता -पदों पर बैठे राजनैतिक कार्यकर्ताओं का महत्व गौण होने के पीछे स्वयं मुख्यमन्त्री का तौर तरीका है । माना जाता है कि नौकरशाह दल के नेताओं से ज्यादा चन्दा पहुंचाते हैं । लाजमी तौर पर दल के कार्यकर्ताओं का इन अफ़सरों से गौण महत्व होगा।

 

 

 

 

 

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