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Posts Tagged ‘कुमार विकल’

यह तो कुमार विकल को भी ठीक ठीक नहीं पता था

कि वह पीता क्यों था

हम नाहक़ दोस्तों को कोसते रहे

पीने के वजहें सबसे अधिक तब मिलती हैं

जब पास कोई न हो

अनजान किसी ग्रह से वायलिन की आवाज़ आती है

आँखों में छलकने लगता है जाम

उदास कविताएँ लिखी जाती हैं

जिन्हें बाद में सजा धजा हम भेज देते हैं

पत्रिकाओं में

कोई नहीं जान पाता

कि शब्दों ने मुखौटे पहने होते हैं

मुखौटों के अंदर

रो रहे होते हैं शब्द ईसा की तरह

सारी दुनिया की यातनाएँ समेटे।

लिख डालो, लिख डालो

बहुत देर तक अकेलापन नहीं मिलेगा

नहीं मिलेगी बहुत देर तक व्यथा

जल्दी उंडेलो सारी कल्पनाएँ, सारी यादें

टीस की दो बूँदें सही, टपकने दो इस संकरी नली से

लिख डालो, लिख डालो।

बहुत देर तक बादल बादल न होंगे

नहीं सुनेगी सरसराहट हवा में बहुत देर तक

जल्दी बहो, निचोड़ लो सभी व्यथाएँ, सभी आहें

अभ्यास ही सही, झरने दो जो भी झरता स्मृति से

लिख डालो, लिख डालो।

लाल्टू

[ कवि-मित्र लाल्टू के जन्म दिन पर उन्हीकी कविता सप्रेम पेश ]

लाल्टू की कुछ और कवितायें : वह प्यार

लाल्टू से सुनो ,

लाल्टू की अभिव्यक्ति

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