‘ देवताओं की पुष्पवर्षा से जमीनी लड़ाइयां नहीं जीती जातीं । ‘ – चौधरी राजेन्द्र अक्सर कहते हैं।यह शब्दशः चरितार्थ होगा जब सर सुंदरलाल चिकित्सालय,काहिविवि पर आकाश से पुष्पवर्षा होगी।दरअसल कोरोना की लड़ाई में जूनियर डॉक्टर्स,प्रयोगशाला से जुड़े वैज्ञानिक,नर्स और वॉर्ड बॉय ही अभ्यर्थना,सम्मान के हकदार हैं।इस टीचिंग हॉस्पिटल के प्रोफेसरान लॉकडाउन के साथ ही OPD,OT बन्द कर चुके हैं।हर रोज़ OPD में पूर्वी उत्तर प्रदेश,बिहार के 5,000 मरीज इस इलाके के सबसे बड़े अस्पताल की सेवा से वंचित हैं।
इन वरिष्ठ चिकित्सकों की बेहयाई,बुजदिली तब और सिद्ध हुई जब वाराणसी के जिलाधिकारी ने 19 अप्रैल को OPD खोलने की अपील की तब इन लोगों के निहित स्वार्थ में 14 अप्रैल का एक परिपत्र 5 दिन बाद मीडिया को जारी किया जिसमें कहा गया था पूरा चिकित्सालय परिसर कोरोना संक्रमित है।फूल माला पहनने के लिए यह वरिष्ठ डॉक्टर ही अनाधिकार आगे आ जाएंगे।
कल जारी गृह मंत्रालय की विज्ञप्ति में भी OPDs खोलने का निर्देश है।गौरतलब है कि सर सुंदरलाल चिकित्सालय में भर्ती मरीज भी स्त्री रोग और नेफ्रोलॉजी जैसे अपवाद के विभागों में ही हैं।बाकी विभागों में, ICU से मरीज लॉकडाउन के समय ही विदा कर दिए गए थे।
Archive for the ‘वाराणसी’ Category
जमीनी लड़ाई और पुष्प वर्षा
Posted in अस्पताल, कोरोना, कोरोना महामारी,, डॉक्टर, डॉक्टर्स,चिकित्सक,, वाराणसी, Benaras, bhu, emergency, health, Uncategorized, tagged अस्पताल, काशी विश्वविद्यालय, कोरोना, महामारी, सर सुंदरलाल चिकिसालय, bhu, Laboratory Scientists, Nurses, OPD, Resident Doctors, Residents, Sir Sundar lal Hospital, Ward Boys on मई 2, 2020| 1 Comment »
आखिरकार मुझे बनना पड़ा एटीएम-धारक !
Posted in वाराणसी, शिक्षा, Benaras, bhu, election, tagged ए टी एम्, चुनाव, निलंबन, नेट, विधान सभा on जनवरी 29, 2012| 5 Comments »
काशी विश्वविद्यालय में १९८६ में छात्र संघ निलंबित हुआ उसके साथ छात्र संघ के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी निलंबित हुए | अध्यक्ष नहीं हुए |पदाधिकारी न होते हुए भी मैं हुआ | कुछ पूर्व छात्रों के परिसर प्रवेश पर रोक लगी | छात्रों की तरफ से सिर्फ मैंने उच्च न्यायालय के जज ए एस श्रीवास्तव की जांच समिति का सामना किया |मैंने सभी छात्रों का बचाव किया और सभी पूर्णतय: दोषमुक्त हुए | चूंकि दोषसिद्ध होने के पूर्व निलंबन को सजा नहीं माना जाता है इसलिए मेरे विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आर सी यादव ने मेरे यूं जी सी नेट की परीक्षा के आवेदन को अग्रसारित किया था | इस परीक्षा में सफल हुआ और निलंबन की अवधि के वजीफे से स्कूटर खरीदी |निलंबन के दौरान ही पत्रकारिता की प्रवेश परीक्षा भी दी ,द्वितीय स्थान रहा | वजीफे के लिए बैंक खाता खुला | खाते में फिलवक्त ६ हजार ७ सौ २३ रुपये पचास पैसे हैं | अखबारों में छपने वाले लेखों का पारिश्रमिक |
परीक्षाओं की कमियों को दूर करने के लिए कई सुधार किए जा सकते हैं |छात्र के साथ एक बार हुए अन्याय से निजात पाने के लिए और मौके दिया जाना ऐसा ही सुधार माना जाता है | हमारे विश्वविद्यालय में इन सुधारात्मक उपायों के लिए बैक और इम्प्रूवमेंट कहा जाता था | साल भर की पढ़ाई का आकलन तीन घंटे में हो जाना – कई बार जुआ खेलने जैसी बात हो जाती है | बहरहाल , इन उपायों को हटाया गया तब मैं परीक्षा देने के स्तर से ऊपर जा चुका था | आन्दोलन की मजबूती के लिए परीक्षाओं में सुधार पर हमने संगोष्ठियाँ आयोजित कीं | आन्दोलन में मानव श्रुंखला , जन-सुनवाई और आखीर में घेरा डालो – डेरा डालो जैसे शांतिमय प्रतिकार के उपाए गढ़े गए | प्रशासन ने मुझे इस आन्दोलन का ‘मास्टर माइंड’ माना – जो नकारात्मक पदवी है | लेकिन छात्रों ने इसे एक सम्मान माना |
समाजवादी जनपरिषद ने मुझे वाराणसी कैंट से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया है | नामांकन के साथ नया बैंक खाता खोलने का आयोग का निर्देश है इसलिए कल स्टेट बैंक में खाता खोला |तुरंत एक ए टी एम् -कम- डेबिट कार्ड भी मिला | अब तक ऐसे कार्ड का मालिक न था | मित्र-मंडली से आए चंदे के ४८ हजार रूपए उस खाते में जमा कर दिए हैं | चुनाव खर्च का ब्यौरा पूर्णतय: मानकों के अनुरूप रखने के लिए एक साथी को पूर्णकालिक यह काम ही करना होगा |
अन्ना हजारे को साझा संस्कृति मंच का प्रतिवेदन
Posted in administrative structure, पटरी व्यवसाई, भ्रष्टाचार, वाराणसी, tagged anna hajare, banaras, memorandum, sajha, sajha sanskriti manch, sanskriti, varanasi on अप्रैल 28, 2011| 3 Comments »
साझा संस्कृति मंच
वाराणसी
माननीय श्री अण्णा हजारे ,
कबीर , तुलसी और रैदास की बनारस की इस कर्मभूमि में हम आपका हृदय से स्वागत करते हैं । वाराणसी के सामाजिक सरोकारों के संगठनों का यह साझा मंच आप से यह नम्र निवेदन कर रहा है :
राज्य व्यवस्था भ्रष्टाचार और हिंसा को नियंत्रित करने के लिए बनी हुई है । आज भ्रष्टाचार एक केन्द्रीय समस्या बन गया है क्योंकि उसके कारण एक औसत नागरिक के लिए सामान्य ढंग से ईमानदारी का जीवन जीना मुश्किल हो गया है । भ्रष्टाचार का शिकार हुए बगैर रोजमर्रा का काम नहीं चल पा रहा है इसलिए भ्रष्टाचार से मुक्त होने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है । सामान्य अवस्था में भ्रष्टाचार सिर्फ लोभी और बेशर्म आदमियों तक सीमित रहता है और अधिकांश घटनाओं में लोग आश्वस्त रहते हैं कि दोषी दण्डित होंगे । मौजूदा समय में नेक आदमी भी भ्रष्टाचार करने लगा है और कोई आदमी ईमानदारी से अपना काम करता है तो उसकी हालत दयनीय हो जाती है ।
भ्रष्टाचार को जड़ से समझने के लिए निम्नलिखित आधारभूत विकृतियों को समझना होगा:
(१) प्रशासन के ढांचे की गलतियां – जवाबदेही की स्पष्ट और समयबद्ध प्रक्रिया का न होना भारतीय शासन प्रणाली का मुख्य दोष है । प्रशासन और अर्थनीति जैसे हैं वैसे ही बने रहें लेकिन भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा – यह हमें मुमकिन नहीं दिखता ।
(२) समाज में आय-व्यय की गैर-बराबरियां अत्यधिक हैं । जहां ज्यादा गैर बराबरियां रहेंगी , वहां भ्रष्टाचार अवश्य व्याप्त होगा । गांधीजी के शब्दों में ,’थोड़े लोगोंको करोड़ और बाकी सब लोगोंको सूखी रोटी भी नहीं , ऐसी भयानक असमानतामें रामराज्य का दर्शन करनेकी आशा कभी नहीं रखी जा सकती ’(दिनांक १०६-’४७) ।
(३) गांववासियों के लिए कचहरी और पुलिस में कोई फर्क नहीं होता । कचहरी वह है , जिसके द्वारा पटवारी-पुलिस किसानों को सताते हैं । सैकड़ों बार कचहरी आ कर अदालत में घूस और वकीलों की फीस में किसानों के करोडों रुपए लूट लिए जाते हैं । देश का पेट भरने वाले किसान के जीवन में बड़े बड़े निजी निगमों का हस्तक्षेप बढ़ाया जा रहा है , इसे हम अपनी संस्कृति पर हमला मानते हैं और इसलिए इस पर रोक की माग करते हैं । किसान से जुड़े समस्त कार्य एक ही व्यवहार पटल (खिड़की) से क्यों नहीं निपटाये जा सकते ।
(४) हमारी यह स्पष्ट समझदारी है कि भ्रष्टाचार के इस अहम सवाल के अलावा हमें बेरोजगारी , दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली , विकास की गलत अवधारणा से उत्पन्न विस्थापन के मसलों को भी समाज के व्यापक आन्दोलन का हिस्सा बनाना ही होगा ।
इन विकृतियों को समझते हुए भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के निम्नलिखित बिन्दु उभरते हैं :
(१) समाज के दलित , किसान , मजदूर , पिछड़े , आदिवासियों के कल्याण के लिए नरेगा तथा अन्य कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई हैं उसके पैसे भ्रष्ट अधिकारी , बिल्डर ,ठेकेदार एक गठबन्धन बना कर लूटते हैं । इस पर रोक सुनिश्चित होनी चाहिए ।
(२) भोंडी फिजूलखर्ची पर रोक लगाई जाए तथा आर्थिक विषमता को सीमित करने के उपाए किए जांए ।
(३) प्राकृतिक संसाधनों की लूट को रोकने के लिए आर्थिक नीतियों में परिवर्तन करने होंगे । मौजूदा उदार नीतियों से भ्रष्टाचार और लूट का सीधा सम्बन्ध है ।
(४) यह आन्दोलन व्यापक स्तर पर ’ घूस देंगे नहीं , घूस लेंगे नहीं ’ के साथ जन-जागरण चलायेगा ।
(५) अधिकांश अदालती मामलों के निपटारे के लिए समय की सीमा बाँधी जाए और झूठे मामलों की छानबीन की कोई कारगर प्रक्रिया तय हो जाए ताकि यह जलालत और घूसखोरी घट सके ।
(६) समाज और देश में वैमनस्य फैलाने वाली शक्तियों की सक्रियता की वजह से तमाम लोकहित के मुद्दे पीछे चले जाते हैं तथा इससे भ्रष्ट यथास्थितिवादी ताकतों को शक्ति मिल जाती है । इसलिए इस प्रश्न को हम गौण समझ कर नहीं चल सकते तथा इसके प्रति सतत सचेत रहेंगे ।
(७) प्रशासन के कई सुधारों के लिए संविधान या आर्थिक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन की जरूरत भी नहीं होती है ।फिर भी आम नागरिक की आजादी को दबाने के लिए और प्रशासन के भ्रष्ट तत्वों को कवच प्रदान करने के लिए भारतीय दण्ड प्रक्रिया में जिन धाराओं से मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल,राष्ट्रपति आदि की अनुमति लेनी पड़ती है उन्हें बदलना होगा । भ्रष्ट और अपराधी अधिकारियों पर मामला चले ही नहीं इसके लिए इन प्राविधानों का उपयोग होता है ।
इसी प्रकार विश्वविद्यालय जैसे सरकारी वित्त से चलने वाली संस्थाओं में भ्रष्टाचार के मामलों की समग्र निष्पक्ष जांच के लिए विजिटर (राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल ) ही जांच गठित कर सकता है । इस वजह से से आजादी के बाद सिर्फ दो बार ही विजिटोरियल जांच हो पाई है (मुदालियर आयोग तथा गजेन्द्र गड़कर आयोग )।इसके समाधान के लिए समाज और विश्वविद्यालय के बीच पुल का काम करने वाली ’कोर्ट’ को अधिकारसम्पन्न और लोकतांत्रिक बनाना होगा।
(८) उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था कायम रखने के लिए बनाई गई पुलिस द्वारा बिना विभाग का पैसा खर्च किए भ्रष्ट बिल्डरों , कॉलॉनाईजरों,निर्माण कम्पनियों से पुलिस विभाग के निर्माण करवाये जा रहे हैं । इस दुर्नीति के चलते यह भ्रष्ट अपने गलत काम सम्पन्न करने की छूट पा जा रहे हैं तथा उसका परिणाम अन्तत: प्रदेश की गरीब जनता पर उतारा जा रहा है ।
माननीय अण्णा , उत्तर प्रदेश में अभियान की शुरुआत वाराणसी से करने के लिए हम आपके आभारी हैं तथा आप से यह अपील करेंगे कि आन्दोलन को व्यापक आधार देने के लिए आप अन्य समन्वयों ,मोर्चों से सम्पर्क , संवाद और समन्वय स्थापित करने के लिए पहल करेंगे ।
अ-सरकारी = असरकारी भ्रष्टाचार/प्राईवेट-पब्लिक-पार्टनरशिप
Posted in भ्रष्टाचार, वाराणसी, विनोबा, Benaras, tagged कॉलोनाईजर, ठेकेदार, पटरी व्यवसाई, पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप, पुलिस, बिल्डर, भ्रष्टाचार, सूचना का अधिकार on अप्रैल 25, 2011| Leave a Comment »
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पुलिस के साथ ठेकेदारों , बिल्डरों और कॉलॉनाइजरों तथा अन्य न्यस्त स्वार्थी तत्वों के गठजोड़ की जानकारी भली प्रकार है । इस नए किस्म के अनैतिक – गैर – कानूनी गठजोड़ के स्वरूप पर गौर करने से मालूम पड़ता है कि इस कदाचार को उच्च प्रशासन का वरद हस्त प्राप्त है। आश्चर्य नहीं होगा यदि पता चले कि वरि्ष्ठ अधिकारी इस किस्म के भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित भी करते हों ।
वाराणसी जिले के विभिन्न थाना परिसर व पुलिस चौकियों में निर्माण कार्य ठेकेदारों , बिल्डरों , कॉलॉनाईजरों से कराए गए हैं । इन निर्माण कार्यों के लिए पुलिस विभाग ने एक भी पैसा खर्च नहीं किया है । उदारीकरण के दौर की ’प्राईवेट-पब्लिक पार्टनरशिप ’ की अधिकृत नीति के इस भोंड़े अनुसरण ने उसे दुर्नीति बना दिया है । इस नए तरीके में प्रत्यक्ष तौर पर व्यक्ति विशेष के बजाए महकमे को लाभ पहुंचाया जाता है । मुमकिन है कि न्यस्त स्वार्थों से काम कराने वाले दरोगा या उपाधीक्षक को अप्रत्यक्ष लाभ या प्रोत्साहन भी दिया जाता हो ।पडोस के जिले मिर्जापुर में तो देश के सबसे बदए बिल्डरों में एक ’जेपी एसोशिएट्स’ ने तो एक थाना ही बना कर भेंट दिया है।
भ्रष्टाचार की इस नई शैली में घूस को पकड़ना ज्यादा सरल है । नगद घूस की लेन-देन को ’रंगे हाथों’ पकड़ने के लिए आर्थिक अपराध शाखा का छापा मय नौसादर जैसे रसायनों तथा नोटों के नम्बर पहले से दर्ज कर मारा जाता है । कदाचार को पकड़ने के इस पारम्परिक तरीके में कई झोल हैं । छापा मारने वाले विभाग की भ्रष्टाचारियों से साँठ-गाँठ हो जाने की प्रबल संभावना रहती है । जैसे नकलची परीक्षार्थियों द्वारा पकडे जाने पर चिट उदरस्थ करने की तकनीक अपनाई जाती है वैसे ही घूस मिल रहे नोटों को निगलने के प्रकरण भी हो जाया करते हैं । अ-सरकारी ’देश प्रेमियों ’ द्वारा कराए गए निर्माण चिट की भाँति निगल जाना असंभव है ।
जिन भ्रष्ट तत्वों द्वारा नये किस्म के दुराचार के तहत निर्माण कराये जाते हैं उनको मिले लाभ भी अक्सर देखे जा सकते हैं । मजेदार बात यह है कि सूचना के अधिकार के तहत जब इन निर्माणों के बारे में पूछा गया तो पुलिस विभाग के लिए बिल्डरों द्वारा कराए गए निर्माण को पूर्णतया नकार दिया गया। इसके बदले बिल्डर के भव्य शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को नगर निगम के रिक्शा स्टैण्ड को निगलने की छूट मिल गई। शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के भूतल में वाहनों के लिए जो खाली जगह छोड़ी गई थी वहां भी दुकाने खुल गई हैं। फलस्वरूप वाहन लबे सड़क खड़े होकर जाम लगा रहे हैं । मनोविज्ञान की पाठ्य पुस्तकों के उदाहरण याद कीजिए – पति से हुए विवाद के कारण शिक्षिका पत्नी अपने स्कूल में बच्चे को छड़ी लगाती है और आखिर में बच्चा कुत्ते पर ढेला चला कर सबसे कमजोर पर गुस्सा उतारता है । वैसे ही इस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में आई गाड़ियों से उत्पन्न यातायात के व्यवधान का गुस्सा पुलिस सबसे कमजोर तबके – पटरी व्यवसाइयों पर लाठी भांज कर,तराजू-बटखरा जब्त कर निकालती है ।
विनोबा भावे के जुमले का प्रयोग करें तो उदारीकरण के दौर में सृजित भ्रष्टाचार की इस नई विधा का वर्णन करना हो तो कहना होगा – ’ अ-सरकारी तत्वों द्वारा कराया गया यह सरकारी काम इन चोरों की दृष्टि से असरकारी है ।’
अन्ना हजारे के समर्थन में जुट रहे भ्रष्टतम
Posted in भ्रष्टाचार, वाराणसी, tagged अन्ना हजारे, भ्रष्ट डॉक्टर, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचारी, शिक्षा माफिया, स्वयंसेवी संस्था on अप्रैल 5, 2011| 5 Comments »
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे जन लोकपाल विधेयक के समर्थन में आज से अनशन करेंगे । देश भर में ,कई शहरों-कस्बों में आज उनके समर्थन में दिन भर का प्रतीक अनशन होगा । मेरे शहर बनारस के भ्रष्टतम लोगों की जमात ’जागो बनारस’ के नाम पर लामबन्द है । स्कू्ली पढ़ाई के धन्धे से जुड़ा शहर का सबसे बदनाम व्यक्ति इस पहल का प्रमुख है । दीपक मधोक नगर पालिका में नौकरी करता था और साथ में ठेकेदारी।ठेकेदारी ज्यादा चलने लगी तो नौकरी छोड़ दी । पैसेवालों के लिए स्कूलों का जाल बिछा दिया । स्वाभाविक है कई जगह ऐतिहासिक महत्व के भूखण्डों पर कब्जा करके भी इनके स्कूल बने हैं । क्या दो तरह की तालीम भी रहेगी और देश भ्रष्टाचार विहीन हो जाएगा?
इसी प्रकार निजी अस्पतालों में गरीबों की मुफ़्त चिकित्सा के नाम पर बड़ा घोटाला इस शहर में हाल ही में हुआ था। गरीबी की रेखा के नीचे वाले मरीजों की चिकित्सा के लिए सरकार से जो आर्थिक मदद मिलती है उसे बिना किसी को भर्ती किए डकार जाने वाले डॉक्टरों के निजी अस्पताल! इनके समर्थन में तथा सरकार से नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउन्स पाने के बावजूद निजी प्रक्टिस करने वाले डॉक्टरों के हक में बोलने वाले इंडियन मेडिकल एसोशियेशन की इकाई भी जुट गई है। क्या आई.एम.ए ने इन अस्पतालों और चिकित्सकों के खिलाफ़ कोई प्रस्ताव पास किया है? क्या समाज के ये महत्वपूर्ण तबके भ्रष्टाचार किए बिना ऐसे अभियान में शामिल हो रहे हैं ?
अधिकांश स्वयंसेवी संस्थाये अपने कर्मचारियों को चेक से वेतन नहीं देतीं। कागज पर ज्यादा राशि होती है और अन्तर संस्था-संचालक की कमाई । ऐसी कुछ संस्थायें भी इस अभियान में शरीक हैं ।
तमाम कमियों के बावजूद संसदीय लोकतंत्र सर्वाधिक योग्य प्रणाली है। इसमें सुधार की गुंजाइश है लेकिन जिस भी रूप में यह लोकतंत्र है उसका संचालन राजनीति और दलीय राजनीति द्वारा ही होता है। जनता के मन में स्वच्छ-सकरात्मक राजनीति के प्रति अनास्था पैदा करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है ।
न्यूट्रॉन बम जैसा वाराणसी जिला प्रशासन
Posted in पटरी व्यवसाई, पटरी व्यवसायी, वाराणसी, Benaras, tagged काशी, पटरी व्यवसाई, पटरी व्यवसायी, बनारस, बसपा, बसपा कार्यप्रणाली, मौलिक अधिकार, वाराणसी on दिसम्बर 8, 2010| 1 Comment »
’ यह अब तक का सर्वाधिक समझदार ,सन्तुलित और नैतिक हथियार है । ’ सिर्फ़ जीवन हरण करते हुए तमाम निर्जीव इमारतों आदि को जस – का – तस बनाये रखने की विशिष्टता वाले न्यूट्रॉन बम के आविष्कारक सैमुएल कोहेन ने अपने ईजाद किए इस संहारक हथियार के बारे में यह कहा था। इस ६ दिसम्बर को उसके बेटे ने खबर दी कि उसकी कैन्सर से मृत्यु हो गई । युद्ध के बाद इमारतें जस की तस बनी रहेंगी तो निर्माण उद्योग को बढ़ावा कैसे मिलेगा ? संभवत: इसीलिए न्यूट्रॉन बम के प्रति बड़े मुल्कों में आकर्षण नहीं बना होगा । इराक के ’पुनर्निर्माण’ से अमेरिकी उपराष्ट्रपति डिक चेनी से जुड़ी कम्पनियां जुड़ी थीं , यह छिपा नहीं है ।
कल बनारस के शीतला घाट पर हुए ’ मध्यम श्रेणी के विस्फोट ’ के बाद से समस्त मीडिया का ध्यान काशी की कानून और न्याय – व्यवस्था पर है । यहां के नागरिकों और पर्यटकों के जान – माल की रक्षा में विफल जिला प्रशासन पर है ।
सैमुएल कोहेन की तरह बनारस के जिला प्रशासन ने भी एक ’समझदार ,सन्तुलित किन्तु संहारक हथियार ’ गत ढाई महीने से इस्तेमाल किया है । इस हथियार का प्रयोग बनारस के शहरी-जीवन के हाशिए पर मौजूद पटरी व्यवसाइयों पर हुआ है । इस माएने में जिला प्रशासन न्यूट्रॉन बम से भी एक दरजा ज्यादा ’समझदार’ है। वह जीवितों में भी भी गरीबों को छांट लेता है । ढाई महीने से आधा पेट खाकर लड़ रहे इन पटरी व्यवसाइयों के बीच से दो फल विक्रेता – रामकिशुन तथा दस्सी सोनकर रोजगार छीने जाने के आघात से अपनी जान गंवा चुके हैं । जिला प्रशासन की इस दमनात्मक कारगुजारी में ’रियल एस्टेट’ लॉबी तथा पुलिस बतौर गठबन्धन के शरीक है । इस गठबन्धन ने खुले रूप से एक घिनौना स्वरूप ग्रहण कर लिया है । लंका स्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को बनारस की सबसे चौड़ी पटरी और नगर निगम का रिक्शा स्टैण्ड उपहार स्वरूप भेंट दे दिया गया है , इसके बदले रियल एस्टेट मालिक द्वारा लंका थाना परिसर में कमरे बनवाना तथा पुताई करवाई गई है । इसी परिवार द्वारा बनाये गई बहुमंजली इमारतों में कई ’आदर्श घोटाले’ छुपे हैं ।
मुख्यधारा की मीडिया जिला प्रशासन रूपी न्यूट्रॉन बम को देखे-समझे यह भी सरल नहीं है ।
उत्तर प्रदेश में शासन कैसे चल रहा है इसका नमूना बनारस के पटरी व्यवसाइयों के ढाई महीने से चल रहे संघर्ष से समझा जा सकता है । मुख्यमन्त्री के कान-हाथ दो तीन नौकरशाह हैं । जो जिलाधिकारी इनसे तालमेल बैठा लेता है वह कोई भी अलोकतांत्रिक कदम उठा सकता है । वाराणसी नगर निगम के किसी भी अधिकारी द्वारा कोई भी आदेश न दिए जाने के बावजूद जिलाधिकारी के मौखिक आदेश का डंडा स्थानीय थानध्यक्ष के सिर पर है और थानाध्यक्ष के हाथ का डंडा पटरी व्यवसाइयों के सिर पर । गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटरी पर व्यवसाय को मौलिक अधिकार का दरजा दिए जाने को भी जिलाधिकारी नजरअंदाज करते आए हैं । वाराणसी के कमीशनर को विधानसभाध्यक्ष , सत्ताधारी दल के कॉडीनेटर,शासन द्वारा नामित सभासदों द्वारा लिखितरूप से कहने को स्थानीय प्रशासन नजरअंदाज करता आया है ।सत्ताधारी दल के इन नुमाइन्दों ने स्थानीय प्रशासन को यह भी बताना उचित समझ कि अधिकांश पटरी व्यवसाई दलित हैं । लोगों का कहना है कि इन महत्वपूर्ण सत्ता -पदों पर बैठे राजनैतिक कार्यकर्ताओं का महत्व गौण होने के पीछे स्वयं मुख्यमन्त्री का तौर तरीका है । माना जाता है कि नौकरशाह दल के नेताओं से ज्यादा चन्दा पहुंचाते हैं । लाजमी तौर पर दल के कार्यकर्ताओं का इन अफ़सरों से गौण महत्व होगा।
बनारस के पटरी व्यवसाइयों का महापौर के नाम पत्र
Posted in पटरी व्यवसाई, वाराणसी, tagged अंधेर नगरी, काशी, कौशलेन्द्र, खोमचे वाले, पटरी व्यवसायी, फेरीवाले, बनारस, भारतेन्दु, महापौर, मेयर, हरिश्चन्द्र on नवम्बर 7, 2010| 2 Comments »
पटरी व्यवसायी संगठन
वाराणसी
प्रति ,
श्री कौशलेन्द्र सिंह ,
महापौर – वाराणसी ।
विषय : पटरी व्यवसाइयों की बाबत ।
माननीय महापौर महोदय़ ,
फेरीवाले , पटरी ब्यवसाई , खोमचे वालों का नगर – जीवन में एक अहम योगदान रहा है । बनारस शहर के फेरीवाले ही १२५ वर्ष से पहले लिखे गये भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के प्रसिद्ध नाटक ’अन्धेर नगरी’ के पात्र हैं । इतने वर्षों बाद भी मानो अब भी वे अन्यायपूर्ण नीतियों के शिकार हैं । असंगठित क्षेत्र के इन व्यवसाइयों के हित में बनाई गई तमाम नीतियों तथा सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के बावजूद नगर प्रशासन में मौजूद निहित स्वार्थी तत्वों के कारण उन्हें अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है ।
उत्तर प्रदेश में इस श्रेणी के व्यवसाइयों से कई वर्षों तक तहबाजारी वसूली जाती थी । तदुपरान्त निजी ठेकेदारों को यह काम दिया गया परन्तु फिलहाल तहबाजारी समाप्त करने के साथ ही प्रदेश सरकार ने संसद द्वारा पारित ’नगरीय फेरी वालों हेतु राष्ट्रीय नीति’ को लागू करने की घोषणा की है । इस नीति के अनुरूप नगरवासी फेरीवालों , पटरी व्यवसाइयों को नगर निगम द्वारा लाइसेंस जारी किए जाने तथा पटरी व्यवसायी संगठन के प्रतिनिधियों को नगर निगम में प्रतिनिधित्व दिए जाने की बातें हैं ।
गत १९ अक्टूबर २०१० को मा. सर्वोच्च न्यायालय ने एक अत्यन्त महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि पटरी पर व्यवसाय करना मौलिक अधिकार है ।
इन नीतियों तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद नगर लंका क्षेत्र के पटरी व्यवसाइयों को गत २३ सितम्बर से जिलाधिकारी के निर्देश पर स्थानीय पुलिस व्यवसाय करने से रोक रही है तथा उत्पीडित कर रही है । यह उल्लेखनीय है कि नगर में सड़क के दोनों ओर सर्वाधिक चौड़ी बीस-बीस फुट की पटरी सिर्फ़ लंका स्थित मालवीय चौराहे से रविदास द्वार तक है । स्थान उपलब्ध होने के कारण ही रविदास गेट के निकट वर्षों तक नगर निगम का रिक्शा स्टैण्ड था । गत कुछ वर्षों में एक रियल – एस्टेट लॉबी द्वारा सड़क के दोनों ओर मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स तथा दुकानें ( बहुमंजली आवासीय भवन के पार्किंग स्पेस में ) खोल दी गई हैं । इन्हीं लोगों द्वारा महेन्द्रवी छात्रावास को खरीदने की बाबत भी सतर्कता आयोग द्वारा जांच कराई जा रही है ।
प्रदेश शासन द्वारा देश के एक बड़े उद्योगपति की फुटकर फल-सब्जी श्रृंखला को अनुमति न दिए जाने के निर्णय का भी हमें स्मरण है तथा इसे हम फुटकर व्यवसाय के हित में लिया कदम मानते हैं।
लंका पर विश्वविद्यालय के शिक्षक सड़क पर ही अपनी निजी गाड़ियां खड़ा कर बाजार करते हैं। आप से निवेदन है कि विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय से आप अनुरोध करें कि वे परिसरवासियों से गाड़ियां परिसर में रख कर पैदल लंका बाजार करने आने की अपील करें । कुछ समझदार शिक्षक ऐसा करते हैं । विश्वविद्यालय परिसर को टाउन एरिया तथा नोटिफाइड एरिया के रूप में न रख कर नगर निगम के विभिन्न वार्डों से जोड़ दिया गया इसलिए आपके द्वारा यह अनुरोध अति उपयुक्त होगा ।
आप से सविनय निवेदन है कि उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में आप वाराणसी के पटरी व्यवसाइयों द्वारा नगर निगम वाराणसी को रचनात्मक सहयोग सुनिश्चित कराने के लिए स्वयं हस्तक्षेप करेंगे ताकि नगर के इस अहम किन्तु कमजोर तबके के साथ न्याय हो सके ।
आप के सहयोग की अपेक्षा में , हम हैं :
( काशीनाथ ) (मोहम्मद भुट्टो) ( काली प्रसाद )
अध्यक्ष महामन्त्री उपाध्यक्ष
शहरी सभ्यता के हाशिए पर मौजूद पटरी वालों पर / सच्चिदानन्द सिन्हा
Posted in वाराणसी, tagged पटरी व्यवसाई, वाराणसे, सच्चिदानन्द सिन्हा on अक्टूबर 7, 2010| Leave a Comment »
बनारस के पटरी व्यवसाइयों के प्रति जिला प्रशासन ने एक धन-पशु (रियल एस्टेट में लिप्त ‘आज’ अखबार समूह वाले) की इच्छापूर्ति के लिए जो गैर जिम्मेदार रुख अपनाया है (देखें ) उसे समझने के लिए समतावादी चिन्तक सच्चिदानन्द सिन्हा के यह उद्धरण सहायक होंगे :
“यह मानसिकता हिटलर वाली है जो गरीब , विकलांग , असुंदर और अन्य तरह से अस्वस्तिकर लगने वाले लोगों और सबसे बढ़कर उन लोगों से जो जीवन के संघर्ष में पिछ्ड़ गए हैं छुटकारा पाना चाहती है ।अगर व्यवस्था अनुकूल हो तो यह मानसिकता गरीबों के लिए गैस चेम्बर का आयोजन करने से भी नहीं चूकेगी । बुनियादी बात यह है कि देश का अभिजात वर्ग आदमी आदमी के बीच के निहित , मानवीय सम्बन्ध से इनकार करता है और इस स्थिति पर पहुंच जाने पर किसी भी संवेदनशीलता की संभावना समाप्त हो जाती है ।”
“असल में न ‘मत्स्य न्याय’ जल में चलता है और न ‘जंगल का कानून’ जंगल में; ये दोनों मानव समाज में और खासकर वर्तमान औद्योगिक समाज में चलते हैं और मनुष्य अपने आपसी सम्बन्धों को जल या जंगलों पर आरोपित करता है । न तो जंगल के बड्क्षे पशु निरर्थक सिर्फ अपना सामर्थ्य बताने के लिए छोटे पशुओं को मारते हैं और न बडी मछलियां निरर्थक छोटी मछलियों को निगलती चलती हैं । मनुष्य एक मात्र जीव है जो अपनी महत्ता बतलाने के लिए अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों को अवर्णनीय यातनाओं में रखता है और उनकी हत्या करता है या करवाता है । अगर सिंह हिरण को मारता है तो इसलिए कि हिरण सिंह का भोजन है और इसका शिकार उसके जिन्दा रहने के लिए प्रथम शर्त है । लेकिन युद्धों में करोडों लोगों के मारे जाने का क्या औचित्य हो सकता है ? मनुष्य तो मनुष्य का खाद्य पदार्थ नहीं ? शहरी संस्कृति जिसे हम सभ्यता कहते हैं, का खास अर्थ है शांतिकाल में देश के नागरिकों के बीच वर्ग युद्ध जारी रखना और कुछ अंतराल पर दूसरे देशों के लोगों के साथ अंतर्राष्ट्रीय युद्ध जारी रखना , सिर्फ इसलिए ताकि देश की भीतर व्यक्तियों के खास समूहों की विशिष्टता बनी रहे,एवं राष्ट्रों के बीच खास राष्ट्रों की विशिष्टता,जो असल में राष्ट्र के भीतर के खास वर्गों के लोग और उनके नेताओं की विशिष्टता ही होती है । इसीलिए सभ्यता ने महानता का खिताब अपने समाज के सबसे हिंसक ,युद्धखोर और क्रूर व्यक्तियों को दिया गया है । सिकन्दर महान ,फ्रेडरिक महान,पीटर महान आदि । ये व्यक्ति सचमुच में शहरी सभ्यता के प्रतीक हैं ।”
बनारस के जिलाधिकारी को यदि कल्पना के स्तर पर बडा अफसर मान लें तो रघुवीर सहाय की यह कविता उनकी याद दिलायेगी –
इस विषय पर विचार का कोई प्रश्न नहीं
निर्णय का प्रश्न नहीं
वक्तव्य – अभी नहीं
फिर से समीक्षा का प्रश्न नहीं
प्रश्न से भागता गया
उत्तर देते हुए इस तरह बडा अफसर ।
– रघुवीर सहाय
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