सेला दर्रा कई पहाड़ियों के ऊपरी हिस्से में बना दर्रा है। ऊपर तक पहुंचने के पहले रूई के फाहों की तरह बर्फ यत्र-तत्र छितराई हुई थी। स्वातिजी ने ध्यान दिलाया। उन फुटकर फाहों को देख कर ही मैं उत्तेजित हो गया।लगा उनके क्लोज-अप लेने।हिमांचल और काश्मीर में दूर से हिमाच्छादित चोटियां देखी थीं।छू कर नहीं। दर्रे पर पहुंच कर मानो किसी और दुनिया में पहुंच गया। एक शाम पहले हुई बर्फबारी ने अद्भुत नजारा बना दिया था। उतना निर्मल-नीला आकाश भी न मालूम कब देखा होगा? धूप बर्फ को चमका रही थी। दो दिन बाद लौटते वक्त सड़क की कीचड़ से पता चला कि बर्फ को पिघला भी रही थी। सीमा सड़क संगठन द्वारा इस सड़क का दोहरीकरण का काम चल रहा है। सड़क बनाने के काम में स्थानीय महिलाओं की अच्छी भागीदारी है। सड़क बनाने में लोगों की जाने भी गई हैं। उन्हें सीमा सड़क संगठन के अधिकारी अंग्रेजी के सिवा कैसे याद कर सकते थे?मानों कह रहे हों ”हिज्जों की भूलों से हिचकिचाहट कैसी? अंग्रेजी लिखते-लिखते आएगी।” १३,७०० फुट की इस ऊंचाई पर चाय-पानी की एक दुकान है।
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Pratham Him-darshan |
Mein bhi tawang march 2013 mein gaya.. aisa suramya vaatavaran.. adbhut ttha;