पश्चिम के पर्यावरणवादी आन्दोलन में यूरोपवासियों की यह एक मुख्य चिन्ता है – ‘प्राकृतिक संसाधनों के सीमित भंडारों से हमारा दिन पर दिन बढ़ता उपभोग सीमित न होने पाए और अधिक दिन तक उपभोग के लिए हम बचे रहें ’। रासायनिक खाद के बिना पैदा किए गए अनाज और फलों की अच्छी खासी माँग इन अमीर देशों में पैदा हुई है – यह है उपभोक्तावाद का परिष्कार !
समतावादी नेता किशन पटनायक के अनुसार ,’उनकी उपभोक्तावाद और पर्यावरण की चिन्ताएं गरीब मुल्कों में बढ़ रही भूखमरी और गैरबराबरी का समाधान नहीं ढूंढती हैं ”
इंग्लैण्ड की आन्दोलनकारी मिरियम रोज़ से मैंने किशन पटनायक द्वारा व्यक्त इस चिन्ता की बाबत जानना चाहा।
मिरियम ने बताया कि युरोप के शुरुआती पर्यावरणवादियों को प्राकृतिक संसाधनों की सीमा का आभास था । १९७२ के लगभग जब यह मुद्दा चर्चा का विषय बनने लगा तब सरकारें और सत्ता प्रतिष्ठान काफ़ी सतर्क हो गए । सत्ता – प्रतिष्ठानों ने तब ही से ’ग्रीन-कैपि्टलिज़्म ’ जैसे जुमले उछालने शुरु किए । उपभोग और मुनाफ़ा ज्यों का त्यों बनाए रख कर कम्पनियों की ’सामाजिक जिम्मेदारी ’ की बात शुरु की गई । सत्ता प्रतिष्ठान मुख्य बहस को पचा लेने में काफ़ी हद तक कामयाब रहा । ग्रीन पीस , वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फ़न्ड और फ़्रेन्ड्स ऑफ़ अर्थ जैसी नामी और बड़ी संस्थायें सत्ता प्रतिष्ठानों की इस सोच के अनुरूप ढलती गयीं । तीसरी दुनिया के मुल्कों में चल रहे आन्दोलनों की सूचनाओं की बाबत अमीर देशों के नागरिकों के लिए मुख्य स्रोत यह बड़ी-बड़ी संस्थायें ही रही हैं । गरीब देशों में जिन स्वयंसेवी संस्थाओं को ये मदद देती हैं उनकी गतिविधियों के अलावा उन्हें कुछ दिखाई ही क्यों देगा ? गरीब देशों में पैसे बाँटने वाली स्वयंसेवी संस्थायें पक्षपातपूर्ण होती हैं तथा यह खुद को गरीब देशों के लोगों का प्रश्रयदाता मान कर चलती हैं ।
मिरियम बताती हैं कि बड़ी स्वयंसेवी संस्थायें ग्रीन कैपिटलिज़्म,कम्पनियों द्वारा कथित सामाजिक जिम्मेदारी के निर्वाह आदि के द्वारा वैश्वीकरण के मानवीय चेहरे के निर्माण में सहयोगी बन गई हैं । इसके बावजूद युरोपीय देशों में भी कई छोटे समूह वैश्वीकरण के विरुद्ध सक्रिय हैं। ’प्लेन स्टुपिड’ नामक एक समूह हवाई अड्डों के विस्तार के खिलाफ़ आन्दोलनरत है। इंग्लैण्ड की ग्रीन पार्टी सुश्री कैरोलिन लुकास को दल की पहली सांसद के रूप में चुनवा कर भेज सकी है।
आबादी के लिहाज से नन्हा-सा देश आईसलैण्ड गत वर्षों में बड़ी उथल-पुथल से गुजरा है। बॉक्साइट न पाए जाने के बावजूद अलुमिनियम बनाने के लिए बड़े बड़े कारखाने खोले गये।इन्हें चलाने के लिए बड़े बांध और बिजली घर बनाए गए।इनका विरोध हुआ।मिरियम भी ’सेव आइसलैण्ड’ आन्दोलन से जुड़कर वहां की जेल की यात्रा का लाभ ले चुकी हैं । इसके सकारात्मक परिणाम भी निकले हैं।उस देश में लेफ़्ट ग्रीन नामक दल काउदय हुआ है जो मौजूदा शासक गठबन्धन का हिस्सा है।
मिरियम की कल्पना है कि जन-आन्दोलनों का वैश्विक स्तर पर सम्पर्क,संवाद और सम्बन्ध बने।