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Archive for अप्रैल 7th, 2011

सत्तर के दशक उत्तरार्ध में तथा अस्सी के पूर्वार्ध में देश की हुक्मरान इन्दिरा गांधी या राजीव गांधी  जब भी शहर बनारस में आते कुछ दिन पहले से ही ’शांति भंग की आशंका’ में गिरफ़्तारियां शुरु हो जातीं । गिरफ़्तार लोग उनके लौटने के बाद छोड़ दिए जाते । पुलिस प्रशासन की तमाम मुस्तैदियों के बावजूद शहर के तरुणों की एक जमात इन मुस्तैदियों को धता बताते हुए इन हुक्मरानों को काला झण्डा दिखा ही देते थे । फिर पुलिस और कांग्रेसी गुण्डों द्वारा होती थी उनकी भर हिक पिटाई । कवि विपुल चक्रवर्ती की पंक्तियों को याद दिलाने वाली पिटाई –

“इस तरह पीटो कि
सिर से पांव तक कोड़े का दाग बना रहे
इस तरह पीटो कि
दाग काफ़ी दिनों तक जमा रहे.
इस तरह पीटो कि
तुम्हारी पिटाई का दौर खत्म होने पर
मैं धारीदार शेर की तरह लगूं ”
(‘तुम्हारी पिटाई का दौर खत्म होने पर’ शीर्षक विपुल चक्रवर्ती की कविता से)

सरदार सतनाम सिंह,चंचल मुखर्जी और दिलीप सिंह इन तरुणों में प्रमुख थे । तीनों समाजवादी युवजन । मेरी ऐसी पिटाई  विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा रखे गये भाड़े के सिपाहियों द्वारा एक बार हुई थी। मेरी साथ पकड़े गए पी.एस.ओ. के राजीव सिंह को मेरी पिटाई के दौरान ’सूरज की ओर देखना ’ था। सतनाम के घर पहुंचने वाले  समन – वारंट और कुर्की के आदेशों से तंग आकर उसके पिताने उसे सचमुच (कानूनी तरीके से) त्याज्य कर दिया । सतनाम कई दिनों के लिए अहोम चला गया । वहीं शादी की।पत्नी के साथ बनारस लौटा । कुछ वर्षों बाद पत्नी गुजर गईं ।

राजनारायण के मंत्र – ’मारेंगे नहीं- मानेंगे नहीं’ लोहिया के ’जालिम का कहना मत मानो,यही सिविल नाफ़रमानी है’ दर्शन को चरितार्थ करने वाला यह सिपाही पिछले  सात महीने से बनारस की जेल में १९८२ के ’अपराध’(पुलिस द्वारा लादे गये फर्जी मुकदमे) में बन्द है । राजनीति के तौर – तरीके भी इन २५-३० वर्षों में बदल गये हैं। संघर्ष का लोप और दलाली का प्रभुत्व हो गया है । तथाकथित ’जेल भरो आन्दोलन’ भी दिन भर के होते हैं।शाम तक पुलिस लाईन से रिहाई हो जाती है।अन्ना हजारे का अनशन अगर पांच दिन और चला तो उनके समर्थन में होने वाला जेल भरो इससे अलग न होगा। सरदार सतनाम की जमानत भी बनारस से सिर्फ़ इसलिए नहीं हो पा रही है कि ’सरकार बनाम सतनाम’ के १९८२ की फाईल प्रस्तुत करने में प्रशासन लिखित रूप से असमर्थता प्रकट कर चुका है।

सतनाम की व्यक्तिगत विडंबना देखिए । आज वह कांग्रेस में है । इंदिरा गांधी को काला झण्डा दिखाने के एक प्रकरण में उसके सिर से आधे केश(सतनाम सिख है) उखाड़ लेने वाला लम्पट सतीश चौबे उसकी पार्टी का जिलाध्यक्ष है ।

बिहार आन्दोलन के दौर की बाबा नागार्जुन की दो पंक्तियां बार-बार दिमाग में आ रही हैं । सतनाम पर पोस्ट का शीर्षक उसीकी पैरोडी है । कोई पाठक यदि अपनी टिप्पणी में उन पंक्तियों को न उद्धृत कर सका तब बताऊंगा।

 

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