राजघाट बसन्त स्कूल का संचालन कृष्णमूर्ति फाउन्डेशन करता है । काशी रेलवे स्टेशन से करीब स्थित इस परिसर की एक ओर वरुणा और दूसरी ओर गंगा हैं । दोनों का संगम भी इसके परिसर के एक छोर पर है। कृष्णमूर्ति फाउन्डेशन बनने के पहले इसका नाम किसी व्यक्ति से जुड़ा न था , फाउन्डेशन फॉर न्यू एजुकेशन था । परिसर में प्रवेश के लिए एक किलेनुमा दरवाजा है जिस पर संस्था का नाम तथा राजघाट फोर्ट , वाराणसी लिखा हुआ है। इस परिसर से जुड़ी पुरातत्व विभाग की खुदाई भी है। खुदाई में मिली चीजें सारनाथ के संग्रहालय में रखी हुई हैं । इस स्कूल परिसर के विशाल भूखण्ड को संस्था ने सेना से लीज़ पर लिया था । संस्था से एनी बेसेण्ट , जिद्दू कृष्णमूर्ति , अच्युत पटवर्धन और पुपुल जयकर जुड़ी थीं ।
मेरी स्कूली पढ़ाई इस अत्यन्त सुन्दर परिवेश वाली संस्था में ही हुई । यह स्कूल आवासीय है परन्तु अच्युतजी के आग्रह पर स्कूल के पड़ोस में स्थित सर्व सेवा संघ (सर्वोदय का संगठन) परिसर के कुछ बच्चों को रोज अपने घर से स्कूल आने-जाने तथ फीस की रियायत मिली हुई थी।
स्कूल परिसर में कई टीले, नाले और जंगलनुमा भूभाग थे जिन्हें हम खड्ड कहते थे । साहसिक अभियानों और मटरगश्ती के लिए खडड अत्यन्त उपयुक्त जगह थी । कृष्णमूर्ती के करीबी लोगों के जरिए कभी हमने भी सुना कि परिसर के किसी पेड़ के नीचे उन्होंने कहा था , ’This is where Lord used to sit.’ यह भी बताया गया था कि उनका आशय बुद्ध से था । इसी प्रकार स्कूल में मुझसे एक साल पीछे की क्लास में पढ़ने वाले विद्यार्थी ने बताया था कि उसके हृदय में कुछ गड़बड़ी थी। कृष्णमूर्ती उसे बुलवाते और स्पर्श देते । बनारस शहर में थियोसॉफिकल सोसाईटी से जुड़े रोहित मेहता के सुनने में भी कोई परेशानी थी जो कृष्णमूर्ती के सम्पर्क में सुधर गई थी। बहरहाल कभी भी इन चमत्कार वाली बातों को मैंने उनकी सार्वजनिक सभाओं में नहीं सुना । ’Gurudom” का खण्डन , वर्तमान में जीने की बात जँचती थी। फिर , आपातकाल के दौरान It is the intelligence that brings order not discipline कहने वाले इस आकर्षक शक्स ने हमारी कक्षा से बातचीत में स्पष्ट कहा,’Burn your boats to oppose the dictatorship.’
बहरहाल , बताना तो है आज एक दूसरा किस्सा जो हमें कृष्णमूर्ती सरीखी विशिष्ट अनुभूति से नहीं मिला। सामान्य ऐतिहासिक दस्तावेजों से हाल ही में पता चला है ।
इस परिसर स्थित एक छात्रावास से खेल के मैदान जाने के छोटे रास्ते में सुर्खी से बनी एक दीवाल से घिरी एक जगह में कुछ कब्र हैं । बचपन में इनसे आकर्षित होना बहुत स्वाभाविक था । आकर्षण इतना था कि पिछले साल मेरी एक बहन अमेरिका से आई (वह भी यहीं की पढ़ी है)तब भी मैं उसे वहां ले गया और इन तस्वीरों को खींचा ।
भारत की आजादी के लिए लड़ी गई पहली लड़ाई (१८५७ की गदर) के आसपास के वर्ष होने के कारण भी मेरे मन में इन कब्रों की बाबत उत्सुकता रही थी । बनारस से जुड़ी तीन घटनाओं की बाबत मुझे इस संधान के दौरान पता चला । यह भी पता चला कि राजघाट का किला अंग्रेज सरकार के आदेश से गदर के दौरान बना था ,फिर इस्तेमाल में नहीं रहा ।
पहली घटना का एक विवरण मैंने यहां किया है । १७ अगस्त १७८१ की इस घटना में अंग्रेज फौज के दो सौ सिपाही मार डाले गये थे । अन्य दोनों घटनाओं के बारे में मुझे पहली घटना के संधान के दौरान ही पता चला । अंग्रेज बनारस का सांस्कृतिक महत्व जानते थे किन्तु शंका और भयवश शहर से कुछ दूर ही सिकरौल में इन्होंने कचहरी,छावनी , जेल और अफ़सरों के निवास बनाये। इस इलाके में लाजमी तौर पर कई कब्रगाह भी हैं । सैन्य और पुलिस कब्रगाह अलग और शहरियों के अलग । बनारस के पुराने नागरिक कब्रगाह में राजघाट से जुड़ी एक बड़ी घटना में मृत श्रीमती जी.बी. स्मॉल की कब्र है । घटना का अंग्रेजों द्वारा इकट्ठा और प्रस्तुत विववरण इस प्रकार है –
१ मई १८५० की रात बारूद और और अन्य सैन्य सामग्री और रसद से लदी ३४ नावों ने राजघाट के पास लंगर डाला था । इनमें अन्य रसद के अलावा ३,००० बारूद के पीपे तथा ६,००० गोले थे । एक नाव के माल पर ढके ताड़ के पत्तों में आग लगा दी गई जिससे दो नावों पर रखे बारूद में विस्फोट हो गया । धमाके से बेडे की करीब तीस अन्य नावें , जिनमे माल लदा था डूब गईं । सर्वश्री गॉर्डन , टैटल , चार्ल्स , स्मॉल तथा शाहज़ादा मोहम्मद शुजा (दिल्ली का एक पूर्व राजकुमार ) के घर नष्ट कर दिए गये तथा उनके खंडहरों में मकानों के बासिन्दे खत्म हो गये । कहा जाता है कि इस घटना में ८१८ लोग मारे गये तथा ७१ लोग घायल हुए ।
इस गवेषणा के दौरान मुझे उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों के प्रारंभिक इतिहास की बाबत कुछ रोचक सामग्री मिली है। इस सामग्री में से कुछ प्रस्तुत करता रहूंगा । सामग्री अंग्रेजों द्वारा लिखी गई है यह ध्यान में रखकर उन्हें ग्रहण करना होगा। राजघाट स्थित कब्रगाह की सात कब्रों के विवरण भी मिले हैं परंतु राजघाट में हुई उपर्युक्त घटना से जुड़े शवों को सिकरौल स्थित ओल्ड सिविल सिमेट्री में ही दफ़नाया गया है ।
अगली बार : अंग्रेज के सिर पर रखा गया ३०० रुपये का ईनाम और उसके विजेता (गोपीगंज,भदोही)