Archive for जनवरी, 2011
विदेश – प्रेम का मारा प्याज (निर्यातों के पागलपन से पैदा हुआ प्याज-संकट):ले. सुनील
Posted in price rise, tagged onion, onion export, price rise, sunil on जनवरी 30, 2011| 1 Comment »
कविता / तुम तरुण हो या नहीं / श्याम बहादुर नम्र
Posted in hindi, hindi poem, kavita, literature, shyam bahadur namra, tagged कविता, तरुण, नम्र, बहादुर, श्याम, हिन्दी कविता on जनवरी 16, 2011| 1 Comment »
तुम तरुण हो या नहीं
तुम तरुण हो या नहीं यह संघर्ष बतायेगा ,
जनता के साथ हो या और कहीं यह संघर्ष बतायेगा ।
तुम संघर्ष में कितनी देर टिकते हो ,
सत्ता के हाथ कबतक नहीं बिकते हो ?
इससे ही फैसला होगा –
कि तुम तरुण हो या नहीं –
जनता के साथ हो या और कहीं ।
तरुणाई का रिश्ता उम्र से नहीं, हिम्मत से है,
आजादी के लिए बहाये गये खून की कीमत से है ,
जो न्याय-युद्ध में अधिक से अधिक बलिदान करेंगे,
आखिरी साँस तक संघर्ष में ठहरेंगे ,
वे सौ साल के बू्ढ़े हों या दस साल के बच्चे –
सब जवान हैं ।
और सौ से दस के बीच के वे तमाम लोग ,
जो अपने लक्ष्य से अनजान हैं ,
जिनका मांस नोच – नोच कर
खा रहे सत्ता के शोषक गिद्ध ,
फिर भी चुप सहते हैं, वो हैं वृद्ध ।
ऐसे वृद्धों का चूसा हुआ खून
सत्ता की ताकत बढ़ाता है ,
और सड़कों पर बहा युवा-लहू
रंग लाता है , हमें मुक्ति का रास्ता दिखाता है ।
इसलिए फैसला कर लो
कि तुम्हारा खून सत्ता के शोषकों के पीने के लिए है,
या आजादी की खुली हवा में,
नई पीढ़ी के जीने के लिए है ।
तुम्हारा यह फैसला बतायेगा
कि तुम वृद्ध हो या जवान हो,
चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक निकम्मे हो
या बर्बर अत्याचारों की जड़
उखाड़ देने वाले तूफान हो ।
इसलिए फैसले में देर मत करो,
चाहो तो तरुणाई का अमृत पी कर जीयो ,
या वृद्ध बन कर मरो ।
तुम तरुण हो या नहीं यह संघर्ष बतायेगा ,
जनता के साथ हो या और कहीं यह संघर्ष बतायेगा ।
तुम संघर्ष में कितनी देर टिकते हो ,
सत्ता के हाथ कबतक नहीं बिकते हो ?
इससे ही फैसला होगा –
कि तुम तरुण हो या नहीं –
जनता के साथ हो या और कहीं ।
– श्याम बहादुर नम्र
अंकुर फार्म , जमुड़ी , अनूपपुर , मप्र – ४८४२२४
namrajee@gmail.com
विनायक सेन : दो कवितायें : इकबाल अभिमन्यु , राजेन्द्र राजन
Posted in kavita, tagged abhimanyu, इकबाल अभिमन्यु, राजेन्द्र राजन, विनायक सेन, hindi poem, iqbal, rajendra rajan, sen, vinayak on जनवरी 5, 2011| 2 Comments »
कोहरा/ विनायक सेन
कल शाम से गहरा गया है कोहरा,
कमरे से बाहर निकलते ही गायब हो गया मेरा वजूद,
सिर्फ एक जोड़ी आँखें रह गयी अनिश्चितता को आंकती हुई,
अन्दर बाहर मेरे कोहरा ही कोहरा है,
एक सफ़ेद तिलिस्म है है मेरे और दुनिया के बीच,
लेकिन मेरे अन्दर का कोहरा कहीं गहरा है इस मौसमी धुंध से
मैं सड़क पर घुमते हुए नहीं देख पा रहा कोहरे के उस पार
मेरे-तुम्हारे इस देश का भविष्य
मेरा देश कुछ टुकड़े ज़मीन का नहीं हैं जिसे लेकर
अपार क्रोध से भर जाऊं मैं और कर डालूँ खून उन सभी आवाजों का
जो मेरी पोशाक पर धब्बे दिखाने के लिए उठी हैं,
मेरा देश उन करोड़ों लोगों से बना है,
जिनकी नियति मुझ से अलग नहीं है,
जो आज फुटपाथ पर चलते-फिरते रोबोट हैं,
जो आज धनाधिपतियों के हाथ गिरवी रखे जा चुके हैं,
जो आज सत्ता के गलियारों में कालीन बनकर बिछे हैं,
जो आज जात और धर्म के बक्सों में पैक तैयार माल है जिन्हें बाजार भाव में बेचकर
भाग्य विधाता कमाते हैं ‘पुण्य’ और ‘लक्ष्मी’,
घने कोहरे के पार कुछ नहीं दिखाई देता मुझे,
शायद देखना चाहता भी नहीं मैं,
वह भयानक घिनौना यंत्रणापूर्ण दृश्य जो कोहरे के उस पार है,
वहाँ हर एक आदमी-औरत एक ज़िंदा लाश है,
वहाँ हर एक सच प्रहसन है
वहाँ हर एक सच राष्ट्रद्रोह है,
वहाँ हर उठी उंगली काट कर बनी मालाओं से खेलते हैं
राहुल -बाबा-नुमा बाल-गोपाल-अंगुलिमाल,
और समूचा सत्ता-प्रतिसत्ता परिवार खिलखिला उठता है,
इस अद्भुत बाल-लीला पर,
इस घने कोहरे से सिहर उठा हूँ मैं,
और कंपकंपी मेरी हड्डियों तक जा पहुँची है,
आज सुबह मैंने आईने में चेहरा देखा
तो सामने सलाखों में आप नज़र आये
विनायक सेन……
– इकबाल अभिमन्यु
*तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन*
जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थे
तब वे गुलछर्रे उड़ा रहे थे
जब तुम मरीज की नब्ज टटोल रहे थे
वे तिजोरियां खोल रहे थे
जब तुम गरीब आदमी को ढांढस बंधा रहे थे
वे गरीबों को उजाड़ने की
नई योजनाएं बना रहे थे
जब तुम जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थे
वे संविधान में सेंध लगा रहे थे
वे देशभक्त हैं
क्योंकि वे व्यवस्था के हथियारों से लैस हैं
और तुम देशद्रोही करार दिए गए
जिन्होंने उन्नीस सौ चौरासी किया
और जिन्होंने उसे गुजरात में दोहराया
जिन्होंने भोपाल गैस कांड किया
और जो लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ाते रहे
उनका कुछ नहीं बिगड़ा
और तुम गुनहगार ठहरा दिए गए
लेकिन उदास मत हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
तुम हो हमारे आंग सान सू की
हमारे लिउ श्याओबो
तुम्हारी जय हो।
-राजेंद्र राजन