[ वरिष्ट कवि ज्ञानेन्द्रपति से कल सैमसुंग-साहित्य अकादमी पुरस्कार की बाबत चर्चा हुई तो उन्होंने कला संकाय के चौराहे पर यह कविता सुनाई तथा इसे छापने की इजाजत दी । कवि के प्रति आभार ।]
निकलने को है राजाज्ञा
(एक तारकशाली साहित्यिक संगोष्ठी में कविता की प्रामाणिकता के लिए एक अखिलदेशीय आयोग बनाने के ’आधिकारिक’ प्रस्ताव की खबर सुन कर )
अधिकारी – कवि
ही हो सकते अब अधिकारी कवि
निकलने को है राजाज्ञा – शाही फ़रमान
साथ कड़ी ताक़ीद
कि कोई भी अनधिकार चेष्टा
दण्डनीय ठहरायी गयी है अब आगे
यह हुआ बहुत कि जिनको
बमुश्किल जुटती दो वक्त की रोटी
वे भी कविता टाँकें
जिनकी न परम्परा में गति , न जो आधुनिकता के हमक़दम
जनेऊ की लपेटन के घट्टे के बग़ैर जिनके कान
और उन पर चढ़ी भी नहीं रे – बॉन के चश्मे की डंडी
उनकी आँखें खुली रहें , यही बहुत
नाहक ना वे ताके-झाँकें
देश-दशा को आँकें
बात यह कि जब तक मुफ़लिसी को गौरव से मढ़ा जायेगा
देश से समृद्धि की दिशा में न बढ़ा जायेगा
दरअस्ल वैसे खरबोले कवि
लोकतंत्र का बेज़ा इस्तेमाल कर रहे हैं
ख़राब कर रहे हैं देश की छवि
लोगों को बहका रहे हैं
असंतोष लहका रहे हैं
बल्कि देश की सुरक्षा को ख़तरे में डाल रहे हैं
सो, राजाज्ञा का -निषेधाज्ञा का-प्रारूप तय्यार हो रहा है
जुटी है वर्ल्ड बैंक के विशेषज्ञों की देख-रेख में
एक सक्षम समिति इस काम पर
काम तमाम तक
इसलिए भी , क्योंकि
इस क्षेत्र में पूँजी-निवेश की संभावनाएँ अपार हैं
अनुदान कहे जाने वाले ऋण की भी
अन्तरराष्ट्रीय धनकुबेरों से वार्ता जारी है
आख़िर तो यह
अनुकूलन के उनके बृहत्तर प्रोजेक्ट का हिस्सा है !
-ज्ञानेन्द्रपति

ज्ञानेन्द्रपति