चिराग़ की तरह पवित्र और जरूरी शब्दों को
अंधेरे घरों तक ले जाने के लिए
हम आततायियों से लड़ते रहे
थके-हारे होकर भी
और इस लड़त में
जब हमारी कामयाबी का रास्ता खुला
और वे शब्द
लोगों के घरों
और दिलो-दिमाग़ में जगह पा गये
तो आततायियों ने बदल दिया है अपना पैंतरा
अब वे हमारे ही शब्दों को
अपने दैत्याकार प्रचार-मुखों से
रोज – रोज
अपने पक्ष में दुहरा रहे हैं
मेरे देशवासियों ,
इसे समझो
शब्द वही हों तो भी
जरूरी नहीं कि अर्थ वही हों
फर्क करना सीखो
अपने भाइयों और आततायियों में
फर्क करना सीखो
उनके शब्द एक जैसे हों तो भी .
– राजेन्द्र राजन
१९९५.
क्या बात है ! पर हम कुछ सीखें तब तो . हमें तो बार-बार दुहराया और गुहराया हुआ झूठ ज्यादा लुभाने लगा है . सावधान करती ज़ुरूरी कविता .
[…] शब्द वही हो तो भी : राजेन्द्र राजन […]
Aap dil ko cho kar dimag jagate hai. Varsho bad aaj apko tv par sunkar acha laga aur umeed jagi.
वैसे आपने राजेन्द्र राजन को टेवि पर कब देखा? यह राजेन्द्र राजन जनसत्ता दिल्ली में हैं और बनारस के रहने वाले हैं ।