वेब ठिकानों का पर्यवेक्षण करने वाली संस्था ने कल (शुक्रवार,३० अक्टूबर २००९) को हिब्रू , हिन्दी , अरबी और कोरियन जैसी उन भाषाओं में इन्टरनेट पते बनाने की अनुमति दे दी है जिनकी वर्णमाला लैटिन वर्णमाला पर आधारित नहीं है । हफ़्ते भर की चर्चा करने के बाद इन्टरनेट कॉर्पोरेशन फॉर असाईन्ड नेम्स एन्ड नम्बर्स (ICANN) की दक्षिण कोरिया की राजधानी में हुई बोर्ड-बैठक में मतदान द्वारा यह फैसला लिया गया । यह उम्मीद की जा रही है कि इस फैसले से इन्टरनेट का आधार व्यापक होगा । उल्लेखनीय है कि इस मसले पर विगत एक साल से बहस और परीक्षण चल रहे थे ।
दुनिया के देशों की सरकारें तथा वेब ठिकाने बनाने वाले आगामी १६ नवम्बर से निश्चित पते निर्धारित करने के लिए आवेदन करना शुरु कर सकेंगे । ICANN के एक अधिकारी ने बताया कि अरबी , चीनी जैसी भाषाओं में URL रखने की सर्वाधिक मांग है । उम्मीद है कि आगामी साल की शुरुआत से इन भाषाओं में URL देखे जा सकेंगे ।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कमजोर तबकों के ,कम शिक्षित , अंग्रेजी न जानने वाले तबकों में तेजी के साथ इन्तरनेट का प्रसार बढ़ सकता है ।
आठवें दशक में जब जाल पतों की शुरुआत हुई तब से अंग्रेजी के २६ अक्षर (A से Z) तथा १० अंकों से ही पते बनते रहे हैं । कुछ तकनीकी उपायों से जाल पतों के शुरुआती अक्षरों में अन्य भाषाओं की लिपियों को शामिल किया जा सकता था किन्तु पतों के .com ,.in,.org जैसे प्रत्यय अथवा पुछल्लों में उक्त (अंग्रेजी के) ३७ अंक या अक्षर का प्रयोग संभव था । (स्रोत : AP)
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