गुरु नानक जयन्ती , कार्तिक पूर्णिमा और देवदीपावली । काशी की घाट दीप मालिकाओं से पट जाते हैं । सड़क की तरह गंगा जी में नावों और बजड़ों का भी जाम लग जाता है, उस दिन । नावों और बजड़ों का सट्टा पहले से हो जाता है । लिहाजा उस शाम के लिए ‘सामने घाट’ के बाद और अस्सी से पहले अब्दुल्लाहदा ने अपने मित्र पीताम्बर मिश्र का ऐन घाट पर स्थित ‘योग-मन्दिर’ चुना । पाकिस्तान से आई सांस्कृतिक टोली अभिभूत थी गंगा से । क्वेटा के शायर अली बाबा ताज ने अपने एक मित्र की लिखी कविता सुनाई – बामियान की बुद्ध प्रतिमा के तालिबान द्वारा ध्वंस की बाबत । फिर अपनी रचना में कहा – ‘ बात बढ़ तो सकती है,जुस्तजू से आगे भी ,बोलते रहेंगे हम,गुफ़्तगू से आगे भी’ उस रात्रि भोज के मेज़बान प्रोफेसर गजेन्द्र सिंह ( निदेशक , आयुर्विज्ञान संस्थान , का.हि.वि.वि.) का जन्मस्थान भी क्वेटा का था । विभाजन के ठीक पहले गजेन्द्रजी के पिता वहाँ के फौजी अस्पताल में डॉक्टर थे । रुख-ए-निलोफ़र ने एक बागी स्त्री-चेतना की रचना सुनाई । निलोफ़र स्कूली बच्चों में दृश्य कला के पाठ्यक्रम बनाने में लगी हैं और लाहौर में अध्यापन करती हैं । मेज़बानों की ओर से शायर शमीम शिवालवी और कबीर ने स्वागत में मिल्लत का आवाहन करते हुए नज़्म पढ़ी , डॉ. स्वाति ने रवीन्द्र संगीत गाया और रामिश ने जाल द बैण्ड का गीत- ‘वो लमहे’ सुनाया ।
‘हिन्द – पाक – सफ़र-ए-दोस्ती’ पिछले २० वर्षों से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए टोलियों की यात्राएं कराने में पहल करता आया है । संगठन के सतपाल ग्रोवर पाकिस्तानी टीम के साथ पधारे थे ।
सांस्कृतिक टोली की सबसे छोटी सदस्य ११ साल की फ़रीहा है जो हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीख रही है । फ़रीहा राग माधुरी में ,’मोरे मन भावे श्याम मुरारी’ सुनाती है तो स्थानीय अखबार का संवाद दाता उससे पूछता है कि वह यह पाकिस्तान में सुनाती है या नहीं ? उसको यह अन्दाज नहीं है कि वहीं सीख कर उसे यहाँ भी गा रही है ।
इस सांस्कृतिक टोली के अगुआ शायर अंजुम सलीमी कहते हैं, ‘मैं पलट आया था दीवार पर दस्तक देकर।अब सुना है,वहाँ दरवाजा निकल आया है’ । पेन्टर रेहाना क़ाज़मी कहती हैं , ‘ सियासत से हटकर देखें तो दोनों मुल्कों की आत्मा की आवाज मिलती है ।
बनारस में इस टोली की आगवानी डॉ. मुनीज़ा रफ़ीक खाँ और गांधी विद्या संस्थान के निदेशक प्रोफेसर दीपक मलिक ने की । टीम के सदस्यों का रात्रि विश्राम बनारस के अलग अलग परिवारों मे हुआ ।
यह पढ़कर बहुत खुशी हुई । ऐसे ही आदान प्रदान होते रहें। अधिकतर लोग प्रेम प्यार व सद्भाव से ही रहना चाहते हैं ।
घुघूती बासूती
Pehli martba suna aisee Sanskrutik Safar aur adan pradan ke bare mei aur Ganga ji ke Ghat aur Kashi se juda hua …
Yehi kaamna hai ki , Hindustan – Pakistan ke beech ,
Mitrata aur dostee ke bhaav , dinodin aur badhte jayen –
Amen !
ऐसे आयोजन हम कस्बाइयों के लिए आनन्ददायी अजूबे होते हैं । पढकर ही मन गुनगुना हो गया तो देखने/सुनने/हिस्सेदारी करने वालों को कितना आनन्द आया होगा ।
[…] गुरु पर्व पर काशी में पाक सांस्कृतिक ट… […]
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