दिल्ली
कच्चे रंगों में नफ़ीस
चित्रकारी की हुई , कागज की एक डिबिया
जिसमें नकली हीरे की अंगूठी
असली दामों के कैश्मेम्प में लिपटी हुई रखी है ।
लखनऊ
श्रृंगारदान में पड़ी
एक पुरानी खाली इत्र की शीशी
जिसमें अब महज उसकी कार्क पड़ी सड़ रही है ।
बनारस
बहुत पुराने तागे में बंधी एक ताबीज़ ,
जो एक तरफ़ से खोलकर
भांग रखने की डिबिया बना ली गयी है ।
इलाहाबाद
एक छूछी गंगाजली
जो दिन-भर दोस्तों के नाम पर
और रात में कला के नाम पर
उठायी जाती है ।
बस्ती
गांव के मेले में किसी
पनवाड़ी की दुकान का शीशा
जिस पर अब इतनी धूल जम गयी है
कि अब कोई भी अक्स दिखाई नहीं देता ।
( बस्ती सर्वेश्वर का जन्म स्थान है । )
सर्वेश्वर की प्रतिनिधि कविताओं से
meerut ko kyo bhul gae
मानविन्दर भिम्बरजी सर्वेश्वर ने मेरठ पर लिखा या नहीं , पता नहीं । आज विभूतिनारायण राय ने गद्य में लिखा है, जरूर पढ़िए ।
बहुत बड़िया ..
बाकी जगहों से बहुत वास्ता नहीं रहा, बनारस से रहा, उसका प्रतीक मस्त है। वैसे बस्ती – वो तो लगता है अपना ही मोहल्ला है।
सरल किंतु गहन बिम्ब.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सर्वेश्वर जी को इन पाँच जगहों का विशेष अध्ययन रहा होगा
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