एक सभा में
एक श्रोता के रूप में
बहुत-सी सभाओं ने लिया था मेरा समय
लेकिन पहली बार एक श्रोता के तौर पर
संयोग से मैं एक ऐसी सभा में मौजूद था
जिसके आयोजक एक हत्या में शामिल थे
और कार्यवाही से यह भी पता चलता था
कि सभा उस हत्या के समर्थन में बुलायी गयी थी
लेकिन वहाँ न कोई डर था न किसी बात की फिक्र
सभी की पूरी कार्यवाही के दौरान
ग़ज़ब की शालीनता थी
जी ज़रूर कहता था हर कोई हर किसी के नाम के बाद
न मंच पर बैठने को लेकर झगड़ा था न वक्ताओं में कोई मतभेद
सभापति सबको स्वीकार्य थे और आसन पर उनकी मौजूदगी से
सभा में एक धार्मिक या सांस्कृतिक रंग आ गया था
कई वक्ताओं के भाषण श्रोताओं को बड़े ओजस्वी लगे
कई वक्ताओं ने अपनी संस्कृति की महानता का बखान किया
सभापति ने जोर दिया सनातन मूल्यों की रक्षा पर
अंत में बेहद लोकतांत्रिक ढंग से यानी सर्वानुमति से
एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें मारे गए आदमी के दोषों का वर्णन था
और उससे सहानुभूति रखने वालों की निन्दा की गई थी
और उससे कोई संबंध न रखने की हिदायत दी गई थी
और उन्हें सबक सिखाने का आह्वान किया गया था
जब मैं लौट रहा था तो रास्ते में कुछ लोग
सभा की शालीनता और गरिमा की चर्चा कर रहे थे
– राजेन्द्र राजन.