[ पिछली एक पोस्ट में कम्युनिस्ट नेता नागभूषण पटनायक का एक बुजुर्ग महिला की गोद में सिर रखे हुए एक चित्र था । उस महिला के बारे में एक संक्षिप्त तार्रुफ इस पोस्ट में है । ]
माकपा से अलग हो कर अलग दल बनाने वालों में चारू मजुमदार, कानू सान्याल , नागभूषण पटनायक ,जंगल सांथाल, रवि दास , असीम चटर्जी आदि प्रमुख नेता थे । ‘ बुर्जुआ लोकतंत्र ‘ को नकारना और वर्ग शत्रु का ख़ात्मा प्रमुख वसूल थे जिनके आधार पर भाकपा(मा-ले) बना।
अत्यन्त मेधावी अधिवक्ता नागभूषण पटनायक का कार्यक्षेत्र दक्षिण ओडिशा तथा आन्ध्र का सीमावर्ती इलाका था ।तेलुगु , ओड़िया,अंग्रेजी पर वे समान रूप हक रखते थे। ‘ वर्ग शत्रु के खात्मे’ के लिए उन्हें फाँसी की सजा हुई।इस दौरान एक बार वे जेल से निकलने में भी सफल रहे। उस वक्त भी इस बुजुर्ग महिला की झोपड़ी में वे टिके थे।
आज लिखना है उस महिला की बाबत- जिसके बटुए में नागभूषण की तस्वीर रहती थी,जिन्हें जेल से दर्जनों खत नागभूषण ने लिखे और जिसकी गोद में ममतामयी शरण उन्हें मिलती थी।
१९३४ में गांधीजी की अस्पृश्यता विरोधी यात्रा चल रही थी। एक दिन कई सभाएं और लम्बा चलने के कारण गांधीजी ने दण्डमुकुन्दपुर नामक गाँव की यात्रा रद्द कर दी। उस गाँव में ,जहाँ कभी सवर्ण हिन्दू ने पदार्पण नहीं किया था – के लोगों ने भी महात्मा की इस चूक को माफ़ कर दिया था। लेकिन ३० वर्षीय मालती देवी चौधरी के गले यह नहीं उतरा और उसने गांधीजी से बेबाक तरीके से कहा,’ बापू , आपने यह ठीक नहीं किया।’
महात्मा ने माफ़ी माँगी और परास्त करने वाली एक मुस्कान दी।मालती ठण्डी पड़ीं लेकिन गांधी ने उस समय से इस महिला की मौजूदगी में हमेशा कहा – ” तूफ़ानी आ गयी”।
मालती देवी शान्तिनिकेतन के पहले बैच की छात्रा थीं और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के लिए कहानी और कविता की प्रेरणा भी बनी थीं। शन्तिनिकेतन में ही ग्रामीण अर्थशास्त्र का एक पाठ्यक्रम करने आए ओड़िशा के नवकृश्ण चौधरी से उनकी मित्रता हुई और १९२७ में विवाह हुआ। १९३० में अपनी जेठानी श्रीमती रमादेवी के साथ नमक सत्याग्रह में महिला वाहिनी के साथ भाग लेने वाली वे प्रमुख महिला थीं।गांधी-इर्विन समझौते के बाद वे जेल से रिहा हुईं।१९३५-३६ में सिर पर बिस्तर रख कर वे गांव गांव किसान मजदूरों को संगठित करने निकलतीं,गीत गा कर लोगों को जुटातीं।उत्कल कृषक संघ की वे संयुक्त सचिव रहीं।१९३५ में नवकृष्ण पहली बार विधायक चुने गए , तब १९३७ में बिहार-ओडिसा काश्तकारी कानून को रद्द कराने के लिए मालती देवी ने विशाल रैली आयोजित की- पूरा मन्त्रीमण्डल उनसे मिलने पहुँचा और कानून रद्द हुआ,जोतने वाले को फसल पर और मछली पकड़ने का हक मिला।जयप्रकाश नारायण ने कंग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शरीक होने का आवाहन किया तब ओडिशा में ‘कांग्रेस वर्कर्स कम्युनिस्ट लीग’ नाम से संगठन खड़ा कर चुकी थीं। ओडिशा के राजाओं द्वारा अत्याचार-शोषण के खिलाफ़ आन्दोलन का भी उन्होंने नेतृत्व किया।
वे संविधान सभा के लिए चुनी गयी , परन्तु साम्प्रदायिक दंगों के खिलाफ़ नोआखाली में गांधीजी के अभियान को उन्होंने ज्यादा महत्वपूर्ण माना।
१९३८ में अंग्रेजों के सिपाही एक नदी पार करना चाहते थे।फेरी लगाने वाले १२ वर्षीय बाजी राउत ने उन्हें पार ले जाने से इनकार कर दिया। अंग्रेजों की गोली खा कर वह शहीद हो गया लेकिन अपने गांव को सैनिकों के दमन से बचा लिया। मालती देवी ने अनुगुल में बाजी राउत के नाम से दलित और आदिवासी लड़के-लड़कियों के लिए एक छात्रावास बनाया। नवकृष्ण सात वर्ष ओड़िशा के मुख्यमन्त्री रहे तब भी मालतीदेवी अनुगुल के बाजी राउत छात्रावास में ही रहीं।
उनके द्वारा प्रशिक्षित कार्यकर्ता दक्षिण ओडिशा के आदिवासी इलाकों में काम करती थीं(आजादी के बाद)।इन लोगों ने बताया कि नक्सलवाद के दमन के नाम पर गांव-गांव में पुलिस कितना अत्याचार कर रही है।इसके बाद मालती देवी ने आजाद भारत का पहला नागरिक अधिकार संगठन स्थापित किया।
इस संगठन ने नागभूषण पटनायक की फाँसी के विरुद्ध भी अभियान चलाया। मालती देवी आपात काल में भी १९ महीने जेल में रहीं।
हाँलाकि रिहाई के बाद नागभूषण ईण्डियन पीपल्स फ्रण्ट के अध्यक्ष बने लेकिन उनके समूह के उत्तर भारतीय साथी उनके बारे में गहराई से जानकारी रखने में शायद रुचि नहीं रखते थे।
नागभूषण पटनायक जी से परिचय कराने के लिये धन्यवाद.
मुझे इनके नाम से अनिल बर्बे के नाटक थैंक्यू मि. ग्लाड की याद आ गयी जिसका नायक वीर भूषण पटनायक नाम का नक्सलवादी था. शायद अनिल बर्बे ने ये चरित्र नागभूषण पटनायक जी से प्रेरित होकर ही गड़ा था.
मैंने ठीक ही अनुमान लगाया था. हालांकि उनके बारे में विस्तार से आज जाना.
अच्छा विवरण दिया आपने, मैथिली जी आप बिल्कुल सही हैं,थैंक यू मिस्टर ग्लाड को लिखते समय नागभूषण पटनायक से ही प्रेरित होकर ही वीरभूषण पटनायक का चरित्र लिखा था,और अफ़लातून जी,आखिर वाली पंक्ति में जो आपने शायद लगा कर आई. पी एफ़ के बारे मे लिखा है, तो शायद आप जानते ही होंगे नागभूषन जी अंदरूनी तौर पर बीमार थे,और उस समय भी वो एक क्रांतिकारी की तरह तन कर भाषण दिया करते थे,उनकी किडनी जब खराब हो गईं थी तो सबने मिल कर ने उनके लिये पैसे इकट्ठे किये थे,”दस्ता” ने तो घूम घूम कर नाटक करके पैसे इकट्ठा किये थे,और जहाँ तक मुझे याद है वो आखिरी तक तो पार्टी के साथ ही थे,बिना जाने कोई भी बात आपको अनुमान के आधार पर नहीं ही कहनी चाहिये।
मालती देवी चौधरी के बारे में जानकारी देने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद अफलातून दा। इतने साल नागभूषण जी हम लोगों के प्रेरणास्रोत रहे, लेकिन उड़ीसा के साथ उनके संपर्कों के बारे में पार्वतीपुरम के दो-एक नाम भर पता रहे। मालती जी के बारे में अभी तक कुछ भी न जानने पर मुझे अफसोस है, लेकिन पता नहीं क्यों उनका कोई जिक्र भी हमारे दायरों में नहीं होता था। शायद इस गैर-जानकारी की एक वजह यह भी हो कि आंदोलन से मेरा जुड़ाव 1984 में बना था, जब नागभूषण जी जेल से रिहा होकर कुछ स्वस्थ हो चले थे और उनकी रिहाई के लिए चला महान लोकतांत्रिक-नागरिक अधिकारवादी आंदोलन अतीत की बात बन गया था।
@विमल , विमलजी मैंने सिर्फ़ इतना कहा कि आई.पी.एफ़. के साथी नागभूषण पटनायक की अत्यन्त करीबी इस महिला के बारे में अनभिज्ञ हैं। उन्होंने दल छोड़ा हो ,ऐसा तो मैंने नहीं कहा।
माफ़ कीजियेगा अफ़लातून जी, मैने ही गलत अर्थ लगा लिया था, आपकी बात भी सही हो सकती है।
बहुत सुंदर । आपकी नानीजी के बारे में जानकार अच्छा लगा।
काश, हम उस दौर को देख पाते …..
[…] किसकी गोद में नागभूषण ? […]
[…] किसकी गोद में नागभूषण ? […]
इस जानकारी के लिए धन्यवाद!
श्रीमती मालती चौधरी के बाबत जानकारी देने का शुक्रिया।