हृदय की सर्वाधिक उद्घाटक जाँच (एन्जियोग्राफी) के बाद मेरे हृदय रोग विशेषज्ञ ने यह साफ़ कर दिया था कि चूँकि मेरे हृदय की तीन स्नायु-तन्तु रोगग्रस्त हैं इसलिए उनका उपचार खुले हृदय की शल्य क्रिया ही है । शल्य चिकित्सकों का समूह मुझसे मिलने आया और बता गया कि तीन से पाँच फीसदी विफलता इस ऑपरेशन में रहती है।एन्जियोग्राफी की रपट के बारे में मेरी बहन ने गुजरात के एक चिकित्सक से भी मशविरा किया।आम तौर पर पर शल्य क्रिया से बचने की बात करने वाले इन हृदय रोग विशेज्ञ ने भी ऑपरेशन के पक्ष में राय दी।
विफलता की सम्भावना भले ही पाँच फीसदी ही हो फिर भी उसे तरजीह देना मुझे मूर्खता नहीं लगी।ऑपरेशन थियेटर में घुसने के पहले वर्डप्रेस के चिट्ठों का कूटशब्द अपनी डायरी में लिखा।इसके पूर्व हाथ-गोड़ तोड़ने का भी कोई तजुर्बा मुझे नहीं था।विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर द्वारा भाड़े के सुरक्षा सैनिकों से बुरी तरह मार खाने का एक तजुर्बा मेरे खाते में था।उस घटना में , मेरे साथ पकड़े गए दो छात्रों को ‘सूरज की तरफ देखने’ की सजा दी गयी थी।
गत पाँच महीनों से नियमित सुबह टहलना और नियन्त्रित भोजन के कारण कॉलेस्ट्रॉल २७० से१४२ तक आ गया था।मेरे कुटुम्बीजनों को उम्मीद हो चली थी कि ऑपरेशन की नौबत नहीं आएगी।
बहरहाल , २२ फरवरी को मुझे भरती कर लिया गया,२६ तक जाँचें हुईं। २६ फरवरी को डॉ. शान्तनु पाण्डे ने दो ऑपरेशन किए-हृदय बाई-पास के।मेरे अलावा शहडोल के कुशवाहाजी का।कुशवाहाजी २९ फरवरी को सरकारी सेवा से रिटायर कर गए।
हृदय शल्य के गहन चिकित्सा कक्ष में डॉ. उद्गीत धीर ने मुझे बताया कि ऑपरेशन थियेटर से जुड़े एक कमरे में मेरे एन्जियोग्राम के आधार पर मेरे हृदय पर चर्चा हुई और शल्य-रणनीति बनाई गई।ऑपरेशन थियेटर से बेहोशी की अवस्था में ही गहन चिकित्सा में लाया गया । होश आते ही मेरी पत्नी को मेरे करीब लाया गया।उनकी मौजूदगी से मुझे लगा कि ऑपरेशन सफल हो गया है।
इस बड़ी शल्य क्रिया से पूर्व मेरे लिए ६ बोतल खून-दान हुआ- मेरी बेटी प्योली,भान्जी चारुस्मिता,विनोद सिंह व सुजीत(मेडिकल छात्र)डॉ. सन्दीप पण्डे की ‘आशा’ संस्था से जुड़े़ रजनीश व समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय सचिव चंचल मुखर्जी ने एक एक बोतल खून दिया।
स्वाति ने उन तमाम मित्रों की सूची बना कर रखी थी जिन्होंने फोन पर मेरी खबर ली।
हृदय शल्य क्रिया के गहन चिकित्सा कक्ष में पाँच दिन रखा गया।अन्य मरीजों की नाजुक हालत का प्रभाव मुझ पर भी पड़ा और एक रात मेरी रक्त चाप भी धड़धड़ा कर गिरा। ई सी जी दरसाने वाले मॉनीटर में गिरा रक्तचाप मैंने भी देखा।
कुछ घण्टे ऐसे भी गुजरे जब असम आन्दोलन के दौरान हमारे साथियों के लिए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखी कविता की पंक्तियाँ याद आईं-
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाश पड़ी हो,तब तुम क्या गा सकती हो?
‘मृत्यु की घोषणा’ और घोषणा में विलम्ब का अनुभव भी प्राप्त हुआ।
गहन चिकित्सा कक्ष में मेरे साथ दो किताबें थीं। महेश्वर का कविता संग्रह- ‘आदमी को निर्णायक होना चाहिए’ और किशन पटनायक की ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’।दोनों ही किताबों में ड्यूटीरत नर्सों ने बहुत रुचि ली।महेश्वर की ज्यादातर कविताओं का परिवेश(इस संग्रह का) और नर्सों की नौकरी का परिवेश एक है इसलिए उन्हें पढ़ने में विशेष रुचि थी।’चीफऔर लेनिन’ नामक कविता पृष्ट बत्तीस पर है-यह एक नर्स दूसरे को बता देतीं,फिर पूरा रस लिया जाता।
किशनजी की किताब से ‘मृत्यु पर बयान’ और गांधी और स्त्री’ शीर्षक के निबन्ध सर्वाधिक प्रिय थे।
इस बड़ी शल्य क्रिया में सफलता की शुभेच्छा पाना जीते जी श्रद्धान्जलि प्राप्त करने जैसा था।उन सब साथियों के प्रति मैं भी एक संक्षिप्त मौन(खड़े रहकर) प्रकट कर रहा हूँ।
चलिए सब सकुशल संपन्न हो गया. बधाई. वैसे श्रद्धांजले जीते जी भी दी जा सकती है. किसी जीवित के प्रति श्रद्धावनत होना बुरी बात नहीं है.
aisi sthitiyo.n se safalta purvak bahar ana batata hai ki aapke sath logo ki sachchi duae.n hai.n aur ishwar aapko abhi is yogya samajhta hai ki aap uski shrishti me.n achchha yogdaan kar sake.nge.
इतनी बड़ी बात को कितनी सरलता से आपने यहां लिख दिया है। बस आप स्वस्थ रहे यही कामना है।
good to have you back hail and hearty again wishing you a faster recovery
मुझे तो लगता है कि मौत के पास जाने का अनुभव निराला होता है। आप ये अनुभव लेकर लौटे हैं, बधाई हो। और भी गति से, और भी पैनेपन से व्यवस्था की धज्जियां उठाइए, यही कामना है। स्वास्थ्य को लेकर तो आप अब खुद ही पहले से ज्यादा चौकन्ने हो गए होंगे। फिर भी अपना ख्याल रखिएगा क्योंकि आप जैसी जिजीविसा, बेबाकीपन, साफगोई और लड़ाकू भाव वाले लोगों की हमारे जमाने में बहुत कमी है।
आपकी कहानी ने मुझे भी मेरे पुराने दिनों 40 दिन अस्पताल के जिसमें 7 दिन आईसीसीयू की याद ताजा दिला दिया. विकट अनुभव रहता है यह भी. महसूस कर सकता हूं कि किन अनुभवों से गुजरे हैं आप.
सबकुछ जल्द ही बहुत सामान्य होगा (मुझे सामान्य होने में कोई छः माह से ऊपर लगे थे). अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक बार पुनः शुभकामनाएं.
आप दीर्धायु हों। कल ही उन्मुक्त जी ने आप का उल्लेख किया था। उसी के बाद मैं आप के चिट्ठे पर पहुँच पाया हूँ। शल्य चिकित्सा शब्द ही दहला देता है। फिर दिल की हो तो बात ही क्या है? आप बहुत हिम्मती हैं। दो सप्ताह बाद ब्लॉग पर आ गए। इस से भी बड़ा अचम्भा यह है कि परिजनों ने आने दिया।
Bahut achcha laga jaankar ki aapka operation safaltapoorvak sampadit ho gaya.
kisi kavi ne kaha hai
jo rachta hai
vahi bachta hai
……
aap bache hain
ki khub-khub rachen.
swasth rahen sanand rahen.
अब हेल्दिये रहल जाव, प्रभु..
आप के स्वास्थय की मगंल कामना करते हैं , अपना ख्याल रखिए
बहुत अच्छा लगा आपको यहां देखकर.
आपके स्वास्थ्यालाभ की प्रार्थना करते हुए तसल्ली भी हुई , सुनकर कि, आपकी शल्यक्रिया
संतोष कारक रही — ध्यान रखियेगा और डाक्टर की बात पर अमल करिएगा —
आपके स्वास्थ की कुशल जानकर अच्छा लगा – पहले आपकी साईट्स पर डाक्साब के लेख भी अच्छे मिले रहे – पूछना था कि क्या आपके पास आध्यात्म त्रिपाठी जी की कविता “ढेले के नीचे दबे हुए पतझड़ के पीले शुष्क पात” तो नहीं होगी – होली की शुभ कामनाएं – मनीष
[…] वे पाँच दिन […]
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