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Archive for मार्च 11th, 2008

वे पाँच दिन

हृदय की सर्वाधिक उद्घाटक जाँच (एन्जियोग्राफी) के बाद मेरे हृदय रोग विशेषज्ञ ने यह साफ़ कर दिया था कि चूँकि मेरे हृदय की तीन स्नायु-तन्तु रोगग्रस्त हैं इसलिए उनका उपचार खुले हृदय की शल्य क्रिया ही है । शल्य चिकित्सकों का समूह मुझसे मिलने आया और बता गया कि तीन से पाँच फीसदी विफलता इस ऑपरेशन में रहती है।एन्जियोग्राफी की रपट के बारे में मेरी बहन ने गुजरात के एक चिकित्सक से भी मशविरा किया।आम तौर पर पर शल्य क्रिया से बचने की बात करने वाले इन हृदय रोग विशेज्ञ ने भी ऑपरेशन के पक्ष में राय दी।

    विफलता की सम्भावना भले ही पाँच फीसदी ही हो फिर भी उसे तरजीह देना मुझे मूर्खता नहीं लगी।ऑपरेशन थियेटर में घुसने के पहले वर्डप्रेस के चिट्ठों का कूटशब्द अपनी डायरी में लिखा।इसके पूर्व हाथ-गोड़ तोड़ने का भी कोई तजुर्बा मुझे नहीं था।विश्वविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर द्वारा भाड़े के सुरक्षा सैनिकों से बुरी तरह मार खाने का एक तजुर्बा मेरे खाते में था।उस घटना में , मेरे साथ पकड़े गए दो छात्रों को ‘सूरज की तरफ देखने’ की सजा दी गयी थी।

    गत पाँच महीनों से नियमित सुबह टहलना और नियन्त्रित भोजन के कारण कॉलेस्ट्रॉल २७० से१४२ तक आ गया था।मेरे कुटुम्बीजनों को उम्मीद हो चली थी कि ऑपरेशन की नौबत नहीं आएगी।

    बहरहाल , २२ फरवरी को मुझे भरती कर लिया गया,२६ तक जाँचें हुईं। २६ फरवरी को डॉ. शान्तनु पाण्डे ने दो ऑपरेशन किए-हृदय बाई-पास के।मेरे अलावा शहडोल के कुशवाहाजी का।कुशवाहाजी २९ फरवरी को सरकारी सेवा से रिटायर कर गए।

    हृदय शल्य के गहन चिकित्सा कक्ष में डॉ. उद्गीत धीर ने मुझे बताया कि ऑपरेशन थियेटर से जुड़े एक कमरे में मेरे एन्जियोग्राम के आधार पर मेरे हृदय पर चर्चा हुई और शल्य-रणनीति बनाई गई।ऑपरेशन थियेटर से बेहोशी की अवस्था में ही गहन चिकित्सा में लाया गया । होश आते ही मेरी पत्नी को मेरे करीब लाया गया।उनकी मौजूदगी से मुझे लगा कि ऑपरेशन सफल हो गया है।

    इस बड़ी शल्य क्रिया से पूर्व मेरे लिए ६ बोतल खून-दान हुआ- मेरी बेटी प्योली,भान्जी चारुस्मिता,विनोद सिंह व सुजीत(मेडिकल छात्र)डॉ. सन्दीप पण्डे की ‘आशा’ संस्था से जुड़े़ रजनीश व समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय सचिव चंचल मुखर्जी ने एक एक बोतल खून दिया।

  स्वाति ने उन तमाम मित्रों की सूची बना कर रखी थी जिन्होंने फोन पर मेरी खबर ली।

    हृदय शल्य क्रिया के गहन चिकित्सा कक्ष में पाँच दिन रखा गया।अन्य मरीजों की नाजुक हालत का प्रभाव मुझ पर भी पड़ा और एक रात मेरी रक्त चाप भी धड़धड़ा कर गिरा। ई सी जी दरसाने वाले मॉनीटर में गिरा रक्तचाप मैंने भी देखा।

  कुछ घण्टे ऐसे भी गुजरे जब असम आन्दोलन के दौरान हमारे साथियों के लिए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखी कविता की पंक्तियाँ याद आईं-

यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाश पड़ी हो,तब तुम क्या गा सकती हो?

‘मृत्यु की घोषणा’ और घोषणा में विलम्ब का अनुभव भी प्राप्त हुआ।

   गहन चिकित्सा कक्ष में मेरे साथ दो किताबें थीं। महेश्वर का कविता संग्रह- ‘आदमी को निर्णायक होना चाहिए’ और किशन पटनायक की ‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’।दोनों ही किताबों में ड्यूटीरत नर्सों ने बहुत रुचि ली।महेश्वर की ज्यादातर कविताओं का परिवेश(इस संग्रह का) और नर्सों की नौकरी का परिवेश एक है इसलिए उन्हें पढ़ने में विशेष रुचि थी।’चीफऔर लेनिन’ नामक कविता पृष्ट बत्तीस पर है-यह एक नर्स दूसरे को बता देतीं,फिर पूरा रस लिया जाता।

किशनजी की किताब से ‘मृत्यु पर बयान’ और गांधी और स्त्री’ शीर्षक के निबन्ध सर्वाधिक प्रिय थे।

    इस बड़ी शल्य क्रिया में सफलता की शुभेच्छा पाना जीते जी श्रद्धान्जलि प्राप्त करने जैसा था।उन सब साथियों के प्रति मैं भी एक संक्षिप्त मौन(खड़े रहकर) प्रकट कर रहा हूँ।

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