
शब्दों से ढका हुआ है सब कुछ
मैंने कहा फूल
एक शब्द ने फूल को छिपा लिया
मैंने कहा पहाड़
एक शब्द आ खड़ा हुआ पहाड़ के आगे
मैंने कहा नदी
एक शब्द ने ढक लिया नदी को
शब्दों से अबाधित नहीं है कुछ भी
पता नहीं कब से
शब्दों से ढका हुआ है सब कुछ
ओह , पता नहीं कब से
मैं खोज रहा हूँ
शब्दों से निरावृत सौन्दर्य ।
– राजेन्द्र राजन
बस यही एक अच्छी बात है
मेरे मन में
नफरत और गुस्से की आग
कुंठाओं के किस्से
और ईर्ष्या का नंगा नाच है
मेरे मन में
अंधी ,महत्त्वाकांक्षाएं
और दुष्ट कल्पनाएं हैं
मेरे मन में
बहुत-से पाप
और भयानक वासना है
ईश्वर की कृपा से
बस यही एक अच्छी बात है
कि यह सब मेरी सामर्थ्य से परे है ।
– राजेन्द्र राजन
मेरा अंधकार
थोड़ी सी रोशनी जो मिली थी मुझे
शब्दों में बिखेर दिया मैंने उसे
मगर शब्दों से परे था मेरा अंधकार
मैं कैसे बताता कि कितना घना था मेरा अंधकार
जो कि मुझसे ही बना था
वह मेरे शब्दों से परे था
बहुत सी अंधेरी जगहों में मैं गया
पर खुद के अंधकार में
जाने की हिम्मत मुझमें नहीं थी
शायद यही था मेरा अंधकार
जो मेरे शब्दों से परे था
शब्दों से इतना परे
कुछ भी नहीं था मेरे लिए
जितना कि मेरा अंधकार ।
राजेन्द्र राजन

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