इस मामले में (रिपोर्टिंग) अपने देश में कमी है तथा परिस्थिति का अध्ययन कर उसका भरोसेमन्द वर्णन देने में यह कमी ज्यादा है। कुछ मासिक पत्र इस कमी को पूरा कर पाए हैं । ‘ प्रस्थान ‘ मासिक तथा हाल ही में मजदूर सेवकों द्वारा शुरु किए गए ‘ सर्वोदय ‘ में विविध आर्थिक विषयों पर अध्ययनपूर्ण एवं अनुभवपूर्ण लेख आ रहे हैं । दैनिकों में इस बाबत मानो अकाल ही रहता है । इस सन्दर्भ में महाराष्ट्र के अखबारों से हम सीख सकते हैं । ‘ केसरी ‘ की तिलक महाराज के समय की अथवा केलकर के समय की फाईल उठाइए, उनमें आपको अनेक विषयों पर ढेरों अध्ययनपूर्ण लेख मिल जाएँगे । अध्ययन और स्वाध्याय की जितनी आवश्यकता आज है , उतनी पहले कभी न थी । हमारी राजनीति और अर्थशास्त्र व्यापक हो गए हैं ,गत पन्द्रह वर्षों में हमने यह देखना शुरु किया कि हिन्दुस्तान देहातों में बसा है , किसानों और मजदूरों में बसा है । फिर भी अखबार तो शहरों से ही छपते हैं । संवाददाता गाँव तब ही जाते हैं जब किसी नेता का का वहाँ दौरा लगा होता है और उनके भाषण की रपट बनानी होती है । गाँवों के सवाल , किसानों की आर्थिक स्थिति , उनकी बदहालियों का उनके बीच रहकर अध्ययन करने वाले बहुत कम हैं । तिलक महाराज से सुना है कि पहले पाँच वर्ष तक किसी आर्थिक विषय को चुनकर उसका अध्ययन करने की शर्त वे अपने मातहतों पर लगाते हैं ,फिर उनसे लेख लिखवा कर परीक्षा लेते थे ।
सी . पी. स्कॉट जिनका उल्लेख पहले हुआ है , तथा तफ़सील से जिनका जिक्र होगा , उनके अखबार ‘ मेंचेस्टर गार्डियन ‘ के विषय में कहा जाता था कि वह अखबार एक विश्वविद्यालय था । ऑक्स्फोर्ड और कैम्ब्रिज से निकले अव्वल स्नातक उस पत्र से जुड़ते परन्तु उनकी सही तालीम मि. स्कॉट के साथ शुरु होती । एक बार अपने बेटे लॉरेन्स को लेख लिखने वाले सहायक का पद लेने के आग्रह करते हुए उन्होंने एक पत्र लिखा । अखबार में काम करने के इच्छुक हर व्यक्ति को इसे पढ़ना चाहिए तथा उसमें बतायी बातों पर अमल करना चाहिए ।
” अब तक चित्रकला और नाटक में तुम्हारा मन लगता था । सामाजिक प्रश्न तुम्हें बहुत आकर्षित नहीं कर पाते हैं , परन्तु अपने पसन्दीदा विषयों पर तन – मन से काम किया था वैसे ही अब इन विषयों पर तुम्हें जुटना होगा । मैंने अपना जीवन मानव-सेवा की परम निष्ठा के साथ आरम्भ किया था तथा उसकी वजह से मैं आगे निभ पाया हूँ । जीवन के सभी विषयों पर मेरी वृत्ति इसी रंग में रंगी है । तुम्हारा रास्ता शायद उलटा हो ।मैंने समाज सेवा की सामान्य निष्ठा से काम शुरु किया था , शायद तुम विशिष्ट प्रश्न से आरम्भ कर तब इस निष्ठा पर आओगे । इसका परिणाम भी सुन्दर होना चाहिए । ……………तुम्हें श्रमजीवियों के प्रश्न को हाथ में लेना होगा ।इसके लिए अच्छा खासा परिश्रम करना होगा ,पढ़ना होगा,गरीब कैसे रहते हैं ,खाते – पीते हैं,कौन सी बदहालियाँ झेलते हैं इसका निजी तजुर्बा प्राप्त करना होगा तब तुम्हें इस विषय में मदद मिलेगी। जब श्रमजीवियों की हड़ताल सर पर हो तब उनके नेताओं से खूब मेल जोल बढ़ाना होगा। इस विषय का अध्ययन मि. एण्ड मिसेज़ वेब के मजदूर संघों के इतिहास सम्बन्धी पुस्तक तथा सहकारिता पर लिखी किसी किताब से करना होगा । ”
इस भाषण के अन्य भाग :पत्रकारीय लेखन किस हद तक साहित्य
पत्रकारिता : दुधारी तलवार : महादेव देसाई
पत्रकारिता (३) : खबरों की शुद्धता , ले. महादेव देसाई
पत्रकारिता (४) : ” क्या गांधीजी को बिल्लियाँ पसन्द हैं ? ”
पत्रकारिता (५) :ले. महादेव देसाई : ‘ उस नर्तकी से विवाह हेतु ५०० लोग तैयार ‘
पत्रकारिता (६) : हक़ीक़त भी अपमानजनक हो, तब ? , ले. महादेव देसाई
समाचारपत्रों में गन्दगी : ले. महादेव देसाई
क्या पाठक का लाभ अखबारों की चिन्ता है ?
समाचार : व्यापक दृष्टि में , ले. महादेव देसाई
रिपोर्टिंग : ले. महादेव देसाई
तिलक महाराज का ‘ केसरी ‘ और मैंचेस्टर गार्डियन : ले. महादेव देसाई
विशिष्ट विषयों पर लेखन : ले. महादेव देसाई
अखबारों में विज्ञापन , सिनेमा : ले. महादेव देसाई
अखबारों में सुरुचिपोषक तत्त्व : ले. महादेव देसाई
अखबारों के सूत्रधार : सम्पादक , ले. महादेव देसाई
कुछ प्रसिद्ध विदेशी पत्रकार (१९३८) : महादेव देसाई
[ जारी ]
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