पिछले हिस्से से आगे : समाचारों की बात छोड़ कुछ आगे बढ़ा जाए । हांलाकि भाषणों और मुलाकातों के विवरण व्यापक दृष्टि से समाचारों में ही आते हैं । इस सन्दर्भ में हम शैशव में हैं, यह कहा जा सकता है । सिर्फ एक पत्र संतोषजनक है । मद्रास का ‘हिन्दू’ । उसके पास कस्बे – कस्बे और गाँव – गाँव में संवाददाता हैं और उसके संवाददाता संकेतलिपि में सिद्धहस्त हैं । बंगाल का ‘ अमृतबजार पत्रिका ‘ अब कुछ हद तक ‘ हिन्दू ‘ से टक्कर लेने की कोशिश में है । इस बाबत अन्य कोई समाचार पत्र सन्तोषजनक स्थिति में नहीं है । गुजराती अखबारों की भी वही दशा है । सत्याग्रह का जमाना शुरु होने के बाद भाषणों की रपट देने की कला में काफ़ी हद तक सुधार हुआ है । अपने विषय के साथ न्याय कर , उत्तम साक्षात्कार लेने वाला , अब तक मेरी जानकारी में नहीं है । इसकी वजह अध्ययन और लगन में हमारी कमजोरी है । बिना नोट्स लिए किन्तु समझदारीपूर्वक बातचीत या भाषण का सार प्रस्तुत करने की शक्ति हमारे अंग्रेजी और गुजराती पत्रों में सिफ़र है । ब्लॉविट्ज़ नामक एक प्रसिद्ध संवाददाता १८७२ में ‘ टाइम्स ‘ के सम्पादक डीलेन के साथ वरसाई ( फ्रांस ) गया था । दोनों वरसाई में फ्रांसीसी राष्ट्रपति तियेर का भाषण सुनकर लौटे । ब्लॉविट्ज़ से डीलेन ने कहा : “ऐसे भाषण अक्षरश: छपने चाहिए । कल के अंक में छप पाता तो कितना सही होता ! परन्तु, यह कैसे मुमकिन हो सकता है ?” डीलेन लंदन गया। ब्लॉविट्ज़ स्टेशन से सीधे तार घर गया और लिखने के फार्म ले कर लगा लिखने ।बीच – बीच में आँखें मूँद कर मन में सभा का चित्र लाता और तियेर के हावभाव और वचन याद करता जाता। पलक झपकते भाषण की रपट तैयार हो गयी जो तार से लंडन पहुँची । अगले दिन डीलेन ‘टाइम्स’ में ढाई कॉलम में तियेर के वरसाई के भाषण की रपट देख कर भौंचक्का रह गया । अपने यहाँ किसी ब्लॉविट्ज़ के होने की मुझे खबर नहीं है।मैं यह उम्मीद जरूर करता हूँ कि यह मेरा अज्ञान हो । आज के जमाने में ऐसे रिपोर्टर जुटाना असंभव तो नहीं ही होगा ।आवश्यकता विविध विषयों के अध्ययन और तन्मयता की मात्र है ।
इस भाषण के अन्य भाग :
पत्रकारीय लेखन किस हद तक साहित्य
पत्रकारिता : दुधारी तलवार : महादेव देसाई
पत्रकारिता (३) : खबरों की शुद्धता , ले. महादेव देसाई
पत्रकारिता (४) : ” क्या गांधीजी को बिल्लियाँ पसन्द हैं ? ”
पत्रकारिता (५) :ले. महादेव देसाई : ‘ उस नर्तकी से विवाह हेतु ५०० लोग तैयार ‘
पत्रकारिता (६) : हक़ीक़त भी अपमानजनक हो, तब ? , ले. महादेव देसाई
समाचारपत्रों में गन्दगी : ले. महादेव देसाई
क्या पाठक का लाभ अखबारों की चिन्ता है ?
समाचार : व्यापक दृष्टि में , ले. महादेव देसाई
रिपोर्टिंग : ले. महादेव देसाई
तिलक महाराज का ‘ केसरी ‘ और मैंचेस्टर गार्डियन : ले. महादेव देसाई
विशिष्ट विषयों पर लेखन : ले. महादेव देसाई
अखबारों में विज्ञापन , सिनेमा : ले. महादेव देसाई
अखबारों में सुरुचिपोषक तत्त्व : ले. महादेव देसाई
अखबारों के सूत्रधार : सम्पादक , ले. महादेव देसाई
कुछ प्रसिद्ध विदेशी पत्रकार (१९३८) : महादेव देसाई
( जारी )
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भाई कप से कप एक दो पैरा और दें,,,शुरू करते ही खतम न हो जाए…..अच्छा है….
वाह ब्लॉविट्ज़!
शुक्रिया…प्रेरक संस्मरण था..
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